Monday 30 April 2018

वसीयत और नसीहत


एक घर मे तीन भाई और एक बहन थी...बड़ा और छोटा पढ़ने मे बहुत तेज थे। उनके माँ-बाप उन चारों से बेहद प्यार करते थे मगर मंझले बेटे से थोड़ा परेशान से थे। 

बड़ा बेटा पढ़ लिखकर डाक्टर बन गया। छोटा भी पढ़ लिखकर इंजीनियर बन गया। मगर मंझला बिलकुल अवारा और गंवार बनके ही रह गया। सबकी शादी हो गई। बहन और मंझले को छोड़ दोनों भाईयो ने Love मैरीज की थी।

बहन की शादी भी अच्छे घराने मे हुई थी। आखीर भाई सब डाक्टर इंजीनियर जो थे। अब मंझले को कोई लड़की नहीं मिल रही थी। बाप भी परेशान माँ भी। बहन जब भी मायके आती सबसे पहले छोटे भाई और बड़े भैया से मिलती। मगर मंझले से कम ही मिलती थी। क्योंकि वह न तो कुछ दे सकता था और न ही वह जल्दी घर पे मिलता था। वैसे वह दिहाड़ी मजदूरी करता था। पढ़ नहीं सका तो...नौकरी कौन देता। मंझले की शादी किये बिना बाप गुजर गये।

माँ ने सोचा कहीं अब बँटवारे की बात न निकले इसलिए अपने ही गाँव से एक सीधी साधी लड़की से मंझले की शादी करवा दी। शादी होते ही न जाने क्या हुआ की मंझला बड़े लगन से काम करने लगा ।

दोस्तों ने कहा... ए चन्दू आज अड्डे पे आना।
चंदू - आज नहीं फिर कभी 
दोस्त - अरे तू शादी के बाद तो जैसे बीबी का गुलाम ही हो गया? 
चंदू - अरे ऐसी बात नहीं। कल मैं अकेला एक पेट था तो अपने रोटी के हिस्से कमा लेता था। अब दो पेट है आज कल और होगा।

घरवाले नालायक कहते थे कहते हैं मेरे लिए चलता है। मगर मेरी पत्नी मुझे कभी नालायक कहे तो मेरी मर्दानगी पर एक भद्दा गाली है। क्योंकि एक पत्नी के लिए उसका पति उसका घमंड इज्जत और उम्मीद होता है। उसके घरवालो ने भी तो मुझपर भरोसा करके ही तो अपनी बेटी दी होगी...फिर उनका भरोसा कैसे तोड़ सकता हूँ।

इधर घर पे बड़ा और छोटा भाई और उनकी पत्नियाँ मिलकर आपस मे फैसला करते हैं की...जायदाद का बंटवारा हो जाये क्योंकि हम दोनों लाखों कमाते है मगर मझला ना के बराबर कमाता है। ऐसा नहीं होगा।

माँ के लाख मना करने पर भी...बंटवारा की तारीख तय होती है। बहन भी आ जाती है मगर चंदू है की काम पे निकलने के बाहर आता है। उसके दोनों भाई उसको पकड़कर भीतर लाकर बोलते हैं की आज तो रूक जा? बंटवारा कर ही लेते हैं । वकील कहता है ऐसा नहीं होता। साईन करना पड़ता है।

चंदू - तुम लोग बंटवारा करो मेरे हिस्से मे जो देना है दे देना। मैं शाम को आकर अपना बड़ा सा अगूंठा चिपका दूंगा पेपर पर।

बहन- अरे बेवकूफ ...तू गंवार का गंवार ही रहेगा। तेरी किस्मत अच्छी है की तू इतनी अच्छे भाई और भैया मिलें
माँ- अरे चंदू आज रूक जा।

बंटवारे में कुल दस विघा जमीन मे दोनों भाई 5- 5 रख लेते हैं। और चंदू को पुस्तैनी घर छोड़ देते है तभी चंदू जोर से चिल्लाता है।

अरे???? फिर हमारी छुटकी का हिस्सा कौन सा है?
दोनों भाई हंसकर बोलते हैं 
अरे मूरख...बंटवारा भाईयो मे होता है और बहनों के हिस्से मे सिर्फ उसका मायका ही है।

चंदू - ओह... शायद पढ़ा लिखा न होना भी मूर्खता ही है। ठीक है आप दोनों ऐसा करो।
मेरे हिस्से की वसीयत मेरी बहन छुटकी के नाम कर दो।
दोनों भाई चकीत होकर बोलते हैं ।
और तू?

चंदू माँ की और देखके मुस्कुरा के बोलता है
मेरे हिस्से में माँ है न......
फिर अपनी बीबी की ओर देखकर बोलता है...मुस्कुरा के...क्यों चंदूनी जी...क्या मैंने गलत कहा? 

चंदूनी अपनी सास से लिपटकर कहती है। इससे बड़ी वसीयत क्या होगी मेरे लिए की मुझे माँ जैसी सासु मिली और बाप जैसा ख्याल रखना वाला पति।

बस यही शब्द थे जो बँटवारे को सन्नाटा मे बदल दिया। बहन दौड़कर अपने गंवार भैया से गले लगकर रोते हुए कहती है की..मांफ कर दो भैया मुझे क्योंकि मैं समझ न सकी आपको।

चंदू - इस घर मे तेरा भी उतना ही अधिकार है जीतना हम सभी का।
बहुओं को जलाने की हिम्मत कीसी मे नहीं मगर फिर भी जलाई जाती है क्योंकि शादी के बाद हर भाई हर बाप उसे पराया समझने लगते हैं। मगर मेरे लिए तुम सब बहुत अजीज हो चाहे पास रहो या दुर।

माँ का चुनाव इसलिए किया ताकी तुम सब हमेशा मुझे याद आओ। क्योंकि ये वही कोख है जहाँ हमने साथ साथ 9 - 9 महीने गुजारे। माँ के साथ तुम्हारी यादों को भी मैं रख रहा हूँ। 

दोनों भाई दौड़कर मझले से गले मिलकर रोते रोते कहते हैं आज तो तू सचमुच का बाबा लग रहा है। सबकी पलको पे पानी ही पानी। सब एक साथ फिर से रहने लगते है।