Tuesday, 17 April 2018

बकरवाल समुदाय


कठुआ रेप केस के बाद से जम्मू-कश्मीर के मैदानी इलाकों में रहने वाला बकरवाल समुदाय चर्चा का विषय बना हुआ है। गुर्जर समाज के एक बड़े और रसूखदार तबके को 'बकरवाल' कहा जाता है। यह नाम कश्मीरी बोलने वाले विद्वानों द्वारा दिया गया है।

 बकरवाल समुदाय के लोग भेड़-बकरी चराने का काम करते है। गुर्जर और बकरवालों को तीन हिस्सों में बाँटा जा सकता है।

➤ कुछ गुर्जर और बकरवाल पूरी तरह से खानाबदोश (फुली नोमाद) होते हैं।  ये लोग सिर्फ जंगलों में गुजर-बसर करते हैं। इनके पास अपना कोई ठिकाना नहीं होता है। 

► दूसरी श्रेणी में आंशिक खानाबदोश आते हैं। ये वे लोग हैं जिनके पास कहीं एक जगह रहने का ठिकाना है और ये आस-पास के जंगलों में कुछ समय के लिये चले जाते हैं और कुछ समय बिताकर वापस अपने डेरे पर आ जाते हैं। 

► तीसरी श्रेणी में शरणार्थी खानाबदोश (माइग्रेटरी नोमाद) को शामिल किया जाता है जिनके पास पहाड़ी इलाकों में धोक (रहने का ठिकाना) मौजूद हैं और यहाँ मैदानी इलाकों में भी रहने का ठिकाना है।

➽ वर्तमान में गुर्जर और बकरवाल देश के 12 राज्यों में रह रहे हैं। भारत के अलावा पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भी इनकी अच्छी खासी संख्या है।

 इनकी एक विशिष्ट भाषा, लिबास, खान-पान और रहन-सहन है। वर्ष 1991 में बकरवालों को आदिवासी का दर्जा दिया गया।

  2011 की जनगणना के मुताबिक, जम्मू कश्मीर में गुर्जर बकरवाल की कुल आबादी लगभग 12 लाख के करीब है, अर्थात् कुल जनसंख्या का 11 प्रतिशत।

 माल-मवेशी बेचकर बसर करने वाले बकरवाल लोग आमतौर पर भेड़ बकरी, घोड़े और कुत्तों को पालते हैं।

 बकरवाल समुदाय के लोग आज भी 'बार्टर सिस्टम' के माध्यम से अपनी जरूरतों का सामान खरीदते है। इन लोगों के बैंक में खाते नहीं होते और न ही बैंकिंग सिस्टम में इनका विश्वास होता है।

 आज भी बड़ी संख्या में बकरवाल समुदाय के लोग अशिक्षित हैं। हालाँकि इनकी सहयता के लिये सरकार ने बड़ी संख्या में मोबाइल स्कूलों का इंतजाम किया है, तथापि इस संबंध में कोई कामयाबी हासिल नहीं हुई है।

 देश की सीमा से सटे इलाकों में रहने वाले गुर्जर बकरवाल समुदाय के लोग देश की रक्षा में लगातार अपना योगदान देते रहे हैं।