भारतीय समाज में छोटी बच्चियों के खिलाफ भेदभाव और लैंगिक असमानता की ओर ध्यान दिलाने के लिये बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ नाम से प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा एक सरकारी सामाजिक योजना की शुरुआत की गयी है। हरियाणा के पानीपत में 22 जनवरी 2015, बुधवार को प्रधानमंत्री के द्वारा इस योजना की शुरुआत हुयी। ये योजना समाज में लड़कियों के महत्व के बारे लोगों को जागरुक करने के लिये है। कन्या भ्रूण हत्या को पूरी तरह समाप्त करने के द्वारा लड़कियों के जीवन को बचाने के लिये आम लोगों के बीच ये जागरुकता बढ़ाने का कार्य करेगी तथा इसमें एक लड़के की भाँति ही एक लड़की के जन्म पर खुशी मनाने और उसे पूरी जिम्मेदारी से शिक्षित करने के लिये कहा गया है।
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ (इसका अर्थ है लड़कियों को बचाना और शिक्षित करना) योजना की शुरुआत भारतीय सरकार द्वारा 2015 के जनवरी महीने में हुई। इस योजना का मकसद भारतीय समाज में लड़कियों और महिलाओं के लिये कल्याणकारी कार्यों की कुशलता को बढ़ाने के साथ-साथ लोगों के बीच जागरुकता उत्पन्न करने के लिये भी है। इस योजना के लिये 100 करोड़ की शुरुआती पूँजी की आवश्यकता थी। इस योजना की शुरुआत की जरुरत 2001 के सेंसस के आँकड़ों के अनुसार हुई, जिसके तहत हमारे देश में 0 से 6 साल के बीच का लिंगानुपात हर 1000 लड़कों पर 927 लड़कियों का था। इसके बाद इसमें 2011 में और गिरावट देखी गयी तथा अब आँकड़ा 1000 लड़कों पर 918 लड़कियों तक पहुँच चुका था। 2012 में यूनिसेफ द्वारा पूरे विश्वभर में 195 देशों में भारत का स्थान 41वाँ था इसी वजह से भारत में महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के प्रति लोगों की जागरुकता जरुरी हो गयी। ये योजना कन्या भ्रूण हत्या को जड़ से मिटाने के लिये लोगों से आह्वन भी करती है।
देश में छोटी बच्चियों को सशक्त करने के साथ-साथ समाज में लड़कियों की गिरती संख्या के अनुपात के मुद्दे को बताने के लिये एक उद्देश्यपूर्णं ढंग से एकराष्ट्रव्यापी योजना की शुरुआत हुई जिसका नाम बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ है। हरियाणा के पानीपत में 22 जनवरी 2015 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सफलतापूर्वक इस योजना का आरंभ हुआ। लड़कियों के प्रति लोगों की विचारधारा में सकारात्मक बदलाव लाने के साथ ही ये योजना भारतीय समाज में लड़कियों की महत्ता की ओर भी इंगित करता है। भारतीय समाज में लड़कियों के प्रति लोगों की मानसिकता बहुत क्रूर हो चुकी है। ऐसे लोगों का मानना है कि लड़कियाँ पहले परिवार के लिये बोझ होती है और फिर पति के लिये तथा ये सिर्फ लेने के लिये होती है देने के लिये नहीं।
हालाँकि ये सच नहीं है, दुनिया की आधी जनसंख्या लगभग महिलाओं की है इसलिये वो धरती पर जीवन के अस्तित्व के लिये आधी जिम्मेदार होती है। लड़कियों या महिलाओं को कम महत्ता देने से धरती पर मानव समाज खतरे में पड़ सकता है क्योंकि अगर महिलाएँ नहीं तो जन्म नहीं। लगातार प्रति लड़कों पर गिरते लड़कियों का अनुपात इस मुद्दे की चिंता को साफतौर पर दिखाता है। इसलिये, उन्हें गुणवत्तापूर्णं शिक्षा प्रदान कराने के साथ, छोटी बच्ची की सुरक्षा को पक्का करना ,लड़कियों को बचाना, कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिये इस योजना की शुरुआत की गयी है।
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ एक सरकारी योजना है जिसे भारत के प्रधानमंत्री ने जनवरी 2015 में शुरु किया है। लड़कियों की सामाजिक स्थिति में भारतीय समाज में कुछ सकारात्मक बदलाव लाने के लिये इस योजना का आरंभ किया गया है। भारतीय समाज में छोटी लड़कियों पर बहुत सारे प्रतिबंध किये जाते है जो उनकी उचित वृद्धि और विकास में रोड़ा बना हुआ है। ये योजना छोटी लड़कियों के खिलाफ होने वाले अत्यचार, असुरक्षा, लैंगिक भेदभाव आदि को रोकेगा। 18वीं सदी के लोगों की बजाय आधुनिक में समय महिलाओं के प्रति लोगों की मानसिकता ज्यादा घटिया होती जा रही है। इस कार्यक्रम की शुरुआत करते समय प्रधनमंत्री ने कहा कि, भारतीय लोगों की ये सामान्य धारणा है कि लड़कियाँ अपने माता-पिता के बजाय पराया धन होती है। अभिवावक सोचते है कि लड़के तो उनके अपने होते है जो बुढ़ापे में उनकी देखभाल करेंगे जबकि लड़कियाँ तो दूसरे घर जाकर अपने ससुराल वालों की सेवा करती हैं।
लड़कियों के बारे में 21वीं सदी में लोगों की ऐसी मानसिकता वाकई शर्मनाक है और जन्म से लड़कियों को पूरे अधिकार देने के लिये लोगों के दिमाग से इसे जड़ से मिटाने की जरुरत है।
छोटी लड़कियों की स्थिति अंतिम दशक में बहुत खराब हो चुकी थी क्योंकि कन्या भ्रूण हत्या एक बड़े पैमाने पर अपना पैर पसार रही थी। उच्च तकनीक के द्वारा लिंग का पता लगाकर जन्म से पहले हत्या कर दी जाती थी/है। वहरहाल समस्या यह है की हम मूक कबतक रहेंगे। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी योजना की शुरुआत निश्चित ही एक सराहनिए कदम है।