प्रस्तावना
बजट की प्रक्रिया
1. बजट प्रस्तुतिकरण
2. बजट पर आम बहस
3. बिभागीय समितियों द्वारा जांच
4. अनुदान की मांग पर मतदान
5. विनियोग विधेयक पारित होना
6. वित्त विधेयक पारित होना
संसद में बजट पारित होने से पूर्व 6 स्तरों से गुजरता है:-
बजट का प्रस्तुतीकरण
- बजट को आम बजट के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। आम बजट को प्रस्तुत करते समय वित्त मंत्री सदन में जो भाषण देते है, उसे ‘बजट भाषण’ कहते है। लोक सभा में भाषण के अंत में बजट प्रस्तुत किया जाता है।बजट को दो भागों में प्रस्तुत किया जाता है – भाग ए में देश का ‘एक सामान्य आर्थिक सर्वेक्षण’ और ‘भाग बी’
- ‘आगामी वित्तीय वर्ष के लिए कराधान प्रस्ताव’ शामिल होते हैं।
- प्रत्येक वित्तीय वर्ष में वार्षिक वित्तीय विवरण या भारत सरकार के अनुमानित प्राप्तियाँ व्यय का विवरण (जिसे ‘बजट’ भी कहा जाता है), राष्ट्रपति के द्वारा निर्धारित तिथि को सदन में प्रस्तुत किया जाता है।
- जिस दिन बजट को सभा में प्रस्तुत किया जाता है उस दिन इस पर कोई चर्चा नहीं होती।
बजट पर आम बहस
- साधारण बजट को प्रस्तुत करने के उपरांत अध्यक्ष द्वारा निर्धारित तिथी पर दोनों सदनों में बजट पर बहस चलती है।
- इस चरण में लोकसभा इसके पुरे या आंशिक भाग पर चर्चा कर सकती है एवम इससे सम्बंधित प्रश्नों को उठाया जा सकता है।
- लेकिन यहाँ पर कोई कटौती प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता और न ही बजट को सदन में मतदान के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है।
- अध्यक्ष बहस के लिए एक समय सीमा भी निर्धारित कर सकती है यदि वो जरुरी समझे।
विभागीय समितियों द्वारा जांच
- बजट पर आम बहस पूरी होने के बाद सदन तीन या चार हफ़्तों के लिए स्थगित हो जाता है।
- इस अंतराल के दौरान संसद की स्थायी समितियां अनुदान की मांग आदि की विस्तार से पड़ताल करती है और एक रिपोर्ट तैयार करती है इन रिपोर्टों को दोनों सदनों के विचारार्थ रखा जाता है।
- स्थायी समितियों की यह व्यवस्था 1993 (वर्ष 2004 में इसे विस्तृत किया गया) से शुरू की गई।
- यह व्यवस्था विभिन्न मंत्रालयों पर संसदीय वित्तीय नियंत्रण के उद्देश्य से प्रारम्भ की गई थी।
अनुदान की मांगों पर मतदान —
विभागीय स्थायी समितियों के अलोक में लोकसभा में अनुदान की मांगों के लिए मतदान होता है। मांगे मंत्रालयवार प्रस्तुत की जाती है पूर्ण मतदान के उपरांत एक मतदान, अनुदान बन जाती है। इस सन्दर्भ में दो बिंदु उल्लेखनीय है –
1 अनुदान के लिए मांग लोकसभा की विशेष शक्ति है , जो की राज्यसभा के पास नहीं है।
2 राज्यसभा को मतदान का अधिकार बजट के मताधिकार वाले हिस्से पर ही होता है तथा इसमें भारत की संचित निधि पर भारित व्यय शामिल नहीं होते हैं (इस पर केवल चर्चा की जा सकती हैं )
आम बजट में 109 मांगे होती हैं जबकि रेलबजट में 32 मांगे होती हैं। प्रत्येक मांग पर लोकसभा में अलग से मतदान होता हैं। इस दौरान संसद सदस्य इस पर बहस करते हैं। सदस्य अनुदान मांगों पर कटौती के लिए प्रस्ताव भी ला सकते हैं। इस प्रकार के प्रस्तावों को कटौती प्रस्ताव कहा जाता हैं, जिसके तीन प्रकार होते हैं —
नीति कटौती प्रस्ताव –
यह मांग की नीति के प्रति असहमति को व्यक्त करता हैं। इसमें कहा जाता हैं कि मांग कि राशि 1 रुपए कर दी जाए। सदस्य कोई वैकल्पिक नीति भी पेश कर सकते हैं।
आर्थिक कटौती प्रस्ताव —
इसमें इस बात का उल्लेख होता हैं कि प्रस्तावित व्यय से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पर सकता हैं। इसमें कहा जाता हैं कि मांग कि राशि को एक निश्चित सीमा तक कम किया जाए (यह या तो मांग में एकमुश्त कटौती हो सकती हैं या फिर पूर्ण समाप्ति या मांग की किसी माध में कटौती)।
सांकेतिक कटौती प्रस्ताव —
यह भारत सरकार के किसी दायित्व से सम्बंधित होता हैं। इसमें कहा जाता हैं कि मांग में 100 रुपए की कमी की जाए।
एक कटौती प्रस्ताव में स्वीकृति के लिए निम्न दशाएं अवश्य होनी चाहिए —
1 यह केवल एक प्रकार के मांग से सम्बंधित होना चाहिए।
2 इसका स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए तथा इसमें किसी प्रकार की अनावश्यक बात नहीं होनी चाहिए।
3 यह केवल एक मामले से सम्बंधित होनी चाहिए।
4 इसमें संसोधन संबंधी या वर्तमान नियम को परिवर्तित करने संबंधी कोई सुझाव नहीं होना चाहिए।
5 इसमें संघ सरकार के कार्य क्षेत्र के बहार किसी विषय का उल्लेख नहीं होना चाहिए।
6 इसमें भारत की संचित निधि पर भारित व्यय से सम्बंधित कोई विषय नहीं होना चाहिए।
7 इसमें किसी न्यायालयीन प्रकरण का उल्लेख नहीं होना चाहिए।
8 इसके द्वारा विशेषाधिकार का कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता हैं।
9 इसमें पुनर्परिचर्चा का कोई विषय नहीं होना चाहिए, जिसके बारे में इसी सत्र में पहले से ही कोई निर्णय लिए जा चुका हो।
10 यह आवश्यक विषय से सम्बंधित नहीं होना चाहिए।
एक कटौती प्रस्ताव का महत्व इस बात से हैं कि अनुदान मांगों पर चर्चा का अवसर एवं उत्तरदायी सरकार के सिद्धान्त को कायम रखने के लिए सरकार के कार्यकलापों का जांच करना। हालाँकि, कटौती प्रस्ताव का प्रायोजिक रूप से कोई ज्यादा उपयोगिता नहीं हैं। ये केवल सदन में ले जाते हैं तथा इनपर चर्चा होती हैं लेकिन सरकार का बहुमत होने के कारन इन्हें पास नहीं किया जा सकता। ये केवल कुछ हद तक सरकार पर अंकुश लगाते हैं।
अनुदान मांगों पर मतदान के लिए कुल 26 दिन निर्धारित किए गए हैं। अंतिम दिन अध्यक्ष सभी शेष मांगों को मतदान के लिए पेश करता हैं तथा इनका निपटान करता हैं फिर चाहे सदस्यों द्वारा इन पर चर्चा की गई हो या नहीं। इसे गिलोटिन के नाम से जाना जाता हैं।
विनियोग विधयेक का पारित होना
संविधान में व्यवस्था की गई है कि भारत की संचित निधि से विधि सम्मत विनियोग के सिवाए धन की निकासी नहीं होगी, तदनुसार भारत की निधि से विनियोग के लिए एक विनियोग विधेयक पुरः स्थापित किया जाता है, ताकि धन को निम्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रयुक्त किया जाए —
लोकसभा में मत दिए गए अनुदान तथा
भारत की संचित निधि पर भारित व्यय
विनियोग विधयेक की रकम में परिवर्तन करने या अनुदान के लक्ष्य को बदलने अथवा भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की रकम में परिवर्तन करने का प्रभाव रखने वाला कोई संसोधन, संसद के किसी सदन में प्रख्यापित नहीं किया जाएगा।
इस मामले में राष्ट्रपति की सहमति के उपरांत ही कोई अधिनियम बनाया जा सकता है। इसके बाद ही संचित निधि से किसी धन की निकासी की जा सकती है। इसका अर्थ है कि, विनियोग विधेयक के लागु होने तक सरकार भारत कि संचित निधि से कोई धन आहरित नहीं कर सकती हैं।
वित्त विधेयक का पारित होना
वित्त विधेयक भारत सरकार के उस वर्ष के लिए वित्तीय प्रस्तावों को प्रभावी करने के लिए पुरः स्थापित किया जाता है। इस पर धन विधेयक कि सभी शर्ते लागु होती है। वित्त विधेयक में विनियोग विधेयक के विपरीत संसोधन (कर को बढ़ाने या घटने के लिए ) प्रस्तावित किए जा सकते है। अनंतिम कर संग्रहण अधिनियम अथवा वित्त अधिनियम, 1931 के अनुसार, वित्त विधेयक को 75 दिनों के भीतर प्रभावी हो जाना चाहिए। वित्त अधिनियम बजट के आय पक्ष को विधिक मान्यता प्रदान करता है और बजट को प्रभावी स्वरुप देता है