Tuesday, 24 April 2018

‘नैरो मनी’ और ‘ब्रॉड मनी’


डिफ्लेशन और इंफ्लेशन को नियंत्रित करने के लिये आरबीआई ‘नैरो मनी’ और ‘ब्रॉड मनी’ के रूप में धन को वर्गीकृत कर मनी सप्लाई पर नज़र रखता है।

नैरो मनी 
‘नैरो मनी’ के दो पैमाने होते हैं ‘एम1’ और ‘एम2’।

➤ ‘एम1’ में जनता के पास मौजूद करेंसी, बैंकों के पास डिमांड डिपॉजिट यानी बचत और चालू खातों में जमा राशि और आरबीआई के पास जमा अन्य राशियों को शामिल किया जाता है। 

 इसमें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष व विश्व बैंक के पास मौजूद भारत की जमाराशियों और इंटर बैंक डिपॉजिट को शामिल नहीं किया जाता है। 

 ‘एम1’ में जब डाकघर की जमा बचत राशियों को जोड़ लिया जाता है तो उस योग को ‘एम2’ कहते हैं।


ब्रॉड मनी 
‘ब्रॉड मनी’ के भी दो सूचक होते हैं ‘एम3’ और ‘एम4’। इन दोनों को ही ब्रॉड मनी कहते हैं।

 ‘एम3’ में ‘एम1’ एवं बैंकों के पास जमा टाइम डिपॉजिट यानी फिक्स्ड और रिकरिंग डिपॉजिट को शामिल किया जाता है। 

 ‘ब्रॉड मनी’ का दूसरा सूचक ‘एम4’ होता है जिसमें ‘एम3’ और डाकघरों में जमा सभी तरह के डिपॉजिट्स शामिल होते हैं। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी) की राशि को शामिल नहीं किया जाता है। 

 अर्थव्यवस्था में मनी सप्लाई पर नज़र रखने का सबसे प्रचलित तरीका ‘एम3’ है। ‘एम1’ में नकदी का योगदान सबसे अधिक होता है जबकि ‘एम4’ में यह सबसे कम होता है।