Tuesday 8 May 2018

"एक टिस"


सिविल-सेवा की तैयारी करने वाले उन सभी अभ्यर्थी की दशा जो लंबे समय से तैयारी करते हुए असफलता का मुँह देख रहें  है या फिर अब असफल/सफल होने के लिए उनके पास समय ही नहीं बचा:-

प्रिय पाठकों, हालांकि इस भावना को बाँध पाना, उसे निर्दिष्ट दिशा दे पाना, आसान नहीं है या यूँ कहें शब्दों में ढाल पाना ..............! सिविल-सेवा की तैयारी करते-करते छात्र किस प्रकार अपनी इच्छाओं, जिम्मेदारियों, खुशियों, व पारिवारिक-सामाजिक सम्बन्धों की उपेछा करते हैं। न जाने कितने असंख्य अध-जगी रातों का सार अपने-आप में पिरोये रहते हैं। और उसके बाद भी असफलता का मुँह ............. । इसका दर्द वो ही समझ सकता है जिसने सिविल-सेवा की तैयारी जी तोड़ के किया हो। जो लोग इसकी तैयारी दिल्ली के मुखर्जी नगर में या फिर ............... किये वो अच्छे से समझ सकते है। तैयारी के दौरान समय कब बीत जाता है (कईयों ने इसमें दशक बिता दिए हैं।) पता ही नहीं चलता है। असल में ये ऐसी तैयारी है जिसमें ‘क’ के कारण ‘ख’ और ‘ख’ के कारण ‘क’ उत्तपन होता है। नहीं समझे अब क्या करें सिविल-सेवा की .......... । दरअसल असल कभी PT तो कभी MAINS तो कभी फिर से PT-MAINS तो कभी INTERVIEW तो कभी फिर से ............ । कभी स्टेट PCS:-  PT-MAINS-INTERVIEW, PT, PT-MAINS. और छात्र मांझी की तरह न जानें कब अपने जीवन इसे उतार लेते हैं उन्हें पता ही नहीं चलता की, “जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं, बहुतै बड़ा दंगल चलेगा रे तोहर हमार” .......... । और मुखर्जी नगर के कोचिंग संस्थान या फिर ............, इस तैयारी के दौरान ........... हमेशा दम भरते रहते हैं और उससे बाहर निकलने नहीं देते, फिर से मांझी फिल्म के उस डाइलॉग (dialogues) की तरह ....... “बहुत अकड़ है तोहरा में, देख कैसे उखाड़ते हैं अकड़ तेरी ........ । 
          
                        दरअसल आंकड़ों पर गौर करें तो इस परीक्षा में सफल होने का चांस मात्र लगभग 0.0007% आंकड़ों में थोड़ा उतार-चढ़ाव सम्भब है क्योंकि हर साल .........। हो सके तो समय रहते अपने दायें-बायें (Other Exams.) भी देखते रहें। मगर क्या करें  कमबख्त ये तयारी ही ऐसे है की ‘क’ के कारण ‘ख’ और ‘ख’ के कारण ‘क’ ........ । जो लोग इस तैयारी से जुड़े हुए हैं या ....... और खास कर मुखर्जी नगर, ........... में रह रहे होंगे या रहे होंगें इस दर्द को समझ सकते हैं। याद है वो डाइलॉग जब कुछ लोग अक्सर आप से कहते होगें की ................ तब आप भी सोंचते होगें की:- “लोग कहता है हम पागल हैं जिंदगी खराब कर रहा है” अरे हम तो वो .............. । तो भाई, खाली UPSC के भरोसे मत बैठिए,  का पता वो आपकी ......... ले बैठेगा। लेकिन क्या करें उस समय होंश कहाँ ........ । 
           
                      यह याद रहे यह उनके लिए है जो सिविल-सेवा की तैयारी करने वाले उन सभी अभ्यर्थी की दशा के बारे में बात की जा रही है जो लंबे समय से तैयारी करते हुए असफलता का मुँह देख रहें  है या फिर अब असफल/सफल होने के लिए उनके पास समय ही नहीं बचा।

⇰ उनकी अब इक्षाएँ मर चुकी है, वो अब बस शरीर ढोने के लिए खाना खाते हैं। वो अब सिर्फ तन ढकने के लिए कपड़े पहनते हैं, स्वाद और फैशन से तो अब कोशों दूर हैं।

 बार-बार असफल हो कर उन्होंने अपने और अपनों के सपनों को टूटते हुए देखा है।

 वो अब घर जाने से कतराते हैं, या घर पर भी रहेते हैं तो उन्हें या लोगों को उनसे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनका जीवन अक्सर चार दीवारों के बिच ही पाया जाता है।

 वे अब लोगों से मिलना नहीं चाहते हैं। तथाकथित रिश्ते-नातेदारों के ताने-बाने अब उन्हें उनसे मिलने से रोकते हैं।

 उन्हें अब अगर किसी काम से बाहर (वैसे वो चार दीवारों के बिच ही ....) जाना भी होता है है तो रात होने का इन्तेजार करते हैं।

 वो अब “माँ मैं बिलकुल ठीक हूँ, खाना अच्छे से खाता हूँ, कोई समस्या नहीं है, ......... । “पापा पैसे की कोई प्रोब्लम नहीं है”, हालाँकि उनकी ............ रही होती है। लेकिन वे अब अच्छे झूट बोलना भी सीख लिए हैं।

 “और कब तक पढोगे”, कब ......... लगेगी, कब ........ करोगे जैसे सवालों का जवाब वो एक अशुध्द मुस्कान के साथ दे देते हैं।

 हालांकि वे अपने गम को सीने में दबा कर वो अपने दोस्तों की शादी में कभी-कभार शामिल भी हो जाते हैं।

 वे अब बंद कमरे में आंसू बहाकर औरों के सामने हंस देते हैं।

 वे अब हर मुश्किल परिस्थिति के सामने चट्टान बन कर खड़ा हो जाते हैं।

 अब शायद उन्हें किसी भी चीज से डर नहीं लगता।

 इतना सब कुछ सह कर भी वो फिर से रुकते नहीं हैं, एक असफलता को भुलाकर वो शाम को फिर से बैठ जातें है, अपनी सुख-दुःख की साथी अपनी कितबों के साथ जो हमेशा से अपने आघोष में उन्हें लिए रहती है .............

      नोट:- ये लेखक के निजी बिचार हैं अगर किन्हीं को यह लेख पढ़ कर ठेस पहुँची हो या ........... तो यह उनकी समस्या है। लेखक को इसके लिए रत्ती भर भी जिम्मेदार न समझा जाए।
                
                                                                                          राजीव रंजन