ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (जीडीपी) किसी भी देश की आर्थिक सेहत को मापने का पहला और जरूरी पैमाना है।
➤ जीडीपी किसी खास अवधि के दौरान कुल वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कीमत है।
➤ भारत में जीडीपी की गणना प्रत्येक तिमाही में की जाती है।
➤ जीडीपी का आंकड़ा अर्थव्यवस्था के प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में उत्पादन की वृद्धि दर पर आधारित होता है।
➤ भारत में कृषि, उद्योग व सेवा तीन प्रमुख घटक हैं, जिनमें उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत के आधार पर जीडीपी दर तय होती है।
➤ अगर हम कहते हैं कि देश की जीडीपी में सालाना तीन फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है तो यह समझा जाना चाहिए कि अर्थव्यवस्था तीन फीसदी की दर से बढ़ रही है, लेकिन अक्सर यह आंकड़ा महंगाई की दर को शामिल नहीं करता।
जीडीपी का हिसाब-किताब
➤ जीडीपी की गणना दो तरीके से की जाती है, क्योंकि उत्पादन की कीमतें महंगाई के साथ घटती बढ़ती रहती हैं।
➤ पहला पैमाना है कॉन्स्टेंट प्राइस, जिसके अंतर्गत जीडीपी की दर व उत्पादन का मूल्य एक आधार वर्ष में उत्पादन की कीमत पर तय होता है, जबकि दूसरा पैमाना करेंट प्राइस है, जिसमें उत्पादन वर्ष की महंगाई दर शामिल होती है।
कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी
भारत का सांख्यिकी विभाग उत्पादन व सेवाओं के मूल्यांकन के लिए एक आधार वर्ष यानी बेस ईयर तय करता है। इस वर्ष के दौरान कीमतों को आधार बनाकर उत्पादन की कीमत और तुलनात्मक वृद्धि दर तय की जाती है। यही कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी है।
➤ ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि जीडीपी की दर को महंगाई की उठा पटक से अलग रखकर सतत ढंग से मापा जा सके।
➤ भारत के मौजूदा जीडीपी का मूल्य 2011-12 कीमतों पर आधारित है।
करेंट प्राइस
➤ जीडीपी के उत्पादन मूल्य में अगर महंगाई की दर को जोड़ दिया जाए तो हमें आर्थिक उत्पादन की मौजूदा कीमत हासिल हो जाती है।
➤ फॉर्मूला सीधा है, बस कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी को तात्कालिक महंगाई दर से जोड़ना होता है।
➤ उदाहरण के लिए अगर किसी वर्ष का कॉन्स्टेंट प्राइस जीडीपी तीन फीसदी और महंगाई दर सात फीसदी है तो करेंट प्राइस जीडीपी दर दस फीसदी होगी।