Monday, 7 May 2018

क्या ट्रेडिंग सिस्टम से FTA समाप्त हो गया है


प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जगदीश भगवती ने अपनी पुस्तक Termites in the Trading System: How Preferential Agreements Undermine Free Trade में खेद व्यक्त किया कि कैसे मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) की बढ़ती संख्या विश्व व्यापार प्रणाली के लिये एक खतरा है।

क्या है मुक्त व्यापार संधि (Free Trade Agreement-FTA)?
  • मुक्त व्यापार संधि का प्रयोग व्यापार को सरल बनाने के लिये किया जाता है।
  • FTA के तहत दो देशों के बीच आयात-निर्यात के तहत उत्पादों पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि को सरल बनाया जाता है।
  • इसका एक बड़ा लाभ यह होता है कि जिन दो देशों के बीच में यह संधि की जाती है, उनकी उत्पादन लागत बाकी देशों के मुकाबले सस्ती हो जाती है।
  • इसके लाभ को देखते हुए दुनिया भर के बहुत से देश आपस में मुक्त व्यापार संधि कर रहे हैं।
  • इससे व्यापार को बढ़ाने में मदद मिलती है और अर्थव्यवस्था को गति मिलती है।
  • इससे वैश्विक व्यापार को बढ़ाने में भी मदद मिलती रही है। हालाँकि, कुछ कारणों के चलते इस मुक्त व्यापार का विरोध भी किया जाता रहा है।


FTA बुरा क्यों है?
  • भगवती FTA को व्यापार परिवर्तन और व्यापार सृजन के प्रभावों के कारण बुरा मानते हैं। बड़ा सवाल यह है कि ये प्रभाव विश्व व्यापार को किस हद तक विकृत करते हैं।
  • FTA मार्ग के माध्यम से विश्व व्यापार कितना होता है, इस बात का पता इस माध्यम से लगाया जा सकता है।
  • चूँकि FTA अधिकतर उत्पादों पर शून्य आयात शुल्क पर व्यापार की इजाजत देता है और 280 से अधिक FTA दुनिया भर में परिचालित हो रहे हैं, इसलिये माना जाता है कि अधिकांश विश्व व्यापार FTA मार्ग के माध्यम से होता है।
  • हालाँकि, वैश्विक और द्विपक्षीय निर्यात-आयात डेटा से पता चलता है कि विश्व व्यापार का अधिकांश हिस्सा FTA के बाहर होता है (इसमें अंतर-ईयू व्यापार शामिल नहीं है, क्योंकि यूरोपीय संघ एक एकीकृत आर्थिक इकाई है)।
  • यूरोपीय संघ के निर्यात और आयात का केवल 13.6 प्रतिशत FTA साझेदार देशों के माध्यम से होता है। दक्षिण कोरिया को छोड़कर 41 FTA भागीदारों में से अधिकांश कच्चे माल और कम अंतिम उत्पादों की आपूर्ति करते हैं।
  • जापान के लिये, 17 FTA साझेदार देशों के माध्यम से केवल 20.8 प्रतिशत निर्यात और 24 प्रतिशत आयात होता है।
  • एशियन और चीन पूर्वी एशियाई अंतर्राष्ट्रीय उत्पादन नेटवर्क के केंद्र हैं लेकिन चीन के निर्यात का केवल 30.1 प्रतिशत और आयात का 23.2 प्रतिशत FTA साझेदार देशों के माध्यम से होता है और आसियान का 31.1 प्रतिशत निर्यात और 42.1 प्रतिशत आयात छह FTA साझेदार देशों के माध्यम से होता है।
  • भारत के मामले में, 19.4 प्रतिशत निर्यात और 18.1 प्रतिशत आयात FTA के साझेदार देशों के माध्यम से होता है।
  • ध्यातव्य है कि हमारे पास अभी तक चीन के साथ पूर्ण FTA नहीं है।
  • जबकि, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया दो अपवाद हैं, जहाँ FTA देशों के साथ उच्चतम साझा व्यापार है।
  • ऑस्ट्रेलिया का 71 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया का 76.9 प्रतिशत निर्यात FTA पार्टनर देशों में होता है।
  • हमने यह भी देखा कि FTA हमेशा भागीदारों के बीच व्यापार या व्यापार के विकास में वृद्धि नहीं करता है।
  • यूएस-कनाडा-मेक्सिको के बीच 1994 में हस्ताक्षर किये गए उत्तरी अमेरिकी FTA (NAFTA) एक उदाहरण है।
  • 1994 में NAFTA पर हस्ताक्षर करने से ठीक पहले अमेरिकी व्यापार में NAFTA का हिस्सा 28.9 प्रतिशत था जो आज 31.8 प्रतिशत है।
  • यदि हम NAFTA से बाहर निकल जाते हैं, तो यूएस निर्यात का केवल 13.2 प्रतिशत और इसके आयात का 8.3 प्रतिशत शेष 18 FTA भागीदारों से आता है।
  • इन उदाहरणों से पता चलता है कि FTA भागीदारों के साथ अधिकांश देशों के व्यापार का हिस्सा उनके कुल वैश्विक व्यापार का 20-40 प्रतिशत ही है।
  • हालाँकि, अधिकांश व्यापार FTA के बाहर होने के कई कारण हैं।
  • FTA आयात शुल्क को कम करता है, लेकिन यदि यह पहले से ही शून्य है, तो FTA कोई लाभ नहीं दे सकता है और आधे विश्व व्यापार को कवर करने वाले उत्पादों पर आयात शुल्क शून्य है तो डब्ल्यूटीओ में सामंजस्यपूर्ण बातचीत की जा सकती है।
  • FTA के कम उपयोग के अन्य कारणों में उत्पत्ति के जटिल नियम हैं। उत्पत्ति के नियम न्यूनतम मूल्य वृद्धि जैसी स्थितियों को लागू करते है, जिन्हें किसी उत्पाद को बनाने के लिये गैर-FTA साझेदार देश के इनपुट का उपयोग करने की आवश्यकता होती है।
  • क्योंकि अधिकांश (लगभग 83-85 प्रतिशत) विश्व व्यापार FTA के बाहर होता है। केवल 15-17 प्रतिशत व्यापार अधिमानी शर्तों पर होता है।
  • लेकिन टैरिफ बढ़ाने और चीन की प्रतिक्रिया में अमेरिकी कार्रवाई के चलते टैरिफ अभी भी आयात को विनियमित करने का केंद्रीय साधन हैं और इन्हें केवल FTA के माध्यम से कम किया जाना चाहिये जब आर्थिक लाभ स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किये जा सकते हैं।


निष्कर्ष
दरअसल, इसमें कोई शक नहीं है कि एफटीए, सिद्धांत की दृष्टि से एक उद्देश्यपूर्ण आर्थिक नीति है, लेकिन क्या यह व्यवहार में भी उतनी ही लाभदायक है? इस पर बहस की जा सकती है। इसलिये भारत को सोच-समझकर आगे कदम बढ़ाना चाहिये। यह दिलचस्प है कि वर्ष 2004 में प्रमुख अर्थशास्त्री पॉल सैमुअलसन ने कहा था कि ‘मुक्त व्यापार वास्तव में श्रमिकों के लिये बदतर हालत पैदा कर सकता है’। मुक्त व्यापार को बढ़ावा देते समय हमें रोजगार सृजन की चिंताओं को भी ध्यान में रखना होगा। अतः सरकार को गैर-टैरिफ बाधाएँ, सार्वजनिक खरीद में स्थानीय वरीयता पर भी ध्यान देना चाहिये। जब हम बात मुक्त व्यापार की कर रहे हैं, तो हमें सिद्धांतों एवं वास्तविकताओं का ध्यान रखते हुए आगे बढ़ना होगा।