Wednesday, 30 August 2017

अल्कोहल के सहारे जिंदा रहने वाली मछलियाँ


कड़ाके की सर्दी में जब पानी पूरी तरह जम जाता है तो ऑक्सीजन सप्लाई बंद हो जाती है। ज्यादातर जीव मर जाते हैं। लेकिन दो मछलियाँ ऐसी मौत को मात दे जाती हैं।
मानव और ज्यादातर जीवों के लिए ऑक्सीजन प्राणवायु है। जीवित कोशिकाएं ऑक्सीजन के सहारे ऊर्जा मुक्त करती हैं। अगर ऑक्सीजन न मिले तो मानव और कई जीव कुछ ही सेकेंडों के भीतर दम तोड़ देंगे। ऊर्जा पैदा करने के लिए शरीर ग्लूकोज का सहारा लेता है। ऑक्सीजन कम होने पर हमारा शरीर लैक्टिक एसिड का इस्तेमाल करता है।
लेकिन क्रूसियन कार्प और गोल्डफिश नाम की मछलियाँ हमसे भी कहीं आगे हैं। गोल्डफिश, क्रूसियन कार्प परिवार की ही सदस्य है। ये मछलियां शरीर में मौजूद प्रोटीन को एथेनॉल में तब्दील करती हैं। पानी शून्य डिग्री सेंटीग्रेड में जमने लगता है, वहीं एथेनॉल ऋण114 डिग्री सेंटीग्रेड में जमता है। इसके चलते क्रूसियन कार्प और गोल्ड फिश जमती नहीं हैं। और बर्फीली परिस्थितियों में भी वे कई महीनों तक जिंदा रहते हैं, वो भी बिना ऑक्सीजन के।
शरीर में एथेनॉल की मात्रा बढ़ने पर ये मछलियाँ गलफड़े के जरिये उसे बाहर कर देती हैं। बाहर बर्फ में घुला अल्कोहल मछली के शरीर के आसपास कवच का काम करता है। यह पानी को जमने से रोक देता है।
क्रूसियन कार्प और गोल्डफिश पर शोध करने वाले वैज्ञानिक माइकल बेरेनब्रिंक कहते हैं, "उत्तरी यूरोप में कई महीनों तक बर्फ से ढके तालाब में ऑक्सीजन रहित माहौल बनने पर, क्रूसियन कार्प के खून में अल्कोहल की सघनता बढ़कर 50 मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर हो जाती है।"

लेकिन ऐसा कैसे होता है?
लीवरपूर और ओस्लो के वैज्ञानिक इसका जबाव मॉलिक्यूलर मैकेनिज्म में खोज रहे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह जीव शरीर में मौजूद प्रोटीन को विशुद्ध एथेनॉल में बदल देते हैं। शोध की लीड ऑर्थर कैथेरिन फागेर्नेस कहती हैं, "एथेनॉल निर्माण करने की क्षमता की वजह से ही क्रूसियन कार्प अकेली ऐसी मछली है जो इतने दुश्वार हालात में भी जी लेती है। इस तरह के हालात में कोई दूसरी शिकारी मछली नहीं बच पाती। क्रूसियन कार्प परिवार की ही गोल्डफिश भी दुनिया में सबसे दुश्वार हालात में जीने वाली मछली है।"