Wednesday, 20 June 2018

जीवनसाथी चुनने का अधिकार

सर्वोच्च न्यायालय ने 27 मार्च, 2018 को दिए एक निर्णय के तहत ‘चुनने के अधिकार’ (Right to Choose) को मौलिक अधिकार माना है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश ए.एम. खानविल्कर और न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड की तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने कहा है कि एक बार जब दो वयस्क व्यक्ति विवाह में प्रवेश करने के लिए सहमत हों तो परिवार या समुदाय या कबीले की सहमति जरूरी नहीं। राज्य या पितृसत्तात्मक सर्वोच्चता द्वारा विवाह करने की सहमति व्यक्त करने वाले वयस्कों को रोकना अवैध है। जब दो वयस्क एक-दूसरे को जीवन-साथी के रूप में चुनते हैं, तो यह उनकी पसंद की एक अभिव्यक्ति है, जो संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत शामिल है।    पृष्ठभूमि    शक्तिवाहिनी नामक एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को सम्मान के लिए अपराधों (Honour Killings) से निपटने के लिए प्रतिबंधात्मक कदम उठाने के लिए निर्देश मांगा गया था। देश में विशेषकर उत्तर-भारत में बढ़ रही इस प्रकार की हिंसक गतिविधियों को देखते हुए इस संस्था ने एक याचिका दाखिल की थी।    सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय    शक्तिवाहिनी बनाम भारत संघ एवं अन्य (Shakti Vahini Versus Union of India and Others) वाद में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा द्वारा स्वयं का फैसला फ्रांसीसी दार्शनिक और चिंतक सिमोन वेल (Simone Weil) के एक उद्धरण से शुरू होता है, ‘‘स्वतंत्रता शब्द को ठोस अर्थ में लेने पर इसमें चयन करने की क्षमता शामिल होती है’’ (Liberty, taking the word in its concrete sense consists in the ability to choose)। वर्ग सम्मान, जो कुछ भी माना जाता है, वह किसी व्यक्ति की पसंद को कम नहीं कर सकता, जिसे वह हमारे अनुकंपित संविधान के तहत आनंद लेने का हकदार है।    दो वयस्कों द्वारा विवाह करने के लिए परिवार/समुदाय/कबीले की अनावश्यक सहमति पर न्यायालय ने यह भी कहा कि एक बार दो वयस्क व्यक्ति के विवाह में प्रवेश करने के लिए सहमत हो जाने पर परिवार या समुदाय या कबीले की सहमति जरूरी नहीं है। खंडपीठ ने निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किए हैं-    निवारक उपाय (Preventive Steps)    राज्य सरकारों को तुरंत उन जिलों, उप-प्रभागों और/या गांवों की पहचान करनी चाहिए जहां पिछले पांच वर्षों में ऑनर किलिंग अथवा खाप पंचायत की सभा के उदाहरण देखने को मिले हैं। संबंधित राज्यों के गृह विभाग के सचिव यह सुनिश्चित करने के लिए संबंधित जिलों के पुलिस अधीक्षक को यह निर्देश दे कि चिह्नित क्षेत्रों के पुलिस स्टेशन के प्रभावी अतिरिक्त सतर्कता बरतें, यदि कोई अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक विवाह का मामला सामने आता है। यदि कहीं खाप पंचायत की प्रस्तावित सभा के बारे में किसी पुलिस अधिकारी या जिला प्रशासन के किसी अधिकारी को सूचना प्राप्त हो, तो उसे तुरंत अपने वरिष्ठ अधिकारी को सूचित करेंगे। ऐसी जानकारी प्राप्त होने पर पुलिस उपाधीक्षक तुरंत खाप पंचायत के सदस्यों के साथ सहभागिता करके यह बताएंगे कि ऐसी बैठक/सभा आयोजित करने की कानून द्वारा अनुमति नहीं है। इसके बावजूद भी अगर खाप पंचायत की बैठक आयोजित की जाती है, तो पुलिस उपाधीक्षक व्यक्तिगत रूप से बैठक के दौरान उपस्थित रहेंगे और सभा पर यह प्रभाव डालेंगे कि उस दंपति अथवा जोड़े के परिवार के सदस्यों को नुकसान पहुंचाने वाला कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा। सभा के सदस्यों की चर्चा और भागीदारी की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाए, जिसके आधार पर कानून लागू करने वाली मशीनरी उचित कार्रवाई कर सके। पुलिस उपाधीक्षक को ऐसा लगता है कि दंपति या उसके परिवार के सदस्यों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, तो वह तुरंत जिला मजिस्ट्रेट/उप-विभागीय मजिस्ट्रेट को संबंधित क्षेत्र के सक्षम प्राधिकारी सी.आर.पी.सी. की धारा 144 के तहत निवारक कदम उठाने के आदेश देने के लिए प्रस्ताव करेगा, साथ  ही सी.आर.पी.सी. की धारा 151 के तहत सभा में भागीदारी करने वालों की गिरफ्तारी भी।  उपचारात्मक उपाय (Remedial Measures)  राज्य पुलिस द्वारा उठाए गए निवारक उपायों के बावजूद यदि स्थानीय पुलिस के संज्ञान में आता है कि खाप पंचायत ने किसी अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक विवाह करने वाले जोड़े/परिवार के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए आदेश दिया है, तो उस क्षेत्र के पुलिस अधिकारी के पास तुरंत भारतीय दंड संहिता के अधीन धारा 141, 143 तथा धारा 506 के साथ पठित धारा 503 के तहत एफ.आई.आर. दर्ज करने का कारण होगा। एफ.आई.आर. के बाद पुलिस अधीक्षक/पुलिस उपाधीक्षक को एक साथ सूचना प्रदान की जाएगी, जो यह सुनिश्चित करेगा कि अपराध की प्रभावी जांच हो रही है और तर्कसंगत निर्णय लिया गया है। युगल/परिवार को सुरक्षा प्रदान करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए। जिला मजिस्ट्रेट/पुलिस अधीक्षक को अत्यंत संवेदनशीलता के साथ इस तरह के युगल/परिवार के लिए खतरे से संबंधित शिकायत का निपटारा करना चाहिए।  दंडात्मक उपाय (Punitive Measures)  कोई भी पुलिस अधिकारी या जिला अधिकारी/अधिकारियों द्वारा निर्देशों का पालन करने की विफलता को जानबूझकर लापरवाही या कदाचार माना जाएगा, जिसके लिए सेवा नियमों के तहत विभागीय कार्रवाई की जानी चाहिए। यह 6 महीने के अंदर ही कर ली जाएगी। अंतर-जातीय विवाह वाले 4 युगलों के लिए उत्पीड़न की शिकायतों के लिए राज्य सरकार प्रत्येक जिले में विशेष सेल बनाएगी, जिसमें पुलिस अधीक्षक, जिला समाज कल्याण अधिकारी और जिला आदि-द्रविड़ कल्याण अधिकारी शामिल होंगे। ये विशेष सेल इस तरह की शिकायतों को प्राप्त करने और पंजीकरण करने के लिए 24 घंटे की हेल्पलाइन सुविधा प्रदान करेंगे तथा युगलों को आवश्यक सहायता/सलाह और सुरक्षा प्रदान करेंगे। युगलों के खिलाफ ऑनर किलिंग अथवा हिंसा के लिए निर्धारित न्यायालय/फास्ट ट्रैक कोर्ट के समक्ष मुकदमा चलाया जाएगा। मुकदमे को अपराध के संज्ञान लेने की तिथि से 6 महीने के अंदर निस्तारित किया जाएगा।  निष्कर्ष    निरंतर बढ़ रही ऑनर किलिंग की घटनाओं के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया यह ऐतिहासिक निर्णय है। वर्ष 2014 से 2016 के मध्य ऑनर किलिंग के 288 मामले संज्ञान में आए। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014 में  ऑनर किलिंग के 28 मामले, वर्ष 2015 में 192 मामले तथा वर्ष 2016 में 68 मामले संज्ञान में आए। ऐसी स्थिति में जब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चुनने के अधिकार (Right to Choose) को मौलिक अधिकार घोषित किया गया है, उम्मीद की जानी चाहिए ऑनर किलिंग जैसे आपराधिक कृत्यों को नियंत्रित किया जा सकेगा।

सर्वोच्च न्यायालय ने 27 मार्च, 2018 को दिए एक निर्णय के तहत ‘चुनने के अधिकार’ (Right to Choose) को मौलिक अधिकार माना है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश ए.एम. खानविल्कर और न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड की तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने कहा है कि एक बार जब दो वयस्क व्यक्ति विवाह में प्रवेश करने के लिए सहमत हों तो परिवार या समुदाय या कबीले की सहमति जरूरी नहीं। राज्य या पितृसत्तात्मक सर्वोच्चता द्वारा विवाह करने की सहमति व्यक्त करने वाले वयस्कों को रोकना अवैध है। जब दो वयस्क एक-दूसरे को जीवन-साथी के रूप में चुनते हैं, तो यह उनकी पसंद की एक अभिव्यक्ति है, जो संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत शामिल है।

पृष्ठभूमि

शक्तिवाहिनी नामक एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को सम्मान के लिए अपराधों (Honour Killings) से निपटने के लिए प्रतिबंधात्मक कदम उठाने के लिए निर्देश मांगा गया था। देश में विशेषकर उत्तर-भारत में बढ़ रही इस प्रकार की हिंसक गतिविधियों को देखते हुए इस संस्था ने एक याचिका दाखिल की थी।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

शक्तिवाहिनी बनाम भारत संघ एवं अन्य (Shakti Vahini Versus Union of India and Others) वाद में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा द्वारा स्वयं का फैसला फ्रांसीसी दार्शनिक और चिंतक सिमोन वेल (Simone Weil) के एक उद्धरण से शुरू होता है, ‘‘स्वतंत्रता शब्द को ठोस अर्थ में लेने पर इसमें चयन करने की क्षमता शामिल होती है’’ (Liberty, taking the word in its concrete sense consists in the ability to choose)। वर्ग सम्मान, जो कुछ भी माना जाता है, वह किसी व्यक्ति की पसंद को कम नहीं कर सकता, जिसे वह हमारे अनुकंपित संविधान के तहत आनंद लेने का हकदार है।

दो वयस्कों द्वारा विवाह करने के लिए परिवार/समुदाय/कबीले की अनावश्यक सहमति पर न्यायालय ने यह भी कहा कि एक बार दो वयस्क व्यक्ति के विवाह में प्रवेश करने के लिए सहमत हो जाने पर परिवार या समुदाय या कबीले की सहमति जरूरी नहीं है। खंडपीठ ने निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किए हैं-

निवारक उपाय (Preventive Steps)
  • राज्य सरकारों को तुरंत उन जिलों, उप-प्रभागों और/या गांवों की पहचान करनी चाहिए जहां पिछले पांच वर्षों में ऑनर किलिंग अथवा खाप पंचायत की सभा के उदाहरण देखने को मिले हैं।
  • संबंधित राज्यों के गृह विभाग के सचिव यह सुनिश्चित करने के लिए संबंधित जिलों के पुलिस अधीक्षक को यह निर्देश दे कि चिह्नित क्षेत्रों के पुलिस स्टेशन के प्रभावी अतिरिक्त सतर्कता बरतें, यदि कोई अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक विवाह का मामला सामने आता है।
  • यदि कहीं खाप पंचायत की प्रस्तावित सभा के बारे में किसी पुलिस अधिकारी या जिला प्रशासन के किसी अधिकारी को सूचना प्राप्त हो, तो उसे तुरंत अपने वरिष्ठ अधिकारी को सूचित करेंगे।
  • ऐसी जानकारी प्राप्त होने पर पुलिस उपाधीक्षक तुरंत खाप पंचायत के सदस्यों के साथ सहभागिता करके यह बताएंगे कि ऐसी बैठक/सभा आयोजित करने की कानून द्वारा अनुमति नहीं है।
  • इसके बावजूद भी अगर खाप पंचायत की बैठक आयोजित की जाती है, तो पुलिस उपाधीक्षक व्यक्तिगत रूप से बैठक के दौरान उपस्थित रहेंगे और सभा पर यह प्रभाव डालेंगे कि उस दंपति अथवा जोड़े के परिवार के सदस्यों को नुकसान पहुंचाने वाला कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा। सभा के सदस्यों की चर्चा और भागीदारी की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाए, जिसके आधार पर कानून लागू करने वाली मशीनरी उचित कार्रवाई कर सके।
  • पुलिस उपाधीक्षक को ऐसा लगता है कि दंपति या उसके परिवार के सदस्यों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, तो वह तुरंत जिला मजिस्ट्रेट/उप-विभागीय मजिस्ट्रेट को संबंधित क्षेत्र के सक्षम प्राधिकारी सी.आर.पी.सी. की धारा 144 के तहत निवारक कदम उठाने के आदेश देने के लिए प्रस्ताव करेगा, साथ  ही सी.आर.पी.सी. की धारा 151 के तहत सभा में भागीदारी करने वालों की गिरफ्तारी भी।

उपचारात्मक उपाय (Remedial Measures)
  • राज्य पुलिस द्वारा उठाए गए निवारक उपायों के बावजूद यदि स्थानीय पुलिस के संज्ञान में आता है कि खाप पंचायत ने किसी अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक विवाह करने वाले जोड़े/परिवार के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए आदेश दिया है, तो उस क्षेत्र के पुलिस अधिकारी के पास तुरंत भारतीय दंड संहिता के अधीन धारा 141, 143 तथा धारा 506 के साथ पठित धारा 503 के तहत एफ.आई.आर. दर्ज करने का कारण होगा।
  • एफ.आई.आर. के बाद पुलिस अधीक्षक/पुलिस उपाधीक्षक को एक साथ सूचना प्रदान की जाएगी, जो यह सुनिश्चित करेगा कि अपराध की प्रभावी जांच हो रही है और तर्कसंगत निर्णय लिया गया है।
  • युगल/परिवार को सुरक्षा प्रदान करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए।
  • जिला मजिस्ट्रेट/पुलिस अधीक्षक को अत्यंत संवेदनशीलता के साथ इस तरह के युगल/परिवार के लिए खतरे से संबंधित शिकायत का निपटारा करना चाहिए।

दंडात्मक उपाय (Punitive Measures)
  • कोई भी पुलिस अधिकारी या जिला अधिकारी/अधिकारियों द्वारा निर्देशों का पालन करने की विफलता को जानबूझकर लापरवाही या कदाचार माना जाएगा, जिसके लिए सेवा नियमों के तहत विभागीय कार्रवाई की जानी चाहिए। यह 6 महीने के अंदर ही कर ली जाएगी।
  • अंतर-जातीय विवाह वाले 4 युगलों के लिए उत्पीड़न की शिकायतों के लिए राज्य सरकार प्रत्येक जिले में विशेष सेल बनाएगी, जिसमें पुलिस अधीक्षक, जिला समाज कल्याण अधिकारी और जिला आदि-द्रविड़ कल्याण अधिकारी शामिल होंगे।
  • ये विशेष सेल इस तरह की शिकायतों को प्राप्त करने और पंजीकरण करने के लिए 24 घंटे की हेल्पलाइन सुविधा प्रदान करेंगे तथा युगलों को आवश्यक सहायता/सलाह और सुरक्षा प्रदान करेंगे।
  • युगलों के खिलाफ ऑनर किलिंग अथवा हिंसा के लिए निर्धारित न्यायालय/फास्ट ट्रैक कोर्ट के समक्ष मुकदमा चलाया जाएगा। मुकदमे को अपराध के संज्ञान लेने की तिथि से 6 महीने के अंदर निस्तारित किया जाएगा।

निष्कर्ष

निरंतर बढ़ रही ऑनर किलिंग की घटनाओं के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया यह ऐतिहासिक निर्णय है। वर्ष 2014 से 2016 के मध्य ऑनर किलिंग के 288 मामले संज्ञान में आए। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014 में  ऑनर किलिंग के 28 मामले, वर्ष 2015 में 192 मामले तथा वर्ष 2016 में 68 मामले संज्ञान में आए। ऐसी स्थिति में जब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चुनने के अधिकार (Right to Choose) को मौलिक अधिकार घोषित किया गया है, उम्मीद की जानी चाहिए ऑनर किलिंग जैसे आपराधिक कृत्यों को नियंत्रित किया जा सकेगा।