भारत ने कुछ नई सुविधाओं को प्रमाणित करने के लिए ओडिशा तट के साथ एक परीक्षण सीमा से भारत-रूसी संयुक्त उद्यम ब्राहमोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का 21 मई 2018 को सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। DRDO के अनुसार, चंडीपुर में एकीकृत टेस्ट रेंज (ITR) के लॉन्च पैड 3 में स्थित एक मोबाइल लॉन्चर से मिसाइल का परीक्षण किया गया था।
यह परीक्षण भारत में पहली बार विकसित उसकी "लाइफ एक्सटेंशन" प्रौद्योगिकियों को मान्य करने के लिए डीआरडीओ और टीम ब्राह्मोस द्वारा आयोजित किया गया था।
पहली भारतीय मिसाइल
- ब्रह्मोस पहली भारतीय मिसाइल है जिसकी कार्यअवधि 10 से 15 साल तक बढ़ा दी गई है।
- ब्रह्मोस मिसाइल के जीवन को बढ़ाने की प्रौद्योगिकियां पहली बार भारत में विकसित की गई हैं।
भारतीय सेना में शामिल
भारतीय सेना ने अपने शस्त्रागार में ब्रह्मोस की तीन रेजिमेंटों को पहले ही शामिल कर लिया है। सभी मिसाइल के ब्लॉक-III संस्करण से लैस हैं।
मिसाइल में खासियत
- मिसाइल में खासियत है कि इस चलाने देने के बाद यह खुद-ब-खुद ऊपर और नीचे की उड़ान भरकर जमीन के लक्ष्यों को भेदने में सक्षम है। इस तरह यह दुश्मन के वायु रक्षा प्रणालियों से बच निकलती है।
- भारतीय सेना में ब्रह्मोस के जमीनी हमले करने वाला संस्करण 2007 से इस्तेमाल किया जा रहा है।
- इसकी सटीकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह जमीनी लक्ष्य को 10 मीटर की ऊंचाई तक से भेद सकती है।
ब्रह्मोस मिसाइल
- ब्रह्मोस मिसाइल का पहला परीक्षण 12 जून 2001 को चांदीपुर से ही किया गया था।
- ब्रह्मोस एक सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल है।
- यह घनी शहरी आबादी में भी छोटे लक्ष्यों को सटीकता से भेदने में सक्षम है।
- ब्रह्मोस मिसाइल दो चरणीय वाहन है। इसमें ठोस प्रोपेलेट बुस्टर तथा एक तरल प्रोपेलेट रैम जैम सिस्टम लगा हुआ है।
- यह मिसाइल 8.4 मीटर लम्बी तथा 0.6 मीटर चौड़ी है। इसका वजन 3 हजार किलोग्राम है।
- यह मिसाइल 300 किग्रा. वजन तक विस्फोटक ढोने तथा 350 किमी. तक मार करने की क्षमता रखती है।
- यह सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल आवाज की गति से भी 2.8 गुना तेज जाने की क्षमता रखती है।
- इस मिसाइल को पानी के जहाज, हवाई जहाज, जमीन एवं मोबाइल लंचर से छोड़ा जा सकता है।
- इस मिसाइल को किसी भी दिशा में लक्ष्य की तरफ मनचाहे तरीके से छोड़ा जा सकता है।
- इसे पनडुब्बी से, पानी के जहाज से, विमान से या जमीन से भी छोड़ा जा सकता है।
- यह मिसाइल तकनीक थलसेना, जलसेना और वायुसेना तीनों के काम आ सकती है।