Wednesday 4 April 2018

जानें, क्या है एससी/एसटी ऐक्ट को लेकर पूरा विवाद और क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

अनुसूचित जाति-जनजाति ऐक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार सोमवार को पुनर्विचार याचिका दाखिल करने वाली है। शीर्ष अदालत के इस फैसले को तमाम दलित संगठनों और कानूनी जानकारों ने यह कहते हुए दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया था कि इससे वंचित समुदाय के लोगों की आवाज कमजोर होगी। यही नहीं तमाम दलित संगठनों ने इस फैसले के विरोध में आज को देशव्यापी बंद बुलाया है। 

जानें, क्या है यह पूरा विवाद और किस पक्ष की है क्या दलील....

यहाँ से शुरू हुआ मामला

➤ एससी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले एक शख्स ने महाराष्ट्र के सरकारी अधिकारी सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।शिकायत में महाजन पर शख्स ने अपने ऊपर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में अपने दो जूनियर एंप्लॉयीज के खिलाफ कानूनी कार्रवाई पर रोक लगाने का आरोप लगाया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि उन एंप्लॉयीज ने उन पर जातिसूचक टिप्पणी की थी।

➤ गैर-अनुसूचित जाति के इन अधिकारियों ने उस व्यक्ति की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में उसके खिलाफ टिप्पणी की थी। जब मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी ने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उनके वरिष्ठ अधिकारी से इजाजत मांगी तो इजाजत नहीं दी गई। इस पर उनके खिलाफ भी पुलिस में मामला दर्ज कर दिया गया। बचाव पक्ष का कहना है कि अगर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के खिलाफ ईमानदार टिप्पणी करना अपराध हो जाएगा तो इससे काम करना मुश्किल जो जाएगा।

➤ काशीनाथ महाजन ने एफआईआर खारिज कराने के लिए हाई कोर्ट का रुख किया था, लेकिन बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इससे इनकार कर दिया था।

➤ इसके बाद महाजन ने हाई कोर्ट के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। इस पर शीर्ष अदालत ने उन पर एफआईआर हटाने का आदेश देते हुए अनुसूचित जाति/जनजाति ऐक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक का आदेश दिया था। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दे दी थी।


एससी-एसटी ऐक्ट

इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। दलित संगठनों और कई राजनीतिक दलों की ओर से केंद्र सरकार से इस मसले पर अपना रुख स्पष्ट करने की मांग की गई। इसके बाद सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से कहा गया कि सरकार इस मसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगी।

क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए

एससी/एसटी ऐक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया था। इसके अलावा एससी/एसटी ऐक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में ऑटोमेटिक गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे ऐक्शन लेना चाहिए। यही नहीं शीर्ष अदालत ने कहा था कि सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती। गैर-सरकारी कर्मी की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की मंजूरी जरूरी होगी।

बता दें कि कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष के अलावा एनडीए के दलित और पिछड़े वर्ग से आने वाले जनप्रतिनिधियों ने भी मोदी सरकार से रिव्यू पिटिशन दाखिल करने की मांग की थी। इसके अलावा एनडीए के कुछ सहयोगी दलों ने भी नाखुशी जाहिर की थी।

क्या है दलित संगठनों की राय

दलित संगठनों का कहना है कि इससे 1989 का अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम कमजोर पड़ जाएगा। इस ऐक्ट के सेक्शन 18 के तहत ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। ऐसे में यह छूट दी जाती है तो फिर अपराधियों के लिए बच निकलना आसान हो जाएगा। इसके अलावा सरकारी अफसरों के खिलाफ केस में अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी को लेकर भी दलित संगठनों का कहना है कि उसमें भी भेदभाव किया जा सकता है।

क्या कहते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करने वालेशीर्ष अदालत के इस फैसले का पक्ष लेने वालों का कहना है कि इससे इस ऐक्ट के दुरुपयोग को कम किया जा सकेगा। इसके अलावा निर्दोष लोग कानूनी पेचीदगी में पड़ने से बचेंगे। हालांकि कानूनी जानकारों की राय इस पर बंटी हुई है।

पुनर्विचार के लिए सरकार ने तैयार किए तर्क

सरकारी सूत्रों ने बताया कि सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय द्वारा दाखिल किए जाने वाली इस याचिका में यह तर्क दिया जा सकता है कि कोर्ट के फैसले से एससी और एसटी ऐक्ट 1989 के प्रावधान कमजोर हो जाएंगे। याचिका में सरकार यह भी तर्क दे सकती है कि कोर्ट के मौजूदा आदेश से लोगों में कानून का भय खत्म होगा और इस मामले में और ज्यादा कानून का उल्लंघन हो सकता है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी ऐक्ट के बेजा इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए इसके तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया था।