Monday, 14 August 2017

वेलेजली की ‘सहायक संधि’ जहाँ कंपनी को सैन्य व वित्तीय दृष्टिकोण से सुदृढ़ करने में सफल रही, वहीं भारतीय राज्यों के लिये एक मीठा विष सिद्ध हुई। विवेचना कीजिये।


वेलेजली 1798 में सर जॉन शोर के पश्चात् भारत का गवर्नर-जनरल बना। वेलेजली का उद्देश्य कंपनी को भारत की सबसे बड़ी शक्ति बनाना, ब्रिटिश अधीन प्रदेशों का विस्तार करना तथा भारत के सभी राज्यों को कंपनी पर निर्भर होने की स्थिति में लाना था। भारतीय राज्यों को अंग्रेजी राजनीतिक परिधि में लाने के लिये उसने सहायक संधि प्रणाली का प्रयोग किया। वेलेजली की सहायक संधि प्रायः निम्नलिखित प्रतिबंधों और शर्तों पर होती थी-
कंपनी राजाओं की प्रत्येक प्रकार के शत्रुओं से रक्षा करेगी। हालाँकि वह राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
⇒भारतीय राजाओं के विदेशी संबंध कंपनी के अधीन होंगे। राज्यों को कंपनी की अनुमति के बिना किसी यूरोपीय व्यक्ति को सेवा में रखने की मनाही थी।
⇒बड़े राज्यों को अपने यहाँ एक ऐसी सेना रखनी होती थी जिसकी कमान अंग्रेजी अधिकारियों के हाथ में होती थी और उस सेना का उद्देश्य सार्वजनिक शांति बनाये रखना था। इसके लिये उन्हें ‘पूर्ण प्रभुसत्ता युक्त प्रदेश’ कंपनी को देना होता था। छोटे राज्य कंपनी को नगद धन देते थे।
⇒राज्यों को अपनी राजधानी में एक अंग्रेज रेजीडेंट रखना जरूरी था।
⇒इस तरह सहायक संधि प्रणाली साम्राज्य निर्माण के कार्य में एक भेदिए शत्रु की भूमिका निभाने लगी। सहायक संधि को स्वीकारने वाले भारतीय राज्य निरस्त्र हो गए क्योंकि अब उन्हें कंपनी का संरक्षण प्राप्त था। सर टॉमस मनरो के शब्दों में, ‘राज्यों ने अपनी स्वतंत्रता, राष्ट्रीय चरित्र अथवा वह सब जो किसी देश को प्रतिष्ठित बनाते हैं, बेचकर सुरक्षा मोल ले ली।’
⇒अंग्रेज रेजीडेंटों ने राज्यों के प्रशासन में अत्यधिक हस्तक्षेप प्रारम्भ कर दिया, जबकि संधि की शर्तों में आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की शर्त थी। सहायक संधि ने प्रत्येक निर्बल तथा उत्पीड़क राजा की रक्षा कर वहाँ की जनता को अपनी अवस्था सुधारने के अवसर से वंचित रखा।
⇒सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि सहायक संधि स्वीकारने वाले राज्य शीघ्र दिवालिया हो गए। कंपनी ने प्रायः राज्य की आय का 1/3 भाग आर्थिक सहायता के रूप में राज्यों से लिया। कई बार धन के बदले अधिक कीमत का प्रदेश लिया जाता था। वेलेजली ने स्वयं एक बार बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में लिखा था कि हमने 40 लाख रुपए के बदले 62 लाख रुपए वार्षिक कर का प्रदेश मांगा है।
इस प्रकार सहायक संधि द्वारा कंपनी न केवल एक विशाल सेना को भारतीय राज्यों के व्यय पर रखने में सफल रही, अपार धन और उपयोगी प्रदेश भी प्राप्त किये बल्कि बिना लड़े अनेक राज्यों में अपना विस्तार करने में सफल रही। वहीं, भारतीय राज्य केवल सुरक्षा के बदले कंपनी के अधीन, धनहीन व संप्रभुताविहीन हो गए।