Monday 28 May 2018

सौर ऊर्जा पर भारत की निर्भरता: मूल्यांकन

दुनिया की सबसे बड़ी अक्षय ऊर्जा विस्तार योजना के एक भाग के रूप में, भारत एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने के लिए सूरज के प्रकाश पर निर्भरता दर्शा कर रहा है।    अगले आने वाले चार वर्षों में, भारत में अक्षय स्रोतों से आने वाली ऊर्जा के 175 गीगावाट (जीडब्ल्यू) हो जाने की उम्मीद है, जिसमें से 100 गीगावाट अकेले सौर ऊर्जा होगी। अब से 12 वर्ष बाद, ऊर्जा की सभी जरूरतों का 40% हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा से आने की उम्मीद में है जोकि वर्तमान समय में 18% है।    वर्ष 2022 की समयसीमा को पाने के लिए भारत के द्वारा 125 अरब रुपये (8.5 ट्रिलियन रुपये) खर्च किये जाने की उम्मीद है। यह राशि अपने आप में बहुत अधिक है, लेकिन यदि यह राशि नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन में सही प्रकार से खर्च हो गई तो भारत चीन और अमेरिका के बाद सबसे बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादनकर्ता बन जाएगा।    चुनौतियाँ    पिछले दो दशकों में बिजली की खपत में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। अब हम वर्ष 2000 में जितनी ऊर्जा का इस्तेमाल करते थे उससे दुगुना, और वर्ष 1970 के दशक में जितनी ऊर्जा का इस्तेमाल करते थे उससे आठ गुना अधिक ऊर्जा का उपयोग करते हैं। भारत में बिजली की अनुमानित ईंधन लागत बहुत अधिक है, और यह पर्यावरण के लिए अत्यंत विनाशकारी है।    वर्तमान में हमारी ऊर्जा आवश्यकता का आधे से अधिक भाग कोयले और प्राकृतिक गैस जलने से आता है। इस प्रकार का दोहन ग्रह को गर्म करता है, और इसे प्रदूषित करता है और एक समय के बाद इन संसाधनों को समाप्त भी हो जाना है।    भारत के प्रयास:    आने वाले कुछ वर्षों में बनने वाले दुनिया के 10 सबसे बड़े सौर पार्कों में से 5 भारत में बनाये जायेंगे जिनमें से दो सौर पार्क चीन के सबसे बड़े पार्क (तेंग्गर पार्क (1.5 गीगावॉट)) से भी बड़े होंगे। यहाँ तक कि एक 5 गीगावॉट क्षमता वाला सौर पार्क गुजरात के धोलेरा विशेष निवेश क्षेत्र में बनाये जाने की योजना है।    2022 तक, भारत को उम्मीद है कि सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों के द्वारा अंतिम उपयोगकर्ताओं को बिजली आपूर्ति करने के लिए 38 सौर पार्क उपलब्ध होंगे।    सौर पार्कों के लाभ:    तुलनात्मक रूप से देखा जाय तो सौर पार्क हाइड्रोइलेक्ट्रिसिटी उत्पादन करने वाले बांधों की तुलना में अत्यधिक लाभकारी हैं। सोलर पार्कों को बनाना आसान है और इनके साथ भूगर्भीय संवेदनशीलता, लोगों का विस्थापन और पर्यावरण ह्रास जैसी समस्याएं अत्यंत कम आती हैं।    वर्ष 2017 में, अधिकांश वाणिज्यिक और औद्योगिक ग्राहकों के लिए ग्रिड पावर की तुलना में सौर ऊर्जा सस्ती हो गई है। कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, गुजरात में भारत के सबसे बड़े पार्क बनाए जा रहे हैं। इन राज्यों में अधिकतर वह स्थान प्रयोग किया जा रहा जो या तो बंजर है या रेतीला अथवा खाली पड़ा हुआ है।    लेकिन इसके अतिरिक्त पूरे देश में, खेतों, हवाई अड्डों, अस्पतालों, परिसरों, मॉल और कार्यालय परिसरों में अपनी ही सौर ऊर्जा की व्यवस्था स्थापित की जा रही है, जोकि वास्तविक रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है।    सीमायें:    हालांकि, शहरी घर और आवासीय समाज अभी अधिक उत्साही नहीं हैं, क्यूंकि घरों में सोलर पैनल लगाने का खर्च अधिक आता है। अगर इनमें से कुछ उत्साही हों भी तो भी खाली जगह एक गंभीर मुद्दा है। मुंबई या गुरुग्राम जैसे ऊंची इमारतों वाले शहरों में, अक्सर सभी निवासियों के लिए बिजली उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त रौशनी वाली जगह नहीं होती है।    सौर पूर्जा पूर्णतः सूर्य के प्रकाश पर निर्भर है। भारत में मानसूनी जलवायु है और देश के मौसम का एक लम्बा हिस्सा शीत ऋतु के रूप में भी जाता है। इसलिए पूर्णतः सौर ऊर्जा पर निर्भर होना देश के लिए लाभकारी नहीं होगा।

दुनिया की सबसे बड़ी अक्षय ऊर्जा विस्तार योजना के एक भाग के रूप में, भारत एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने के लिए सूरज के प्रकाश पर निर्भरता दर्शा कर रहा है।

अगले आने वाले चार वर्षों में, भारत में अक्षय स्रोतों से आने वाली ऊर्जा के 175 गीगावाट (जीडब्ल्यू) हो जाने की उम्मीद है, जिसमें से 100 गीगावाट अकेले सौर ऊर्जा होगी। अब से 12 वर्ष बाद, ऊर्जा की सभी जरूरतों का 40% हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा से आने की उम्मीद में है जोकि वर्तमान समय में 18% है।

वर्ष 2022 की समयसीमा को पाने के लिए भारत के द्वारा 125 अरब रुपये (8.5 ट्रिलियन रुपये) खर्च किये जाने की उम्मीद है। यह राशि अपने आप में बहुत अधिक है, लेकिन यदि यह राशि नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन में सही प्रकार से खर्च हो गई तो भारत चीन और अमेरिका के बाद सबसे बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादनकर्ता बन जाएगा।

चुनौतियाँ

पिछले दो दशकों में बिजली की खपत में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। अब हम वर्ष 2000 में जितनी ऊर्जा का इस्तेमाल करते थे उससे दुगुना, और वर्ष 1970 के दशक में जितनी ऊर्जा का इस्तेमाल करते थे उससे आठ गुना अधिक ऊर्जा का उपयोग करते हैं। भारत में बिजली की अनुमानित ईंधन लागत बहुत अधिक है, और यह पर्यावरण के लिए अत्यंत विनाशकारी है।

वर्तमान में हमारी ऊर्जा आवश्यकता का आधे से अधिक भाग कोयले और प्राकृतिक गैस जलने से आता है। इस प्रकार का दोहन ग्रह को गर्म करता है, और इसे प्रदूषित करता है और एक समय के बाद इन संसाधनों को समाप्त भी हो जाना है।

भारत के प्रयास

आने वाले कुछ वर्षों में बनने वाले दुनिया के 10 सबसे बड़े सौर पार्कों में से 5 भारत में बनाये जायेंगे जिनमें से दो सौर पार्क चीन के सबसे बड़े पार्क (तेंग्गर पार्क (1.5 गीगावॉट)) से भी बड़े होंगे। यहाँ तक कि एक 5 गीगावॉट क्षमता वाला सौर पार्क गुजरात के धोलेरा विशेष निवेश क्षेत्र में बनाये जाने की योजना है।

2022 तक, भारत को उम्मीद है कि सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों के द्वारा अंतिम उपयोगकर्ताओं को बिजली आपूर्ति करने के लिए 38 सौर पार्क उपलब्ध होंगे।

सौर पार्कों के लाभ

तुलनात्मक रूप से देखा जाय तो सौर पार्क हाइड्रोइलेक्ट्रिसिटी उत्पादन करने वाले बांधों की तुलना में अत्यधिक लाभकारी हैं। सोलर पार्कों को बनाना आसान है और इनके साथ भूगर्भीय संवेदनशीलता, लोगों का विस्थापन और पर्यावरण ह्रास जैसी समस्याएं अत्यंत कम आती हैं।

वर्ष 2017 में, अधिकांश वाणिज्यिक और औद्योगिक ग्राहकों के लिए ग्रिड पावर की तुलना में सौर ऊर्जा सस्ती हो गई है। कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, गुजरात में भारत के सबसे बड़े पार्क बनाए जा रहे हैं। इन राज्यों में अधिकतर वह स्थान प्रयोग किया जा रहा जो या तो बंजर है या रेतीला अथवा खाली पड़ा हुआ है।

लेकिन इसके अतिरिक्त पूरे देश में, खेतों, हवाई अड्डों, अस्पतालों, परिसरों, मॉल और कार्यालय परिसरों में अपनी ही सौर ऊर्जा की व्यवस्था स्थापित की जा रही है, जोकि वास्तविक रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है।

सीमायें

हालांकि, शहरी घर और आवासीय समाज अभी अधिक उत्साही नहीं हैं, क्यूंकि घरों में सोलर पैनल लगाने का खर्च अधिक आता है। अगर इनमें से कुछ उत्साही हों भी तो भी खाली जगह एक गंभीर मुद्दा है। मुंबई या गुरुग्राम जैसे ऊंची इमारतों वाले शहरों में, अक्सर सभी निवासियों के लिए बिजली उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त रौशनी वाली जगह नहीं होती है।

सौर पूर्जा पूर्णतः सूर्य के प्रकाश पर निर्भर है। भारत में मानसूनी जलवायु है और देश के मौसम का एक लम्बा हिस्सा शीत ऋतु के रूप में भी जाता है। इसलिए पूर्णतः सौर ऊर्जा पर निर्भर होना देश के लिए लाभकारी नहीं होगा।