Tuesday 3 April 2018

चिकेनपॉक्स (Chickenpox)/(छोटी-माता)


चिकेनपॉक्स (छोटी माता) वेरीसेल्ला जोस्टर (Varicella zoster) वायरस से फैलनेवाली एक संक्रामक बीमारी है। यह बहुत ही संक्रामक होती है और संक्रमित निसृत पदार्थों को सांस के साथ अंदर ले जाने से फैलती है। छोटी माता (चिकन पॉक्स) के संक्रमण से पूरे शरीर में फुंसियों जैसी चक्तियाँ विकसित हो जाती हैं जो दिखने में खसरे की बीमारी की तरह भी लगती है। इस बीमारी में पूरे शरीर में खुजली करने का बहुत मन करता है। चिकन पॉक्स का संक्रमण महामारी की तरह फैलता है। आम तौर पर ये आपको उस इंसान से हो सकता है जो चेचक का रोगी हो। ऐसे रोगियों द्वारा छुए सामान को छूने से, खाँसने से, हाथ मिलाने से, जूठा खाने से या इनके आस पास रहने से आपको संक्रमण हो सकता है। आज कल कुछ ऐसे वैज्ञानिक संस्थान में काम करने से भी ये रोग हो सकता है जहाँ वैरियोला वायरस के नमूने रखे हुए है।एक रोगी में चेचक के शुरुआती लक्षण दिखते ही आस पास के लोगो में संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। यह आशंका सभी दानो या चकतों के झड़ जाने के बाद ही खत्म होती है जिसमे चार हफ्ते या इससे ज्यादा समय लगता है। अगर आप संक्रमित होते है तो आपमें शुरुआती लक्षण एक हफ्ते से पंद्रह दिन बाद ही दिखना शुरू होंगे।


चिकन पॉक्स के लक्षण

चिकन पॉक्स की शुरुआत से पहले पैरों और पीठ में पीड़ा और शरीर में हल्की बुखार, हल्की खांसी, भूख में कमी, सर में दर्द, थकावट, उल्टियां वगैरह जैसे लक्षण नजर आते हैं और 24 घंटों के अन्दर पेट या पीठ और चेहरे पर लाल खुजलीदार फुंसियां उभरने लगती हैं, जो बाद में पूरे शरीर में फैल जाती हैं जैसे कि खोपड़ी पर, मुहं में, नाक में, कानों और गुप्तांगो पर भी। आरम्भ में तो यह फुंसियां दानों और किसी कीड़े के डंक की तरह लगती हैं, पर धीरे धीरे यह तरल पदार्थ युक्त पतली झिल्ली वाले फफोलों में परिवर्तित हो जाती हैं। चिकन पॉक्स के फफोले एक इंच चौड़े होते हैं और उनका तल लाल किस्म के रंग का होता है और 2 से 4 दिनों में पूरे शरीर में तेजी से फैल जाते हैं।

रोग अवधि

चिकनपॉक्स आमतौर पर हलका होता है और 5-10 दिनों तक रहता है। फफोले धीरे-धीरे सूख जाते हैं और फिर उनकी पपड़ी निकल आती है। ये लगभग एक सप्ताह के आस-पास शांत होने लगते हैं, लेकिन पूरी तरह जाने में 2-3 सप्ताह लग जाते हैं। सभी लक्षणों के जाने के बाद भी सूखी खाँसी बची रह सकती है।

चिकनपॉक्स (Chickenpox) वाले किसी व्यक्ति से संपर्क के बाद या चिकनपॉक्स लेलक्षण विकसित होने में लगभग 2 सप्ताह (10 से 21 दिनों तक) का समय लग सकता है। अधिकांश लोगों के लिए, यदि चिकन पॉक्स एक बार हो जाता है तो उनमें इम्युनिटी हो जाती है और रोग दुबारा नहीं होता।

डॉक्टर द्वारा आम सवालों के जवाब

Q1.चिकनपॉक्स (छोटी माता) क्या है? 
चिकनपॉक्स (छोटी माता) तीव्र संक्रामक, अत्यंक शीघ्रता से प्रसारित होने वाला रोग है जो इसके संभावित रोगियों में वेरिसेला जोस्टर वायरस द्वारा होता है। इसमें अत्यंत तेज बुखार आता है और एक के बाद करके निशान उभरते जाते हैं। 

Q2. मुझे चिकनपॉक्स (छोटी माता) कैसे हो सकता है? 
चिकनपॉक्स (छोटी माता) एक हवा द्वारा लाया गया रोग है और एक व्यक्ति से दूसरे में फैलता है। छोटी माता से पीड़ित रोगी निशान दिखने के 1-2 दिन पहले से लेकर निशान सूख जाने तक अत्यधिक संक्रमित होते हैं।

Q3. मैं चिकनपॉक्स (छोटी माता) को कैसे पहचान सकता हूँ? ये कितने समय तक रहता है? 
चिकनपॉक्स (छोटी माता) .को उसके पहचान कारक निशानों द्वारा पहचाना जाता है। नियमित तरीके की जांचों में चिकनपॉक्स (छोटी माता) को पहचान लेने की कोई जाँच नहीं है। निशान संक्रमण होने के आमतौर पर  2-3 दिन बाद निकलते हैं और 6-7 दिन तक रहते हैं, और बिना कोई दाग-धब्बा छोड़े ठीक हो जाते हैं। 

Q4.चिकनपॉक्स (छोटी माता) की चिकित्सा क्या है? 
चिकनपॉक्स (छोटी माता) के इलाज में वायरस रोधी दवाएँ दी जाती हैं। चूंकि रोग अत्यंत संक्रामक है, इसलिए प्रभावित रोगी को घर में रहकर सभी के संपर्क से दूर रहना चाहिए। 

Q5.चिकनपॉक्स (छोटी माता) की समस्याएँ क्या है?
चिकनपॉक्स (छोटी माता) के निशान यदि आँखों के अधिक समीप हों तो यह आँखों में फ़ैल सकता है। यदि उचित चिकित्सा ना मिले तो यह कॉर्निया को स्थाई क्षति पहुँचा सकता है जिससे दृष्टि की हानि हो सकती है। आगामी समस्या हर्पीज जोस्टर शिन्गल्स है, जिसमें निष्क्रिय वायरस फिर से सक्रिय होता है और सम्मिलित तंत्रिकाओं पर निशान कर देता है। ये हमेशा शरीर के एक तरफ के हिस्से में ही होता है और इसमें अत्यंत तीव्र दर्द होता है। 

Q6.मैं चिकनपॉक्स (छोटी माता) से कैसे बच सकता हूँ?
चिकनपॉक्स (छोटी माता) टीके द्वारा रोके जा सकने वाला रोग है। यद्यपि बाद में इसके कोई हानिकारक दुष्प्रभाव नहीं बचते लेकिन टीके द्वारा रोग और रोग के निशानों द्वारा बचा जा सकता है। 

चेचक का इलाज एवम रोकथाम–12,000 साल पुराने चेचक रोग का आज तक कोई सटीक इलाज नहीं है। यह अपने आप कुछ हफ्तों बाद खत्म हो जाता है पर इस दौरान खास सावधानी बरतने की जरूरत है। अगर लक्षण सहन नही हो रहे या गम्भीर रूप ले रहे है तो तुरंत चिकित्सक को दिखाने की ज़रूरत है। बच्चो में अगर चेचक के लक्षण दिखे तो तुरन्त चिकित्सक से परामर्श लें।अब चिकित्सा विज्ञानं में चेचक को रोकने के लिए टीकाकरण उपलब्ध है। आज कल खसरा नामक टीका बच्चों को चेचक से बचाव के लिए लगाया जाता है। पर दुनिया भर में खसरा टिके से हो रहे दुष्प्रभावो को देखते हुए उन इलाको के लोगो को टिका न लगाए जाने की सलाह दी जाती है जहाँ चेचक होने की आशंका न हो।

छोटी-माता (चिकेनपॉक्स) के लिए आजकल एक टीका उपलब्ध है जो कि 12 महीने से अधिक आयु वाले उस व्यक्ति को दिया जा सकता है जिसे यह बीमारी न हुई हो और जिसमें छोटी-माता (चिकेनपॉक्स) से सुरक्षा के पर्याप्त प्रतिकारक उपलब्ध न हो।

छोटी-माता (चिकेनपॉक्स) वाले बच्चों को एस्प्रीन लेने पर रेईस सिन्ड्रोम हो सकता है जो कि बहुत गंभीर बीमारी है तथा इससे मस्तिष्क की खराबी हो सकती है और वह मर भी सकता है। बच्चों को छोटी-माता (चिकेनपॉक्स) होने पर एस्प्रीन की गोली कदापि न दें। डॉक्टर द्वारा विशेष रूप से विनिर्धारित करने पर ही बच्चों को किसी अन्य बीमारी के लिए एस्प्रीन देनी चाहिए। बच्चों को गोली की दवाई देते समय डॉक्टर से जांच करा लेना अति उत्तम है। वयस्क में निमोनिया होने का खतरा विशेष रूप से बना रहता है। इसके अतिरिक्त एचआईवी से संक्रमित या प्रतरोधी प्रणाली में कमी वाले रोगियों को निमोनिया का अधिकतर खतरा होता है। ऐसी गर्भवती महिलाएं जिनको पहले कभी छोटी-माता (चिकेन पाक्स) नहीं हुई है, उनको सक्रिया वायरस वाले के संपर्क में नहीं आना चाहिए।

चिकन पॉक्स होने का कारण होता है वरिसेल्ला जोस्टर नाम का विषाणु। इस विषाणु के शिकार लोगों के पूरे शरीर में फुंसियों जैसी चक्तियाँ विकसित होती हैं। अक्सर इसे गलती से खसरे की बीमारी समझी जाती है। इस बीमारी में रह रह कर खुजली करने का बहुत मन करता है और अक्सर इसमें खांसी और बहती नाक के लक्षण भी दिखाई देते हैं। आयुर्वेद में इस बीमारी को लघु मसूरिका के नाम से जाना जाता है।

चिकनपॉक्स से राहत पाने के टिप्स

➽ चिकनपॉक्स में खान-पान का ध्यान रखें। खुले में रखा खाद्यपदार्थ बिल्कुल भी उसका सेवन न करें।
➽ बच्चे के माता-पिता इस बात का विशेष ध्यान रखें कि बच्चा यदि बीमार है तो उसे स्कूल न भेजें ताकि दूसरे बच्चे इस संक्रमण की चपेट में न आएं। और यदि किसी और बच्चे को यदि ये परेशानी है, तो आप अपने बच्चे को भी उसके पास न जाने दें।
➽ ठंड से बच्चों का बचाव करें, क्योंकि ठंडी हवा में इस बीमारी का वायरस बेरीसेला ज्यादा सक्रिय होता है। और इसी समय बच्चे इसी चपेट में आते है।
➽ चिकनपॉक्स के इलाज के लिए कई प्रकार की दवाईयां और वैक्सीन भी आज कल बाजार में मिल जाती है, हैं। इनका प्रयोग करके इस बीमारी से निजात पाया जा सकती है।
➽ शहद को चिकनपॉक्स वाले व्यक्ति को चाटते रहना चाहिए।
➽ नीम का इस्तेमाल करना चाहिए।
➽ निम्बू का इस्तेमाल करना चाहिए।
➽ भीगे हुए चनेको भी हाथो में रगड़ने से इस समस्या से राहत पायी जा सकती है।