Thursday 7 June 2018

गांधी जी के अहिंसात्मक आंदोलन की तपिश ने न केवल सर्वोच्च सत्ता को वार्ता की मेज पर आने को बाध्य किया, अपितु जन-सामान्य के बीच जुझारुपन की भावना को भी तीक्ष्ण किया। टिप्पणी कीजिये।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास काफी पुराना है, परंतु जिस महानायक ने राष्ट्रीय आंदोलन की दिशा को नया मोड़ दिया वह थे महात्मा गांधी। वे केवल एक राजनीतिक संघर्ष के पथप्रदर्शक नहीं थे, बल्कि उन्होंने हिंसा के युग में अहिंसा जैसी अद्वितीय नैतिक बल एवं नई कार्य-तकनीक का अधिरोपण किया। उस दौर में जब सभी राष्ट्रीय आंदोलनों में हिंसा का समावेश था तब उनका स्वाधीनता संघर्ष पूरी तरह अहिंसात्मक था। वे व्यवहारिक राजनीति में आदर्शवाद लेकर आए तथा इसकी वैधता का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया।    गांधी जी के आगमन के पूर्व भारत का स्वतंत्रता संग्राम चाहे कांग्रेस हो या क्रांतिकारी, समाज के निश्चित वर्गों तक ही सीमित था। गांधी जी ने सर्वप्रथम पूरे भारत की यात्रा की एवं विभिन्न वर्गों की समस्याओं को जाना। उन्होंने चंपारण एवं खेड़ा सत्याग्रह के द्वारा किसानों एवं मजदूरों की समस्याओं को उठाया।    असहयोग एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन के द्वारा उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के जनाधार को बढ़ाया, जिसमें किसान, मज़दूर, महिलाएँ, छात्र, अल्पसंख्यक सभी शामिल हुए। लोगों में स्वतंत्रता की भावना का विकास हुआ तथा जनसामान्य में राजनीतिक शिक्षा का प्रसार हुआ। उनके रचनात्मक कार्यों, जैसे कि शराबबंदी, शिक्षा का भारतीयकरण, खादी को प्रोत्साहन, अस्पृश्यता उन्मूलन के लिये अभियान तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिये कार्य करने के कारण उनकी छवि अंग्रेजों के साथ-साथ सामाजिक बुराइयों से भी लड़ने वाले नेता की बनी।    गांधी जी का अहिंसावादी दर्शन इस मत पर आधारित था कि आंदोलन के हिंसक चरित्र में सरकार बल प्रयोग कर जनता के प्रतिरोध एवं आत्मबल को भयानक दमन से शांत कर देती है जो भावी आंदोलन के लिये अनुचित होगा। अतः उन्होंने संघर्ष-विराम-संघर्ष की रणनीति के तहत समझौतावादी दृष्टिकोण अपनाते हुए एक ओर जनता की बलिदानी भावना को बनाए रखा तो वहीं, दूसरी ओर सरकार को वार्ता के लिये भी बाध्य किया।    जब आंदोलन अहिंसक हो और इसे व्यापक जनसमर्थन प्राप्त हो तो, सरकार के समक्ष बातचीत से समस्या सुलझाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं रह जाता है। अतः सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान स्वयं वायसराय लॉर्ड इरविन ने गांधी जी से बात की जिसके फलस्वरूप गांधी जी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन गए।     अतः यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय आंदोलन के अहिंसात्मक स्वरूप ने जनमानस की भागीदारी को प्रेरित किया। लोगों में सहनशीलता एवं अधिकारों के मांग के प्रति जुझारूपन आया। अतः नेहरू ने सत्य ही कहा है कि गांधी जी भारत की भूमि पर एक तूफान की तरह आए थे जिसने पूरे भारत को झकझोर दिया।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास काफी पुराना है, परंतु जिस महानायक ने राष्ट्रीय आंदोलन की दिशा को नया मोड़ दिया वह थे महात्मा गांधी। वे केवल एक राजनीतिक संघर्ष के पथप्रदर्शक नहीं थे, बल्कि उन्होंने हिंसा के युग में अहिंसा जैसी अद्वितीय नैतिक बल एवं नई कार्य-तकनीक का अधिरोपण किया। उस दौर में जब सभी राष्ट्रीय आंदोलनों में हिंसा का समावेश था तब उनका स्वाधीनता संघर्ष पूरी तरह अहिंसात्मक था। वे व्यवहारिक राजनीति में आदर्शवाद लेकर आए तथा इसकी वैधता का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया।

गांधी जी के आगमन के पूर्व भारत का स्वतंत्रता संग्राम चाहे कांग्रेस हो या क्रांतिकारी, समाज के निश्चित वर्गों तक ही सीमित था। गांधी जी ने सर्वप्रथम पूरे भारत की यात्रा की एवं विभिन्न वर्गों की समस्याओं को जाना। उन्होंने चंपारण एवं खेड़ा सत्याग्रह के द्वारा किसानों एवं मजदूरों की समस्याओं को उठाया।

असहयोग एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन के द्वारा उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के जनाधार को बढ़ाया, जिसमें किसान, मज़दूर, महिलाएँ, छात्र, अल्पसंख्यक सभी शामिल हुए। लोगों में स्वतंत्रता की भावना का विकास हुआ तथा जनसामान्य में राजनीतिक शिक्षा का प्रसार हुआ। उनके रचनात्मक कार्यों, जैसे कि शराबबंदी, शिक्षा का भारतीयकरण, खादी को प्रोत्साहन, अस्पृश्यता उन्मूलन के लिये अभियान तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिये कार्य करने के कारण उनकी छवि अंग्रेजों के साथ-साथ सामाजिक बुराइयों से भी लड़ने वाले नेता की बनी।

गांधी जी का अहिंसावादी दर्शन इस मत पर आधारित था कि आंदोलन के हिंसक चरित्र में सरकार बल प्रयोग कर जनता के प्रतिरोध एवं आत्मबल को भयानक दमन से शांत कर देती है जो भावी आंदोलन के लिये अनुचित होगा। अतः उन्होंने संघर्ष-विराम-संघर्ष की रणनीति के तहत समझौतावादी दृष्टिकोण अपनाते हुए एक ओर जनता की बलिदानी भावना को बनाए रखा तो वहीं, दूसरी ओर सरकार को वार्ता के लिये भी बाध्य किया।

जब आंदोलन अहिंसक हो और इसे व्यापक जनसमर्थन प्राप्त हो तो, सरकार के समक्ष बातचीत से समस्या सुलझाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं रह जाता है। अतः सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान स्वयं वायसराय लॉर्ड इरविन ने गांधी जी से बात की जिसके फलस्वरूप गांधी जी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन गए। 

अतः यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय आंदोलन के अहिंसात्मक स्वरूप ने जनमानस की भागीदारी को प्रेरित किया। लोगों में सहनशीलता एवं अधिकारों के मांग के प्रति जुझारूपन आया। अतः नेहरू ने सत्य ही कहा है कि गांधी जी भारत की भूमि पर एक तूफान की तरह आए थे जिसने पूरे भारत को झकझोर दिया।