इनमें अधिकांश वस्तुओं को निर्यात के लिए एकत्र किया जाता था। प्लिनी के अनुसार भारत के निर्यातों में काली मिर्च और अदरक भी शामिल थे। इनका वास्तविक मूल्य से सौ गुना ज्यादा दाम मिलता था। इसके अतिरिक्त भारतीय इत्र, मसालों और सुगंधों आदि वस्तुओं की रोम में बहुत अधिक खपत थी।
रोम के साथ व्यापार इतना अधिक था कि इसकी गति को निर्बाध बनाने के लिए पश्चिमी तट पर सोपारा और बेरीगाज (भड़ौच) जैसे बंदरगाह बने, जबकि कोरोमंडल तट से ‘सुनहरे कैरसोनीस’ (सुवर्णभूमि) और सुनहरे क्रीस (सुवर्ण द्वीप) के साथ व्यापार होता था। चोल राजाओं ने अपने बंदरगाहों पर प्रकाशस्तंभ लगाये जो रात में तीव्र रोशनी देकर बंदरगाहों पर जहाजों का मार्गदर्शन करते थे। पांडेचेरी के समीप आर्केमेडू नामक स्थान पर इटली की अरेटाइन नाम से प्रसिद्ध बर्तन बनाने की कला के कुछ नमूने जिन पर इटली के बर्तनसाज की मुहर भी है, तथा रोमन लैंप के अवशेष भी मिले हैं।
आंध्र क्षेत्र से भी विदेशी व्यापार की निशानियाँ मिलती है। यहाँ के कुछ बंदरगाह और आसपास के नगर भी व्यापार में सहायता प्रदान करते थे। अतः पैठन (प्रतिस्थान) से पत्थर, सूती मलमल और अन्य वस्त्र विदेशों को जहाज से भेजे जाते थे। आंध्र के राजा यज्ञश्री ने राज्य के समुद्री व्यापार के प्रतिक रूप में जहाज-मुद्रित दुर्लभ सिक्के चलाये।
आंध्र क्षेत्र से भी विदेशी व्यापार की निशानियाँ मिलती है। यहाँ के कुछ बंदरगाह और आसपास के नगर भी व्यापार में सहायता प्रदान करते थे। अतः पैठन (प्रतिस्थान) से पत्थर, सूती मलमल और अन्य वस्त्र विदेशों को जहाज से भेजे जाते थे। आंध्र के राजा यज्ञश्री ने राज्य के समुद्री व्यापार के प्रतिक रूप में जहाज-मुद्रित दुर्लभ सिक्के चलाये।