Wednesday 30 May 2018

बंगाल के छऊ मुखौटा को जीआई टैग

भौगोलिक संकेतक पंजीयन  तथा भारत बौद्धिक संपदा ने पश्चिम बंगोल के पांच ग्रामीण शिल्पों को जीआई टैग यानी भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication: GI) ) प्रदान किया हैं। ये पांच ग्रामीण शिल्प हैं; पुरूलिया का छऊ मुखौटा, पटचित्र, कुशमांडी का काष्ठ मुखौटा, बंगाल का दोक्रास तथा मधुरकाठी (एक प्रकार की चटाई)।    छऊ मुखौटा छऊ नृत्य में पहना जाता है। पुरूलिया के बागमुंडी ब्लॉक के कलाकार यह मुखौटा बनाते हैं। मुख नृत्य के दौरान पहने जाने वाले काष्ठ मुखौटा कुशमांडी में बनाए जाते हैं। पश्चिमी मेदिनीपुर के पिंगला गांव के लोग पट्चित्र बनाते हैं जो कि रंगीन सूचीपत्र है। वहीं पश्चिम बंगाल के दो जिलों में मधुरकाठी का निर्माण किया जाता है।    जीआई टैग किसी भौगोलिक उत्पति से जुड़े उत्पाद को गुणवत्ता व प्रमाणिकता प्रदान करता है।  जीआई टैग मिलने से न केवल कलाकारों को ब्रांड मिल सकेगा वरन् उनके विशिष्ट शिल्प की नकल के खिलाफ सुरक्षा भी प्राप्त हो सकेगा। खास बात यह है कि जीआई टैग मिलने से उन शिल्पकारों को सहायता मिल सकेगी जो इन शिल्पों के बल पर अपना जीवन चलाने में असमर्थ हो रहे थे। ये वस्तुतः आर्थिक रूप से सीमांत कलाकार हैं।    वस्तुओं का भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण एवं सुरक्षा) एक्ट 1999 के तहत किसी उत्पाद को जीआई टैग प्रदान किया जाता है। दार्जीलिंग चाय यह टैग प्राप्त करने वाला प्रथम उत्पाद है।  वर्ष 2017-18 में 25 उत्पादों को जीआई टैग प्रदान किया जिनमें नौ पश्चिम बंगाल के हैं।

भौगोलिक संकेतक पंजीयन  तथा भारत बौद्धिक संपदा ने पश्चिम बंगोल के पांच ग्रामीण शिल्पों को जीआई टैग यानी भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication: GI) ) प्रदान किया हैं। ये पांच ग्रामीण शिल्प हैं; पुरूलिया का छऊ मुखौटा, पटचित्र, कुशमांडी का काष्ठ मुखौटा, बंगाल का दोक्रास तथा मधुरकाठी (एक प्रकार की चटाई)।

छऊ मुखौटा छऊ नृत्य में पहना जाता है। पुरूलिया के बागमुंडी ब्लॉक के कलाकार यह मुखौटा बनाते हैं। मुख नृत्य के दौरान पहने जाने वाले काष्ठ मुखौटा कुशमांडी में बनाए जाते हैं। पश्चिमी मेदिनीपुर के पिंगला गांव के लोग पट्चित्र बनाते हैं जो कि रंगीन सूचीपत्र है। वहीं पश्चिम बंगाल के दो जिलों में मधुरकाठी का निर्माण किया जाता है।

जीआई टैग किसी भौगोलिक उत्पति से जुड़े उत्पाद को गुणवत्ता व प्रमाणिकता प्रदान करता है।
जीआई टैग मिलने से न केवल कलाकारों को ब्रांड मिल सकेगा वरन् उनके विशिष्ट शिल्प की नकल के खिलाफ सुरक्षा भी प्राप्त हो सकेगा। खास बात यह है कि जीआई टैग मिलने से उन शिल्पकारों को सहायता मिल सकेगी जो इन शिल्पों के बल पर अपना जीवन चलाने में असमर्थ हो रहे थे। ये वस्तुतः आर्थिक रूप से सीमांत कलाकार हैं।

वस्तुओं का भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण एवं सुरक्षा) एक्ट 1999 के तहत किसी उत्पाद को जीआई टैग प्रदान किया जाता है। दार्जीलिंग चाय यह टैग प्राप्त करने वाला प्रथम उत्पाद है।  वर्ष 2017-18 में 25 उत्पादों को जीआई टैग प्रदान किया जिनमें नौ पश्चिम बंगाल के हैं।