Thursday, 5 April 2018

होमरूल से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके उदय के कारणों पर प्रकाश डालते हुए बताएँ कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को इसने किस प्रकार प्रभावित किया।


होमरूल का तात्पर्य एक ऐसी स्थिति से है जिसमें किसी देश का शासन वहाँ के स्थायी नागरिकों के द्वारा ही चलाया जाता है। प्रशासन में ब्रिटिश नियंत्रण को कम करने के लिये होमरूल को एक आंदोलन के रूप में 1870 से 1907 के बीच आयरलैंड में चलाया गया था। 

ऐनी बेसेंट तथा तिलक के नेतृत्व में चलाया गया भारतीय होमरूल आंदोलन आयरिश होमरूल आंदोलन से प्रभावित था।

भारत में इसके उदय के कारणों को  निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है-

➤ कांग्रेस के विभाजन के बाद राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं हो पाया था और जनता राजनीतिक  निष्क्रियता से  ऊब चुकी थी। ऐसे में राजनीतिक निष्क्रियता को समाप्त करने की इच्छा होमरूल के प्रमुख उत्प्रेरक के रूप में उभरी।

 इसके अलावा, प्रथम विश्वयुद्ध तथा इसके बाद अंग्रेजों के अत्याचार में भी वृद्धि हुई थी। साथ ही जनता बढ़ती महंगाई से भी त्रस्त थी। इन कारणों ने जनता को आंदोलन के लिये और भी प्रेरित किया।

 इसके अलावा नरमपंथी तथा गरमपंथी दोनों ही पक्ष कांग्रेस के विभाजन से प्रभावित थे। कांग्रेस के टूटने के कारण सरकार नरमपंथियों की मांगों को नज़रअंदाज़ कर रही थी। ऐसे में होमरूल आंदोलन दोनों के बीच समन्वय तथा सरकार के सामने भारतीय मांगों को सशक्त रूप से उठाने का साधन बनकर  उभरा।

 तिलक को जेल से आजा़द किया जाना भी आंदोलन के उत्प्रेरकों में शामिल है। वस्तुतः तिलक आंदोलन के एक महत्त्वपूर्ण नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरे और उन्होंने आंदोलन का व्यापक प्रचार किया।


भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभाव

 यद्यपि अंग्रेजों के दमन तथा कूटनीति के कारण आन्दोलनकर्ता स्वराज के लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रहे किंतु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को इसने अत्यंत व्यापक स्तर पर प्रभावित किया।

 होमरूल आंदोलन के दौरान पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से स्वराज के महत्त्व का व्यापक स्तर पर प्रचार किया गया जिससे जनता में राष्ट्रीय चेतना बढ़ी। जनता की यही चेतना आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित करती रही।

 इसके अलावा, यह आंदोलन कांग्रेस के एकीकरण में भी सहायक रहा। आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व कांग्रेस के द्वारा ही किया गया।

 होमरूल लीग ने सामूहिक सामाजिक कार्यों का आयोजन किया तथा स्थानीय प्रशासन के कार्यों में भाग लिया; इससे यह साबित हुआ कि भारतीय स्वशासन करने में समर्थ हैं। इससे भारतीयों का आत्मविश्वास बढ़ा और स्वतंत्रता आन्दोलन सशक्त हुआ। 

 आंदोलन की कठोर दमन की सूची में तिलक द्वारा अहिंसक विरोध की नीति अपनाई गई। आगे चलकर यही नीति स्वतंत्र आंदोलन में व्यापक स्तर पर प्रयोग की गई।

 इसके अलावा आंदोलन का विस्तार शहरों के साथ-साथ गाँवों में भी किया गया। उदाहरण के लिये ऐनी बेसेंट के नेतृत्व वाली लीग की कई  शाखाएँ गाँवों में थी। उत्तर प्रदेश और गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में भी आंदोलन की शाखाओं का विस्तार था।  इससे आंदोलन का सामाजिक आधार व्यापक हुआ।

 तिलक ने स्वराज के साथ-साथ स्थानीय भाषाओं के प्रयोग का मुद्दा उठाया, इससे संपूर्ण देश में एक भाषा के रूप में हिंदी का महत्त्व बढ़ा जिससे एकता तथा राष्ट्रवाद की भावना प्रसारित हुई और राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन और भी सशक्त रूप में उभरा।

 इस तरह होमरूल आन्दोलन ने  भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान पनप रहे सूनेपन को समाप्त किया और जन-मानस को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने का कार्य किया।