“अनेकता में एकता” भारतीय समाज की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। यह वाक्यांश इस बात का भी सूचक है कि भारत किस प्रकार से विविधतापूर्ण संस्कृति, सामाजिक और जातीय तत्त्वों को अपनाते हुए निरंतर आगे बढ़ रहा है। यहाँ अपनी पहचान को अक्षुण्ण रखकर विविधता को अंगीकार करने की आज़ादी है।
कुछ विभाजनकारी ताकतों की नाकाम कोशिशों, सामुदायिक झड़प और नफरत फैलाने जैसी गिनी-चुनी घटनाओं को छोड़ दें तो ऐसे उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं जिसके परिणामस्वरूप भारत की विविधता पर आँच आई हो। उल्लेखनीय है कि जब ऐसी शक्तियों ने करवट लेने की कोशिश की है जिससे कि भारत की एकता और अखंडता पर संकट आए तो इसका मुखर प्रतिरोध समाज, सरकार, न्यायपालिका, सिविल सोसाइटी आदि के द्वारा किया गया।
इस तरह विविधता भारत की एक अमूल्य संपदा है जो भारत को निम्नलिखित रूप से सशक्त बनाती है:
- यह किसी एक भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाज आदि को प्रभावशाली होने से रोकती है और गंगा-जमुनी तहज़ीब को जीवंत बनाए रखती है।
- यह समाज में सकारात्मक स्पर्द्धा को जन्म देती है, जो समाज को सतत् रूप से विकास करने की प्रेरणा प्रदान करती है।
- इससे विभिन्न संस्कृतियों का समावेश होता है जिससे बंधुता की भावना को बल मिलता है।
- निजता या व्यक्तिगत स्वंत्रता का अधिकार से सृजनात्मकता और नवाचार को बढ़ावा मिलता है।
यद्यपि भारत मामूली स्तर पर बड़े और छोटे धार्मिक समुदायों के बीच अंतर का सामना कर रहा है। फिर भी भारत की अधिकांश आबादी यहाँ की विविधता का मजा लेते हुए खुशीपूर्वक जीवन व्यतीत कर रही हैं।