Wednesday 22 March 2017

भारतीय संस्कृति, ब्यापार का दूर देशों में प्रभाव एवं सिल्क मार्ग के बारे बताइये।

                          ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से भारत ने चीन, मध्य एशिया, पश्चिम एशिया और रोमन साम्राज्य के साथ व्यापारिक सम्बन्ध बनाए थे। मध्य एशिया तिब्बत, भारत, अफगानिस्तान, चीन, रूस और मंगोलिया से घिरा हुआ क्षेत्र है। चीन से आने-जाने वाले व्यापारियों को बहुत कठिनाइयों के बावजूद इस क्षेत्र से होकर जाना पड़ता था। जो मार्ग उन्होंने बनाया वह आगे चलकर ‘रेशम-मार्ग’ (सिल्क रूट) के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसे इस नाम से इसलिए बुलाया जाने लगा क्योंकि चीन से रेशम का व्यापार किया जाता था। आगे चलकर चीन आने जाने वाले विद्वानों, भिक्षुओं, आचार्यों और धर्माचार्यों आदि ने इसी मार्ग का प्रयोग किया। इस मार्ग ने उस समय के परिचित विश्व में संस्कृतियों के प्रचार-प्रसार में एक महान शृंखला का कार्य किया। भारतीय संस्कृति का प्रभाव मध्य एशिया में भी दृढ़ता से अनुभव किया गया।
मध्य एशिया के साम्राज्यों में कुची एक ऐसा राज्य था जहां भारतीय संस्कृति अपने पूर्व वैभव पर थी। इस साम्राज्य से रेशम मार्ग दो भागों में बंट जाता है और चीन में डुन हुवांग की गुफाओं पर जाकर ये मार्ग पुनः मिल जाते हैं। इस तरह एक उत्तरी ‘रेशम-मार्ग’ था तथा दूसरा, दक्षिणी रेशम-मार्ग। उत्तरी रेशम मार्ग समरकंद, काशगढ़, तुम्शुक, आक्सु कारा शहर, तुपर्फान और हामी से होकर गुजरता था और दक्षिणी रेशम मार्ग यारकन्द, खोतान, केरिया, चेरचेन और मीरान से होकर जाता था। ज्ञान की खोज में और बौद्ध दर्शन का प्रचार करने के लिए अनेक चीनी और भारतीय विद्वान इन मार्गों से गये।
भारत और मध्य एशिया के देशों के बीच जो सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ, उसका प्रमाण इन सभी देशों में प्राप्त प्राचीन स्तूपों, मन्दिरों, मठों, मूर्तियों और चित्रों से प्राप्त होता है।
इस मार्ग पर कई स्थान है जहाँ भिक्षु और धर्माचार्य, व्यापारी और तीर्थयात्री सभी यात्रा के बीच में रुका करते थे। ये आगे चलकर बौद्ध शिक्षा के महत्त्वपूर्ण केन्द्र बने। यहीं से होकर रेशम के साथ-साथ जेड नामक बहुमूल्य पत्थर, घोड़े तथा अन्य महत्त्वपूर्ण वस्तुओं का व्यापार हुआ करता था। परन्तु इस मार्ग से होकर जाने वाला सबसे अधिक प्रभावशाली तत्त्व था-बौद्ध धर्म। अतः कहा जा सकता है कि इस व्यापार मार्ग से धर्म और दर्शन का आस्था और विश्वास का, भाषा और साहित्य का कला और संस्कृति का प्रसार हुआ। खोतान एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण पड़ाव था। यह दक्षिणी रेशम मार्ग पर स्थित था।
भारत के साथ इसके संबंधों का इतिहास दो हजार वर्ष पुराना है। मरुभूमि के बीच हरी-भरी धरती पर बसा यह खोतान राज्य रेशमी कपड़ा उद्योग, नृत्य और संगीत, साहित्यिक और व्यापारिक गतिविधियों और सोने तथा जेड के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था।
इतिहास में, भारत और खोतान के बीच संबंध का एक प्रमाण यह है कि भिक्षुओं और शिक्षकों का आवागमन निरंतर चलता रहा। वहां से प्राप्त पहली शताब्दी के सिक्कों पर एक ओर चीनी भाषा में लिखा हुआ है तो दूसरी ओर प्राकृत भाषा में खरोष्टी लिपि में। यह खोतान की मिश्रित संस्कृति को प्रमाणित करता है। यहां रेत के अन्दर दबे मठों की खुदाई करने पर बड़ी संख्या में संस्कृत में बौद्ध दर्शन की पाण्डुलिपियां, उनके लिप्यन्तर और अनुवाद उपलब्ध हुए हैं।