Wednesday 16 August 2017

सतपुड़ा पर्वत श्रेणी, छोटा नागपुर, नीलगिरि पहाड़ियाँ, पालनी पहाड़ियाँ


सतपुड़ा पर्वत श्रेणी
सतपुड़ा पर्वतश्रेणी नर्मदा एवं ताप्ती की दरार घाटियों के बीच राजपीपला पहाड़ी, महादेव पहाड़ी एवं मैकाल श्रेणी के रूप में पश्चिम से पूर्व की ओर विस्तृत है। पूर्व में इसका विस्तार छोटा नागपुर पठार तक है। यह पर्वत श्रेणी एक ब्लाक पर्वत है, जो मुख्यत: ग्रेनाइट एवं बेसाल्ट चट्टानों से निर्मित है। इस पर्वत श्रेणी की सर्वोच्च चोटी धूपगढ़ 1350 मीटर है, जो महादेव पर्वत पर स्थित है।
नामकरण
यह विंध्याचल के दक्षिण में स्थित महान पर्वत श्रेणी है। 'सतपुड़ा' शब्द 'सप्तपुत्र' का अपभ्रंश कहा जाता है। कुछ विद्वानों का मत है कि सतपुड़ा पर्वत की सात श्रेणियां हैं, जिसके कारण ही इसे 'सप्तपुत्र' का अभिधान दिया गया था। हिन्दू धार्मिक पौराणिक महाकाव्य 'महाभारत' में इस पर्वत को नर्मदा और ताप्ती के बीच में वर्णित किया गया है।
विस्तार
सतपुड़ा पहाड़ी क्षेत्र मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों में 900 कि.मी. तक प्रायद्वीपीय भारत के सबसे चौड़े क्षेत्र में फैला हुआ हिस्सा है। मैकाल पहाड़ी की सर्वोच्च चोटी अमरकंटक 1036 मीटर है, जहाँ से नर्मदा एवं सोन नदी निकलती हैं। सतपुड़ा पर्वतश्रेणी की औसत ऊँचाई 900 मीटर है। इस पर्वतश्रेणी के नाम का अर्थ 'सात वलय' है, नर्मदा (उत्तर) और ताप्ती (दक्षिण) नदियों के बीच जल-विभाजक का काम करती है।
खनिज भंडार
सतपुड़ा पर्वतश्रेणी की चोटियों की ऊंचाई 1,200 मीटर है और इनमें पश्चिम में राजपिपला पहाड़ियाँ, उत्तर में महादेव पहाड़ियाँ एवं पूर्व में मैकाल पहाड़ियाँ शामिल हैं। यद्यपि सतपुड़ा पर्वतश्रेणी आर्थिक रूप से कमज़ोर है, तथापि इसके दक्षिण-पूर्वी हिस्से में मैंगनीज और कोयले के कुछ भंडार हैं।
यह व्यापक रूप से वनाच्छादित है और देश के अन्य पठारों से अलग है, इसके जंगलों में पश्चिम में क़ीमती सागौन के पेड़ हैं। महादेव पहाड़ियों की ऊपरी वैनगंगा एवं पेंछ घाटियों में थोड़ी-बहुत खेती की जाती है और ऊपरी पहाड़ियों पर गोंड जनजाति के लोग झूम खेती करते हैं।

छोटा नागपुर
छोटा नागपुर भारत में स्थित एक पठार है जिसका ज़्यादातर हिस्सा झारखंड और कुछ हिस्से उड़ीसा, बिहार और छत्तीसगढ़ में फैले हुये हैं। यह पठार पूर्व कैंब्रियन युगीन (5,4000,000, वर्ष से भी अधिक पुरानी) चट्टानों से बना है। रांची, हजारीबाग और कोडरमा के पठारों का संयुक्त नाम ही छोटा नागपुर है। इसकी मुख्य विशेषताओं में से एक 'पाट भूमि' है। इसे 'भारत का रूर' भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ संसाधनों की प्रचुरता है।
क्षेत्रफल
छोटा नागपुर का क्षेत्रफल 65,509 वर्ग किमी इसका बड़ा हिस्सा रांची का पठार है, जिसकी औसत ऊंचाई 700 मीटर है। छोटा नागपुर का समूचा पठार उत्तर में गंगा और सोन के बेसिन और दक्षिण में महानदी के बेसिन के बीच स्थित है; इसके मध्य भाग में पश्चिम से पूर्व दिशा में कोयला क्षेत्र वाली दामोदर घाटी गुजरती है।
उत्पाद
सदियों से भारी पैमाने पर होने वाली खेती ने पठार की अधिकांश प्राकृतिक वनस्पति को नष्ट कर दिया है, इसके बावजूद अब भी कुछ महत्त्वपूर्ण वन बचे हुए है। टसर रेशम और लाख जैसे वन उत्पाद आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। भारत में खनिज संसाधनों का सबसे महत्त्वपूर्ण संकेंद्रण छोटा नागपुर में है। दामोदर घाटी में कोयले के विशाल भंडार हैं और हज़ारीबाग़ ज़िला विश्व में अभ्रक के प्रमुख स्त्रोतों में से एक है। अन्य खनिज हैं-तांबा, चूना-पत्थर, बॉक्साईट, लौह अयस्क, एस्बेस्टॉस और ऐपाटाइट (फॉस्फेट उर्वरक के उत्पादन में उपयोगी) बोकारो में एक विशाल तापविधुत संयंत्र और इस्पात कारखाना है। इस पठार से गुजरने वाले रेलमार्ग इसे दक्षिण-पूर्व में कोलकाता (भूरपूर्व कलकत्ता) और उत्तर में पटना से जोड़ते हैं और दक्षिण तथा पश्चिम के अन्य नगरों से भी संपर्क उपलब्ध कराते है।

नीलगिरि पहाड़ियाँ, तमिलनाडु
नीलगिरि पहाड़ियाँ तमिलनाडु राज्य का पर्वतीय क्षेत्र है। यह सुदूर दक्षिण की पर्वत श्रेणी है। इन पहाड़ियों पर पश्चिमी एवं पूर्वी घाटों का संगम होता है। प्राचीन काल में यह श्रेणी मलय पर्वत में सम्मिलित थी। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि महाभारत, वनपर्व में कर्ण की दिग्विजय यात्रा के प्रसंग में केरल तथा तत्पश्चात् नील नरेश के विजित होने का जो उल्लेख है, उससे इस राजा का नील पर्वत के प्रदेश में होना सूचित होता है।
भौगोलिक तथ्य
दोदाबेटा नीलगिरि पहाड़ियों की सर्वोच्च चोटियों में गिनी जाती है। भारत की टोडा जनजाति इस पर्वत श्रेणी के ढलानों पर रहती है। नीलगिरि पहाड़ियों को 'ब्लू माउण्टेन्स' भी कहा जाता है। इसकी चोटियाँ आस-पास के मैदानी क्षेत्र से अचानक उठकर 1,800 से 2,400 मीटर की ऊँचाई तक पहुँचती हैं। इनमें से एक 2,637 ऊँची दोदाबेटा चोटी तमिलनाडु का शीर्ष बिन्दू है। नीलगिरि पहाड़ियाँ पश्चिमी घाटी का हिस्सा हैं और नोयर नदी इन्हें कर्नाटक के पठार (उत्तर) तथा पालघाटी इन्हें अन्नामलाई, पालनी पहाड़ियों (दक्षिण) से अलग करती है।
वनस्पति
नीलगिरि पहाड़ियाँ आस-पास के मैदानी क्षेत्र के मुक़ाबले ठंडी और नम हैं। ऊपरी पहाड़ियाँ लहरदार घास के क्षेत्रों का निर्माण करती हैं। इन पर चाय, सिनकोना कॉफी और सब्जियों की व्यापक खेती होती है।

पालनी पहाड़ियाँ
  • पालनी पहाड़ियाँ दक्षिण भारत के दक्षिण-पश्चिम तमिलनाडु में स्थित, पश्चिमी घाट और इलायची पहाड़ियों का एक पूर्ववर्ती विस्तार है।
  • केरल राज्य में अन्नामलाई पहाड़ियों का क्रमिक विस्तार रूप पालनी लगभग 70 कि.मी. चौड़ा और 23 कि.मी. लंबा है।
  • दक्षिण में पालनी पहाड़ियाँ अचानक तीखे ढाल के रूप में समाप्त हो जाती हैं।
  • पश्चिम में स्थित ऊपरी पालनी घुमावदार पहाड़ियों का क्षेत्र है, जो मोटी घास से ढका हुआ है; घाटियों में घने जंगल पाए जाते हैं।
  • इसकी चोटियों में वंडारावु 2,553 मीटर, वेंबाडी शोला 2,505 मीटर; और क्रुमांकाडी 2,451 मीटर शामिल हैं।
  • कटिबन्धीय वर्षा वनों से ये पहाड़ियाँ आच्छादित हैं। पालनी पहाड़ी चाय के बाग़ानों के लिए प्रसिद्ध है। गर्म मसालों की खेती भी यहाँ पर की जाती है।
  • पालनी पहाड़ियों पर बसे गांवों में सब्ज़ियों और फलों की खेती होती है, जिनमें आलू, फलियाँ, कंद वाली फसलें नाशपाती और आडू शामिल हैं। पालनी में बॉक्साइट की खानें भी हैं।
  • पूर्व में निम्न पालनी औसतन 900-1,500 मीटर भ्रमित कर देने वाली ऊँची चोटियों का अव्यवस्थित समूह है, जो गहरी वनाच्छादित घाटियों से विभक्त हैं।
  • सागौन के वृक्ष भी व्यापक पैमाने पर लगाए गए हैं।
  • महत्त्वपूर्ण नकदी फसलों में कॉफी, केला, इलायची, नीबू प्रजाति के फल और हल्दी शामिल हैं।