Tuesday 3 April 2018

जानें कड़कनाथ मुर्गे के बारे में और कड़कनाथ मुर्गे को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग


वैज्ञानिक नाम: Gallus gallus domesticus

'कड़कनाथ'- मुर्गे की एक ऐसी प्रजाति है जो अपने रंग, स्वाद और पौष्टिकता तीनों के लिए देश भर में जानी जाती है काले रंग के इस मुर्गे का मीट जितना स्वादिष्ट होता है उतना ही पौष्टिक भी

वास्तव में यह एक जंगली मुर्गा है, जो पूरी तरह से प्राकृतिक वातावरण में रहने से सामान्य मुर्गो की तुलना में भारी भरकम और आक्रामक होता है। आमतौर पर यह जेट ब्लैक और काले में हल्का लाल रंग के पंखों वाला दो कलर में मिलता है। काले खून और स्वादिष्ट मांस के लिए जाना जाता है कड़कनाथ इसका खून का रंग भी सामन्यतः काले रंग का होता है। जबकि आम मुर्गे के खून का रंग लाल पाया जाता है। इसका मांश काफी कड़ा होता है। सामान्य मुर्गो के पकने की तुलना में कड़कनाथ का मांश दुगना समय लेता है। इसका स्वाद भी लाजवाब होता है।

लोगों के बीच प्रचलन है कि कड़कनाथ के मांस का सेवन करने से सैक्सुवल पवार बढ़ता है और यह शक्तिवर्धक दवाइयों से ज्यादा कारगर होता है। इसके चलते कड़कनाथ का जमकर शिकार हुआ। मध्यप्रदेश के झाबुआ में तो इसकी प्रजाति तक लुप्त होने लगी थी। नतीजतन सरकार ने इसके शिकार और खरीदी बिक्री पर पाबन्दी तक लगाई। चोरी छिपे इस मुर्गे की तस्करी तक हुई। काफी महंगे दाम पर (900 से 1000 रूपये प्रति किलो तक) यह मुर्गा के महानगरों की सैर करता रहा। अब जाकर इस मुर्गे की स्थिति सामान्य हो पाई है।हालांकि झाबुआ जिले से बाहर इसके परिवहन पर पाबंदी अभी भी लागू है।


मुख्य रूप से आदिवासी इलाकों में पाया जाता है कड़कनाथ मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा से कई शहरों में कड़कनाथ मुर्गे की सप्लाई होती है इस मुर्गे का मांस लोकल स्तर पर चार सौ से पांच सौ रुपये प्रति किलो बिकता है। और इसके अंडे की कीमत 50 रुपये प्रति अंडा है इससे होने वाली आमदनी के मद्देनज राज्य के दूसरे इलाकों में भी लोगो ने इसकी ब्रीडिंग शुरू की है 

चेन्नई स्थित GI पंजीकरण कार्यालय ने मध्य प्रदेश राज्य को मुर्गे की एक प्रजाति कड़कनाथ के लिये भौगोलिक संकेतक (GI) टैग दे दिया है। मध्य प्रदेश के ग्रामीण विकास ट्रस्ट, झाबुआ ने इसके लिये वर्ष 2012 में आवेदन किया था।

प्रमुख बिंदु 



➤ कड़कनाथ मुर्गा मूलत: मध्य प्रदेश राज्य के झाबुआ, अलीराजपुर और धार जिले के कुछ भागों में पाया जाता है।

➤ छत्तीसगढ़ द्वारा भी कड़कनाथ मुर्गे पर GI टैग की मांग की जा रही थी। लेकिन अंतत: मध्य प्रदेश के दावे को मान्यता दी गई। 

➤ कड़कनाथ मुर्गा मेलानिन वर्णक के कारण काले रंग का होता है। इसलिये इसे कालीमासी भी कहा जाता है।

➤ इसके पंख, माँस, हड्डियाँ और खून भी काले रंग के होते है। सामान्य मुर्गे का खून लाल रंग का होता है। 

➤ यह औषधीय गुणों से युक्त होता है तथा यह मुर्गे की अन्य प्रजातियों से अधिक पौष्टिक और सेहत के लिये लाभकारी होता है।

➤ जहाँ अन्य मुर्गो में 18-20% प्रोटीन पाया जाता है वहीं, कड़कनाथ मुर्गे में 25% प्रोटीन पाया जाता है। इसमें कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अपेक्षाकृत कम पाई जाती है और आयरन अधिक मात्रा में पाया जाता है।

➤ चिकन की अन्य किस्मों की तुलना में कड़कनाथ मुर्गे का उच्च-प्रोटीन युक्त माँस, चूजे और अंडे बहुत ज्यादा कीमत पर बेचे जाते हैं। 

भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication-GI)

➤ एक भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। 

➤ जीआई टैगजीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) मुख्य रूप से कुछ विशिष्ट उत्पादों (कृषि, प्राक्रतिक, हस्तशिल्प और औधोगिक सामान) को दिया जाता है, जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में 10 वर्ष या उससे अधिक समय से उत्पन्न या निर्मित हो रहा है इसका मुख्य उद्देश्य उन उत्पादों को संरक्षण प्रदान करना है

➤ इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषताएँ एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है। इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है। उदाहरण के तौर पर- दार्जिलिंग की चाय, जयपुर की ब्लू पोटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति के लड्डू कुछ प्रसिद्ध GI टैग हैं।

➤ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर GI का विनियमन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) पर समझौते के तहत किया जाता है।

➤ वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और सरंक्षण) अधिनियम, 1999 (Geographical Indications of goods ‘Registration and Protection’ act, 1999) के तहत किया जाता है, जो सितंबर 2003 से लागू हुआ था।

➤ वर्ष 2004 में ‘दार्जिलिंग टी’ जीआई टैग प्राप्त करने वाला पहला भारतीय उत्पाद है।*.भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष के लिये मान्य होता है।

GI पंजीकरण के लाभ

➤ यह भारत में भौगोलिक संकेतक के लिये कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।

➤ दूसरों के द्वारा किसी पंजीकृत भौगोलिक संकेतक के अनधिकृत प्रयोग को रोकता है।

➤ यह भारतीय भौगोलिक संकेतक के लिये कानूनी संरक्षण प्रदान करता है जिसके फलस्वरूप निर्यात को बढ़ावा मिलता है।

➤ यह संबंधित भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं के उत्पादकों की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है।हाल ही के GI टैग

➤ पश्चिम बंगाल को रसगुल्ला (Banglar Rasgolla) के लिये नवंबर 2017 में GI टैग दिया गया।

आंध्र प्रदेश को विशाखापत्तनम में वराह नदी के तट पर अवस्थित एटिकोप्पा का गाँव के लकड़ी के खिलौनों (Etikoppaka Bommalu) के लिये नवंबर 2017 में GI टैग दिया गया।

➤ पश्चिम बंगाल को गोबिंदगढ़ चावल के लिये अगस्त 2017 में GI टैग दिया गया।

➤ केरल का निलाम्बुर टीक, मामल्लपुरम (तमिलनाडु) का पत्थर स्थापत्य आदि हाल ही में दिये गए अन्य GI टैग है।