Thursday 23 March 2017

सागरमाला परियोजना


                                      देश की आर्थिक तस्वीर बदलने में सक्षम परियोजना सागरमाला परियोजना का समालोचनात्मक मूल्यांकन इस बात से किया जा सकता है कि केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना सागरमाला जल परिवहन के मोर्चे पर उससे भी बड़ा काम कर सकती है जो स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना ने सड़क परिवहन के मामले में किया। केंद्र सरकार अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना सागरमाला पर 70 हजार करोड़ रु खर्च कर रही है।
उद्देश्य :-
  • सागरमाला का उद्देश्य भारत के शिपिंग क्षेत्र की तस्वीर बदलना है। इसके तहत बंदरगाहों को आधुनिक बनाया जाएगा और उनके इर्द-गिर्द विशेष आर्थिक क्षेत्र विकसित किए जाएंगे।
  • सागरमाला पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का सपना है। इसका ऐलान उन्होंने 15 अगस्त 2003 को किया था। जैसे स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना ने भारत में सड़क परिवहन का स्वरूप बदला उसी तरह वाजपेयी सागरमाला के जरिये जल परिवहन क्षेत्र का कायाकल्प करना चाहते थे।
  • विदेशों से होने वाले भारत के व्यापार का 90 फीसदी बंदरगाहों के जरिये होता है। देश की करीब साढ़े सात हजार लंबी तटीय सीमा पर 13 बड़े बंदरगाह हैं।
  • सरकार की योजना है कि इनका कायाकल्प किया जाए और कुछ नए बंदरगाह भी विकसित किए जाएं।

वर्तमान समस्याएं :-
मौजूदा बंदरगाहों में कारगो की ढुलाई से लेकर तमाम दूसरी प्रक्रियाओं पर काम के पुराने ढर्रे और लालफीताशाही के चलते काफी गैरजरूरी खर्च होता है।
कैसे होगा लाभ :-
  • बंदरगाहों में जरूरी अत्याधुनिक तकनीकी सुविधाएं विकसित करने के बाद इससे बचा जा सकेगा। अनुमान लगाया जा रहा है कि सब कुछ योजना के मुताबिक रहा तो सागरमाला से सरकार को सालाना औसतन 40 हजार करोड़ रु तक की बचत होगी।
  • इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। सागरमाला के तहत देश के भीतरी भागों में जलमार्ग विकसित करने की भी योजना है।
  • नदियों और नहरों से बने ये जलमार्ग सीधे बंदरगाहों से जुड़े होंगे और इनके जरिये समुद्र से दूर स्थित इलाकों से भी माल ढोया जा सकेगा।
  • एक लीटर डीजल से सड़क पर 24 टन के कारगो को एक किलोमीटर तक ढोया जा सकता है। रेल के मामले में यही आंकड़ा 85 टन का हो जाता है और जल परिवहन के मामले में 105 टन तक पहुंच जाता है। यानी इससे माल ढुलाई की लागत असाधारण रूप से कम हो सकती है।
  • बंदरगाहों तक रेल के जरिये कारगो के आवागमन को सरल बनाने के लिए खास तौर पर इंडियन पोर्ट रेल कॉरपोरेशन नाम की संस्था भी बनाई गई है। यानी सागरमाला से सड़क और रेल मार्ग पर पड़ रहा बोझ घटेगा और समय और पैसे की बचत होगी।
  • कारोबार को आसान बनाने पर जोर दे रही सरकार का मानना है कि उद्योग बंदरगाहों के नजदीक होंगे तो उनके लिए निर्यात आसान होगा।
  • सागरमाला का एक अहम हिस्सा बंदरगाहों के इर्द-गिर्द तटीय आर्थिक क्षेत्रों का निर्माण भी है।.कारोबार को आसान बनाने पर जोर दे रही सरकार का मानना है कि उद्योग बंदरगाहों के नजदीक होंगे तो उनके लिए निर्यात आसान होगा।
  • नए आर्थिक क्षेत्र पनपने से स्थानीय लोगों के लिए बड़ी संख्या में रोजगार पैदा होंगे. इन लोगों के लिए सस्ती आवासीय परियोजनाएं भी विकसित करने की भी योजना है। इस तरह देखा जाए सागरमाला बड़े शहरों की तरफ हो रहे पलायन को रोकने की अहम कवायद भी है।
  • इन बंदरगाहों का नियंत्रण केंद्र सरकार के पास रहेगा। यही वजह है कि केंद्र और राज्यों के बीच बढ़ते टकराव को देखते हुए कुछ इस योजना की सफलता पर संदेह जता रहे हैं।
  • इसमें राज्यों को भी कम फायदा नहीं है। बंदरगाहों पर केंद्र का नियंत्रण होगा तो विशेष आर्थिक क्षेत्रों से जुड़ी अलग-अलग गतिविधियां राज्य सरकारों के अधीन होंगी। इस मसले पर सबको साथ लेकर चलने के लिए केंद्र ने राष्ट्रीय सागरमाला समिति भी बनाई है जिसमें सभी तटीय राज्यों के प्रतिनिधि हैं।
  • सागरमाला को सरकार की दूसरी महत्वाकांक्षी योजना भारतमाला से भी जोड़ा जाएगा।
                              भारतमाला के तहत पूरब से पश्चिम यानी मिजोरम से गुजरात तक लगभग पांच हजार किमी लंबाई की सड़कें बननी है। अगर सब ठीक रहा तो ये दोनों परियोजनाएं मिलकर अगले 10 साल के दौरान देश की आर्थिक तस्वीर में एक बड़ा बदलाव ला सकती हैं।
पश्चिमी देशों में अत्याधुनिक बंदरगाह आर्थिक तरक्की की प्रक्रिया का अहम हिस्सा साबित हुए हैं। यही वजह है कि अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने की कवायद में लगी सरकार को सागरमाला से बहुत उम्मीदें हैं