Friday 22 June 2018

क्‍या होता है मानसून और इसके कम या ज्‍यादा होने से अर्थव्‍यवस्‍था पर इसका कितना असर पड़ता है (जानिए आसान शब्दों में)

क्‍या होता है मानसून-     मानसून पूरी तरह से हवाओं के बहाव पर निर्भर करता है। आमतौर पर जब ये हवाएं अपनी दिशा को  बदल लेती हैं, तब मानसून आता है। जब ये हवाएं ठंडे से गर्म क्षेत्रों की ओर बहती हैं तो उनमें नमी की मात्रा बढ़ जाती है, जिसकी वजह से बारिश होती है। मौसम में इसी परिवर्तन के साथ ही हवा की दिशा भी बदलती है। गर्मियों में ये हवा समुद्र से स्थल की ओर चलती है जो बारिश के अनुकूल होती है। जबकि सर्दियों में हवा स्थल से समुद्र की ओर चलती है जो शांत और सूखी होती है। जहाँ ज्‍यादा गर्मी होती है, वहाँ से हवा गर्म होकर ऊपर उठने लगती है और पूरे क्षेत्र में निम्‍न वायु दबाव का क्षेत्र बन जाता है।     जब ये हवाएं ऊपर की उठती हैं तो इसमें मौजूद वाष्‍पकण ठंडा होकर पानी की बूंदों में बदल जाते हैं। इससे पानी की बूंदे भारी होकर धरती पर गिरने लगती है, जिसे हम बारिश कहते हैं।     चूंकि मानसूनी हवा में वाष्‍पकण भरपूर मात्रा में होते हैं, इसलिए बारिश भी जमकर होती है। आमतौर पर हर साल मई से जून के बीच ये हवाएं गर्मियों में यह हवा भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्‍य  भागों पर दक्षिणी-पश्चिमी हवा के रूप में समुद्र से स्‍थल की ओर बहने लगती है, जिसे हम दक्षिणी-पश्चिमी मानसून कहते हैं। भारत में मानसून सबसे पहले 1 जून तक केरल के तट पर दस्‍तक देता है। इसके बाद यह अन्‍य राज्‍यों में फैल जाता है, जिससे देशभर में बारिश होती है।    मानसून में देरी का अर्थव्‍यवस्‍था पर प्रभाव      सालभर होने वाली बारिश में 70 फीसदी हिस्सेदारी जून-सितंबर के मानसून की होती है। मानसून में देरी का जून-सितंबर की बारिश पर सीधा असर नहीं पड़ता। लेकिन इससे फसलों की बुवाई प्रभावित हो सकती है। मानसून आमतौर पर 1 जून तक केरल में दस्तक देता है।     इसमें देरी से यदि कृषि के क्षेत्र पर असर पड़ता है तो अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की सरकार एवं  आरबीआई की कोशिशों को झटका लगेगा। इसकी वजह यह है कि जहाँ 2016 में भारत की अर्थव्‍यवस्‍था करीब 2.3 लाख करोड़ डॉलर की हो जाएगी, जिसमें कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 15 फीसदी है।     चूंकि कृषि‍ हमारी अर्थव्‍यवस्‍था का एक अहम हिस्‍सा है और इसके प्रभावित होने का असर अर्थव्‍यवस्‍था पर पड़ना लाजिमी है।     क्‍या है अलनीनो व मानूसन पर इसका असर     प्रशांत महासागर में दक्षिण अमेरिका तथा पेरू के निकटवर्ती इलाकों में विषुवत रेखा के आसपास जब समुद्र की सतह अचानक गर्म होनी शुरू होती है तो अलनीनो प्रभाव उत्पन्न होता है। इस गर्मी से ट्रेड विंड कमजोर पड़ती है, जो मानसूनी हवा के रूप में भारत की ओर पहुँचती है। समुद्री तापमान में यह बढ़ोतरी 0.5 डिग्री से 2.5 डिग्री के बीच हो तो इसका असर भारतीय मानसून पर पड़ता है। इस वजह से बारिश सामान्‍य से बहुत कम होती है और सूखा पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। अलनीनो जब भी आता है सूखे का कहर लेकर आता है, जिससे सबसे ज्‍यादा प्रभावित भारत और ऑस्ट्रेलिया होते हैं। भारत में ऐसा पिछले 140 वर्षों में चार बार ही हुआ है।    कमजोर मानसून की वजह से जल संकट    चूंकि भारत के अधिकांश भागों में बारिश केवल मानसून के तीन-चार महीनों में ही होती है। इसलिए बड़े तालाबों, बांधों और नहरों से दूर स्थित गांवों में पीने के पानी का संकट उत्पन्न हो जाता है। उन इलाकों में भी जहाँ मानसून काल में पर्याप्त बारिश होती है।     मानसून पूर्व काल में भी लोगों को कष्ट सहना पड़ता है, क्योंकि यहाँ पर पानी को संचय करने की व्यवस्था प्रर्याप्‍त व्‍यवस्‍था नहीं है। इन सब के अलावा भारत में बारिश ज्‍यादा होती है और एक छोटी अवधि में ही होती है।

क्‍या होता है मानसून

मानसून पूरी तरह से हवाओं के बहाव पर निर्भर करता है। आमतौर पर जब ये हवाएं अपनी दिशा को  बदल लेती हैं, तब मानसून आता है। जब ये हवाएं ठंडे से गर्म क्षेत्रों की ओर बहती हैं तो उनमें नमी की मात्रा बढ़ जाती है, जिसकी वजह से बारिश होती है। मौसम में इसी परिवर्तन के साथ ही हवा की दिशा भी बदलती है। गर्मियों में ये हवा समुद्र से स्थल की ओर चलती है जो बारिश के अनुकूल होती है। जबकि सर्दियों में हवा स्थल से समुद्र की ओर चलती है जो शांत और सूखी होती है। जहाँ ज्‍यादा गर्मी होती है, वहाँ से हवा गर्म होकर ऊपर उठने लगती है और पूरे क्षेत्र में निम्‍न वायु दबाव का क्षेत्र बन जाता है। 

जब ये हवाएं ऊपर की उठती हैं तो इसमें मौजूद वाष्‍पकण ठंडा होकर पानी की बूंदों में बदल जाते हैं। इससे पानी की बूंदे भारी होकर धरती पर गिरने लगती है, जिसे हम बारिश कहते हैं।

चूंकि मानसूनी हवा में वाष्‍पकण भरपूर मात्रा में होते हैं, इसलिए बारिश भी जमकर होती है। आमतौर पर हर साल मई से जून के बीच ये हवाएं गर्मियों में यह हवा भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्‍य  भागों पर दक्षिणी-पश्चिमी हवा के रूप में समुद्र से स्‍थल की ओर बहने लगती है, जिसे हम दक्षिणी-पश्चिमी मानसून कहते हैं। भारत में मानसून सबसे पहले 1 जून तक केरल के तट पर दस्‍तक देता है। इसके बाद यह अन्‍य राज्‍यों में फैल जाता है, जिससे देशभर में बारिश होती है।

मानसून में देरी का अर्थव्‍यवस्‍था पर प्रभाव  

सालभर होने वाली बारिश में 70 फीसदी हिस्सेदारी जून-सितंबर के मानसून की होती है। मानसून में देरी का जून-सितंबर की बारिश पर सीधा असर नहीं पड़ता। लेकिन इससे फसलों की बुवाई प्रभावित हो सकती है। मानसून आमतौर पर 1 जून तक केरल में दस्तक देता है। 

इसमें देरी से यदि कृषि के क्षेत्र पर असर पड़ता है तो अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की सरकार एवं  आरबीआई की कोशिशों को झटका लगेगा। इसकी वजह यह है कि जहाँ 2016 में भारत की अर्थव्‍यवस्‍था करीब 2.3 लाख करोड़ डॉलर की हो जाएगी, जिसमें कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 15 फीसदी है। 

चूंकि कृषि‍ हमारी अर्थव्‍यवस्‍था का एक अहम हिस्‍सा है और इसके प्रभावित होने का असर अर्थव्‍यवस्‍था पर पड़ना लाजिमी है।

क्‍या है अलनीनो व मानूसन पर इसका असर

प्रशांत महासागर में दक्षिण अमेरिका तथा पेरू के निकटवर्ती इलाकों में विषुवत रेखा के आसपास जब समुद्र की सतह अचानक गर्म होनी शुरू होती है तो अलनीनो प्रभाव उत्पन्न होता है। इस गर्मी से ट्रेड विंड कमजोर पड़ती है, जो मानसूनी हवा के रूप में भारत की ओर पहुँचती है। समुद्री तापमान में यह बढ़ोतरी 0.5 डिग्री से 2.5 डिग्री के बीच हो तो इसका असर भारतीय मानसून पर पड़ता है। इस वजह से बारिश सामान्‍य से बहुत कम होती है और सूखा पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। अलनीनो जब भी आता है सूखे का कहर लेकर आता है, जिससे सबसे ज्‍यादा प्रभावित भारत और ऑस्ट्रेलिया होते हैं। भारत में ऐसा पिछले 140 वर्षों में चार बार ही हुआ है।

कमजोर मानसून की वजह से जल संकट

चूंकि भारत के अधिकांश भागों में बारिश केवल मानसून के तीन-चार महीनों में ही होती है। इसलिए बड़े तालाबों, बांधों और नहरों से दूर स्थित गांवों में पीने के पानी का संकट उत्पन्न हो जाता है। उन इलाकों में भी जहाँ मानसून काल में पर्याप्त बारिश होती है। 

मानसून पूर्व काल में भी लोगों को कष्ट सहना पड़ता है, क्योंकि यहाँ पर पानी को संचय करने की व्यवस्था प्रर्याप्‍त व्‍यवस्‍था नहीं है। इन सब के अलावा भारत में बारिश ज्‍यादा होती है और एक छोटी अवधि में ही होती है।