ट्रेडिंग कम्प्यूटर प्रोग्राम या एक खास तरह के सॉफ्टवेयर के माध्यम से की जाने वाली शेयरों की खरीद-बिक्री एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग कहलाती है। इस तरह के सॉफ्टवेयर को उचित शेयरों की पहचान और उनकी खरीद-बिक्री के लिए इंसान की जरूरत नहीं होती।
एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग को ऑटोमेटेड ट्रेडिंग, ब्लैक बॉक्स ट्रेडिंग या एल्गो ट्रेडिंग भी कहा जाता है। इसके तहत इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर ट्रेडिंग की जाती है। इसमें ऑर्डर की टाइमिंग, कीमत और मात्रा सभी कुछ पहले से दिया गया होता है। जैसे ही पहले से निर्धारित समय, मात्रा और कीमत से मार्केट की स्थितियाँ मेल खाती हैं, उसी वक्त ऑटोमेटिक तरीके से ट्रांजैक्शन हो जाता है। ये कम्प्यूटर प्रोग्राम खुद यह तय करते हैं कि कब, कहाँ और किस शेयर का कारोबार करना है।
कहाँ किया जाता इस तकनीक का प्रयोग?
इसका इस्तेमाल सबसे अधिक इन्वेस्टमेंट बैंकों, पेंशन फंड, म्यूचुअल फंड आदि में किया जाता है। यह इसलिए किया जाता है, ताकि बड़े ट्रेड को कुछ हिस्सों में बांटकर छोटे-छोटे हिस्सों में ट्रेड किया जा सके, जिससे कि मार्केट इंपैक्ट और रिस्क को मैनेज किया जा सके।
साल 2008 से डायरेक्ट मार्केट एक्सेस की अनुमति मिलने के बाद एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग को बढ़ावा मिला है। मिली सेकंड के भीतर ही ऐसे सॉफ्टवेयर आर्बिट्रेज के मौकों की तलाश कर सौदों को अंजाम दे डालते हैं।
सेबी के द्वारा किये जा रहे उपाय:
भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड सेबी ने बाजार में उचित व्यवहार के लिए एक समिति का गठन किया है जो बाजार की निगरानी और एल्गो ट्रेडिंग के नियमों को मजबूत करने के उपाय सुझाएगी। समिति का चेयरमैन पूर्व विधि सचिव टी के विश्वनाथन को बनाया गया है। समिति भेदिया कानून प्रतिबंध, धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार व्यवहार निषेध नियमनों में सुधार के उपाय भी सुझाएगी। इसके अलावा समिति को भेदिया कारोबार नियमनों और कंपनी कानून के प्रावधानों के बीच तालमेल के लिए भी सिफारिशें देनी होंगी।