Thursday, 10 August 2017

"जो लोग धर्म को राजनीति से अलग करते हैं, वे यह नहीं जानते कि धर्म क्या होता है।" कथन के संदर्भ में, भारत में लोगों की राजनीतिक अभिवृत्ति में धर्म की भूमिका तथा उसके परिणामों का परीक्षण करे।


धर्मविहीन राजनीति’ को महात्मा गांधी ने ‘सात पापों’ (Seven Sins) में से एक प्रमुख पाप माना था। वस्तुतः उनका उद्देश्य यहाँ राजनीति को नैतिक बनाए रखने से था।

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी व्यक्त है कि राजनीति में लोगों के ‘सर्वश्रेष्ठ नैतिक मूल्यों’ की परीक्षा होती है। इन नैतिक मूल्यों को बनाए रखने, उसे और उच्चता प्रदान करने इत्यादि के लिये कोई ‘सोर्स ऑफ मोटिवेशन’ तो चाहिये हीं और यह मॉटिवेशन वे धर्म से प्राप्त करते थे। वस्तुतः ‘धर्म’ की उनकी परिभाषा पश्चिम के ‘रिलीजन’ से अलग है, इसलिये पश्चिमी मूल्य जिसमें ‘राज्य एवं चर्च का पूर्णतः विलगाव’ होता है से उलट वे धर्म और राजनीतिक को सहगामी मानते थे।

भारतीय परंपरा में ‘धर्म’, ‘धृ’ धातु से निर्मित है जिसका अर्थ होता है धारण करना। जैसे पितृ धर्म, मातृ धर्म, पुत्र धर्म, छात्र धर्म इत्यादि। यह लोगों को कुछ नैतिक कर्त्तव्य करने को प्रेरित करता है। और इस अर्थ में राजनीति में ‘धर्म काम्य ही नहीं बल्कि अनिवार्य’ भी है।
चूँकि धर्मपरायणता भारतीयों के सभी कार्य-व्यापार में दिखाई देता है।
अतः राजनीति पर भी धर्म का स्वाभाविक रूप से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव रहता है।
सकारात्मक संदर्भ में देखें तो यह राजनीति में शुचिता बनाए रखने, राजनीतिज्ञों द्वारा जनसेवा को अपना कर्त्तव्य के रूप में देखने इत्यादि में काफी योगदान करता है। लेकिन व्यवहार में इसके नकारात्मक परिणाम अधिक दिखाई देते हैं-
1. सांप्रदायिक राजनीति ने आजादी के आंदोलन को तो कमजोर किया ही था, देश का धार्मिक आधार पर विभाजन कराया जिससे लाखों लोग बेघर हुए और हजारों लोगों की जाने गई।
2. आजादी के बाद भी इसी दुषित राजनीति के प्रभावस्वरूप दंगे होते है तथा लोगों के बीच सांपद्रायिक आधार पर विद्वेष पनपता है।
3. धर्म के अत्यधिक प्रभाव के कारण राजनीति में अधिक महत्त्व के मुद्दे जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार इत्यादि गौण होकर मंदिर-मस्जिद पर फोकस हो जाती है।
4. राजनीतिज्ञ भी लोगों की इस भावना को तुल देकर अपने उत्तरदायित्व से बचते हैं।
5. देश का आर्थिक विकास, सामाजिक ताना-बाना तो प्रभावित होता ही है अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देश की छवि को नुकसान पहुँचता है।

कुल मिलाकर, धार्मिक प्रभाव के जिस सकारात्मक परिणाम की उम्मीद की गई थी उतना भले ही न दिखे पर भाईचारा एवं बंधुत्व के उच्चतम आदर्शों की प्राप्ति के लिये यह एक ‘बाईंडिंग फोर्स’ की तरह कार्य करता है जिसका प्रयोग कर राजनीति को और भी नैतिक बना सकते हैं।