Thursday, 7 June 2018

भूकंपीय तरंगें पृथ्वी की आतंरिक संरचना के अध्ययन में किस प्रकार उपयोगी हैं? व्याख्या करें।


पृथ्वी का आंतरिक भाग मानव के लिये दृश्यगत न हो पाने के कारण इसकी वास्तविक स्थिति तथा संरचना के विषय में सही जानकारी प्राप्त करना अत्यंत कठिन है। हालाँकि पृथ्वी की आंतरिक संरचना के अध्ययन के संदर्भ में अनेक प्रयास किये गए किंतु भूकंपीय तरंगों के अध्ययन के आधार पर हाल के वर्षों में पृथ्वी के बारे में जो नवीन जानकारी प्राप्त हुई है वह सर्वाधिक विश्वसनीय है।    भूकंपीय तरंगों का अध्ययन पृथ्वी की आंतरिक परतों का संपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है। भूकंप का अर्थ है- पृथ्वी का कंपन। यह एक प्राकृतिक घटना है। पृथ्वी के अंदर से ऊर्जा के निकलने के कारण तरंग उत्पन्न होती है जो सभी दिशाओं में फैलकर भूकंप लाती है।    भूकंपीय तरंग P, S तथा L प्रकार की होती है, जिनमें P तरंग ठोस, तरल एवं गैस तीनों माध्यम में गमन करती है, वहीं S तरंग केवल ठोस पदार्थों के माध्यम में ही गमन कर सकती है। S तरंगों की इसी विशेषता ने वैज्ञानिकों को भूगर्भीय संरचना समझने में मदद की। L तरंगे, P और S तरंगों एवं धरातलीय चट्टानों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण उत्पन्न होती है। L तरंगों को धरातलीय तरंगे कहा जाता है। क्योंकि ये तरंगे धरातल के साथ-साथ चलती है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना को जानने के लिये P और S तरंगों से विशेष रूप से सहायता मिलती है।    यदि पृथ्वी की आंतरिक संचना समरूप होती तो P और S तरंगों के व्यवहार में समरूपता पाई जाती किंतु ऐसा नहीं होता है। 33 किमी. की गहराई पर भूकंपीय तरंगों की गति अचानक बढ़ जाती है क्योंकि चट्टानों के घनत्व एवं प्रत्यास्थता में वृद्धि होती है। 100-200 किमी. की गहराई में भूकंपीय तरंगों की गति कम होती है। अतः इस प्रदेश को ‘निम्न वेग का प्रदेश’ कहते हैं। इस परत में चट्टाने आंशिक रूप से पिघली हुई अवस्था में है, इस कारण भूकंपीय वेग में कमी आती है। 200 किमी. की गहराई के पश्चात् भूकंपीय तरंगों के वेग में वृद्धि होती है तथा 2500 किमी. की गहराई पर S तरंगे विलुप्त हो जाती है जबकि P रतंगों के वेग में कमी आती है। 5150 किमी. के पश्चात् P तरंगों के वेग में पुनः वृद्धि होती है। इसी आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना को क्रस्ट, मेंटल व कोर में विभक्त किया गया है।    इन तीन संकेंद्रीय परतों में भूकंपीय तरंगों का वेग भिन्न-भिन्न होता है। इस प्रकार परतों की सीमाओं पर भूकंपीय असंगति मिलती है जहाँ भूकंपीय तरंगों के वेग में अचानक परिवर्तन आता है। संकेंद्रीय परतों में असंगति दोनों कोरों व बाह्य कोर और मेंटल के बीच स्पष्ट है। क्रस्ट की दोनों परतों तथा क्रस्ट व मेंटल के बीच असंगति पाई जाती है। इन असंगति को विभिन्न नामों तथा कोनार्ड, मोहो, रेपटी, गुटेनबर्ग, लेहमन आदि के नाम से जाना जाता है।    उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना के वैज्ञानिक अध्ययन के लिये भूकंपीय तरंगे सर्वाधिक उपयोगी हैं।

पृथ्वी का आंतरिक भाग मानव के लिये दृश्यगत न हो पाने के कारण इसकी वास्तविक स्थिति तथा संरचना के विषय में सही जानकारी प्राप्त करना अत्यंत कठिन है। हालाँकि पृथ्वी की आंतरिक संरचना के अध्ययन के संदर्भ में अनेक प्रयास किये गए किंतु भूकंपीय तरंगों के अध्ययन के आधार पर हाल के वर्षों में पृथ्वी के बारे में जो नवीन जानकारी प्राप्त हुई है वह सर्वाधिक विश्वसनीय है।

भूकंपीय तरंगों का अध्ययन पृथ्वी की आंतरिक परतों का संपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है। भूकंप का अर्थ है- पृथ्वी का कंपन। यह एक प्राकृतिक घटना है। पृथ्वी के अंदर से ऊर्जा के निकलने के कारण तरंग उत्पन्न होती है जो सभी दिशाओं में फैलकर भूकंप लाती है।

भूकंपीय तरंग P, S तथा L प्रकार की होती है, जिनमें P तरंग ठोस, तरल एवं गैस तीनों माध्यम में गमन करती है, वहीं S तरंग केवल ठोस पदार्थों के माध्यम में ही गमन कर सकती है। S तरंगों की इसी विशेषता ने वैज्ञानिकों को भूगर्भीय संरचना समझने में मदद की। L तरंगे, P और S तरंगों एवं धरातलीय चट्टानों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण उत्पन्न होती है। L तरंगों को धरातलीय तरंगे कहा जाता है। क्योंकि ये तरंगे धरातल के साथ-साथ चलती है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना को जानने के लिये P और S तरंगों से विशेष रूप से सहायता मिलती है।

यदि पृथ्वी की आंतरिक संचना समरूप होती तो P और S तरंगों के व्यवहार में समरूपता पाई जाती किंतु ऐसा नहीं होता है। 33 किमी. की गहराई पर भूकंपीय तरंगों की गति अचानक बढ़ जाती है क्योंकि चट्टानों के घनत्व एवं प्रत्यास्थता में वृद्धि होती है। 100-200 किमी. की गहराई में भूकंपीय तरंगों की गति कम होती है। अतः इस प्रदेश को ‘निम्न वेग का प्रदेश’ कहते हैं। इस परत में चट्टाने आंशिक रूप से पिघली हुई अवस्था में है, इस कारण भूकंपीय वेग में कमी आती है। 200 किमी. की गहराई के पश्चात् भूकंपीय तरंगों के वेग में वृद्धि होती है तथा 2500 किमी. की गहराई पर S तरंगे विलुप्त हो जाती है जबकि P रतंगों के वेग में कमी आती है। 5150 किमी. के पश्चात् P तरंगों के वेग में पुनः वृद्धि होती है। इसी आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना को क्रस्ट, मेंटल व कोर में विभक्त किया गया है।

इन तीन संकेंद्रीय परतों में भूकंपीय तरंगों का वेग भिन्न-भिन्न होता है। इस प्रकार परतों की सीमाओं पर भूकंपीय असंगति मिलती है जहाँ भूकंपीय तरंगों के वेग में अचानक परिवर्तन आता है। संकेंद्रीय परतों में असंगति दोनों कोरों व बाह्य कोर और मेंटल के बीच स्पष्ट है। क्रस्ट की दोनों परतों तथा क्रस्ट व मेंटल के बीच असंगति पाई जाती है। इन असंगति को विभिन्न नामों तथा कोनार्ड, मोहो, रेपटी, गुटेनबर्ग, लेहमन आदि के नाम से जाना जाता है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना के वैज्ञानिक अध्ययन के लिये भूकंपीय तरंगे सर्वाधिक उपयोगी है।