Saturday, 18 March 2017

कैबिनेट मिशन योजना,1946 (सामान्य ज्ञान, भाग-39)

फरवरी 1946 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने भारत में एक तीन सदस्यीय उच्च-स्तरीय शिष्टमंडल भेजने की घोषणा की। इस शिष्टमंडल में ब्रिटिश कैबिनेट के तीन सदस्य- लार्ड पैथिक लारेंस (भारत सचिव), सर स्टेफर्ड क्रिप्स (व्यापार बोर्ड के अध्यक्ष) तथा ए.वी. अलेक्जेंडर (एडमिरैलिटी के प्रथम लार्ड या नौसेना मंत्री) थे। इस मिशन को विशिष्ट अधिकार दिये गये थे तथा इसका कार्य भारत को शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण के लिये, उपायों एवं संभावनाओं को तलाशना था।

अंग्रेजों की भारत से वापसी क्यों अपरिहार्य प्रतीत होने लगी?

सरकार-विरोधी संघर्ष में राष्ट्रवादियों की सफलता से उनकी विजय निर्णायक स्थिति में पहुंच चुकी थी। राष्ट्रवाद, अब समाज के उन वर्गों और क्षेत्रों तंक पहुंच-चुका था, जो कि अब तक इस प्रक्रिया से अछूते थे।
प्रथम विश्व युद्ध से लेकर 1939 के अंत तक भारतीय सिविल सेवा में यूरोपियों की जो सर्वोच्चता स्थापित थी, वह धीरे-धीरे समाप्त हो रही थी। इसका प्रमुख कारण इन सेवाओं में भारतीयों का बढ़ता प्रतिनिधित्व तथा सेवाओं का भारतीयकरण था। इन सेवाओं के भारतीयकरण से यूरोपियों में असंतोष बढ़ने लगा तथा धीरे-धीरे उनकी रुचि इन सेवाओं के प्रति कम होने लगी। इसके साथ नौकरशाही एवं सरकार भक्त तबके में भी असंतोष बढ़ने लगा। लंबे विश्व युद्धों के कारण भारत में आर्थिक कठिनाइयां बढ़ रही थीं तथा देश धीरे-धीरे दिवालियेपन की ओर अग्रसर हो रहा था।
अंग्रेज सरकार की समझौतावादी एवं दमनकारी नीति की अपनी कुछ सीमायें थीं। साथ ही इसमें विरोधाभास प्रकट होने लगा था। जैसे कि-
ब्रिटिश सरकार अब यह सोचने पर विवश हो गयी कि जन आंदोलन के भविष्य में भारत-ब्रिटिश संबंधों को अच्छा बनाये रखने का एकमात्र यही उपाय है। ब्रिटेन में भी सरकार एवं उच्च नीति-नियामक यह महसूस करने में लगे अंग्रेजों की सम्मानपूर्वक वापसी का यही एक उपाय है कि भारतीयों से समझौता कर लिया जाये तथा शांतिपूर्ण ढंग से उन्हें सत्ता सौंप दी जाये।

कैबिनेट मिशन योजना की पूर्व संध्या
भारत मे कैबिनेट मिशन का आगमन
24 मार्च 1946 को कैबिनेट मिशन दिल्ली पहुंचा। मिशन ने विभिन्न दलों एवं समूहों के नेताओं से निम्न मुद्दों पर कई दौर की बातचीत की-
अंतरिम सरकार।
1. पूर्ण पाकिस्तान के गठन की मांग अस्वीकार कर दी क्योंकि-
साम्प्रदायिक आत्म-निर्णय के सिद्धांत से नयी-समस्यायें खड़ी हो सकती थीं। जैसे पश्चिमी-बंगाल में हिन्दू बहुसंख्या में थे तथा पंजाब के जालंधर व अम्बाला डिवीजन में हिन्दू व सिख बहुसंख्यक थे, अतः वे भी विभाजन की मांग कर सकते थे। दूसरी ओर कुछ सिख नेता पहले से ही राग अलाप रहे थे कि यदि देश का विभाजन किया गया तो वे भी पृथक राज्य की मांग उठायेंगे।
3. संविधान सभा का निर्वाचन, प्रांत की विधानसभाओं के सदस्य तथा प्रांत की जनसंख्या के अनुपात के आधार पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के द्वारा किया जायेगा। निर्वाचन मंडल में केवल तीन वर्ग माने गये- मुस्लिम, सिख और अन्य (हिन्दू सहित)। प्रस्तावित संविधान सभा में 389 सदस्य होने थे; जिनमें से 292 सदस्य भारतीय प्रांतों से, 4 मुख्य आयुक्तों के राज्यों से तथा 93 देशी रियासतों से चुने जाने थे। यह एक उपयुक्त एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था थी, जो कि परिमाण पर आधारित नहीं थी।
समूह व्यवस्था के संबंध में भिन्न-भिन्न व्याख्याएं-
प्रत्येक पार्टी या समूह ने समूह व्यवस्था की अवधारणा को अपनी-अपनी दृष्टि से देखा तथा उसकी अलग-अलग व्यवस्था की-
कांग्रेस जब तक समूह व्यवस्था की अवधारणा वैकल्पिक है तब तक कैबिनेट मिशन योजना पाकिस्तान निर्माण के विरुद्ध है। एकल संविधान सभा का गठन विचारणीय है; मुस्लिम लीग का वीटो पावर समाप्त हो गया है।
मुस्लिम लीग अनिवार्य समूहीकरण की व्यवस्था में पाकिस्तान का निर्माण अंर्तभूत है।

कैबिनेट मिशन योजना के संबंध में मुख्य आपत्तियां
विभिन्न दलों ने भिन्न-2 आधारों पर कैबिनेट मिशन का विरोध किया-
कांग्रेस
मुस्लिम लीग
मुस्लिम लीग की गतिरोध उत्पन्न करने की मानसिकता तथा भविष्य की रणनीति
फरवरी 1947 में, मंत्रिमंडल के नौ कांग्रेस सदस्यों ने वायसराय को पत्र लिखकर मांग की कि वे लीग के सदस्यों को त्यागपत्र देने के लिये कहें अन्यथा वे मत्रिमंडल से अपना नामांकन वापस ले लेंगे। तत्पश्चात लीग द्वारा संविधान सभा को भंग करने की मांग से स्थिति और बिगड़ गयी। इस प्रकार गतिरोध सुलझने के स्थान पर और बढ़ता हुआ प्रतीत होने लगा।
जुलाई 1946 में संविधान सभा के लिये हुये चुनावों में कांग्रेस को शानदार सफलता मिली। इससे मुस्लिम लीग भयभीत हो गयी तथा उसने कैबिनेट मिशन योजना को ठुकरा दिया। इतना ही नहीं जिन्ना ने ‘पाकिस्तान’ प्राप्त करने के लिये ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही’ की धमकी दी तथा 16 अगस्त 1946 का दिन ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ के रूप में ‘मनाने का निश्चय किया। इस अशुभ दिन पर देश के अनेक स्थानों में भीषण साम्प्रदायिक दंगे हुये। अकेले कलकत्ता में 7 हजार से अधिक लोग सामूहिक कत्लेआम में मारे गये। नोआखाली, सिलहट, गढ़मुक्तेश्वर, त्रिपुरा, बिहार तथा अन्य स्थानों में भी भीषण सांप्रदायिक दंगे हुये जिनमें हजारों लोग मौत के घाट उतार दिये गये।

एटली की घोषणा- 20 फरवरी 1947
20 फरवरी 1947 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली द्वारा की गयी घोषणा के मुख्य बिंदु निम्नानुसार हैं-
कांग्रेस की प्रतिक्रिया
कांग्रेस ने स्वायत्तशासी उपनिवेशों को सत्ता हस्तांतरित करने की योजना को इसलिये स्वीकार कर लिया क्योंकि इससे भारत के अधिक विखंडित होने की संभावना समाप्त हो गयी। इस योजना में प्रांतों एवं देशी रियासतों को अलग से स्वतंत्रता देने का कोई प्रावधान नहीं था। साथ ही तत्कालीन प्रांतीय व्यवस्थापिकाएं स्वयं अपने क्षेत्रों के लिए संविधान का निर्माण कर सकती थीं तथा इससे गतिरोध को समाप्त करने में मदद मिलने की उम्मीद थी।