हाल ही में बंगाल की खाड़ी से उत्पन्न चक्रवाती तूफान ओडिशा के तट पर पहुँचा। उल्लेखनीय है कि ‘डे’ (DAYE) नामक यह चक्रवाती तूफान इस साल बंगाल की खाड़ी में उठने होने वाला पहला तूफान है जिसका नामकरण किया गया है और इसका यह नाम म्यांमार ने रखा है।
चक्रवात
चक्रवात कम वायुमंडलीय दाब के चारों ओर गर्म हवाओं की तेज आँधी को कहा जाता है। दोनों गोलार्द्धों के चक्रवाती तूफानों में अंतर यह है कि उत्तरी गोलार्द्ध में ये चक्रवात घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा में (Counter-Clockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा (Clockwise) में चलते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इस इसे हरिकेन, टाइफून आदि नामों से जाना जाता है।
भारत में आते हैं उष्णकटिबंधीय चक्रवात
➤ भारत में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से ही अधिकांश तूफानों की उत्पत्ति होती है, जिन्हें उष्णकटिबंधीय चक्रवात कहा जाता है।
➤ भारतीय उपमहाद्वीप के आस-पास उठने वाले तूफान घड़ी चलने की दिशा में आगे बढ़ते हैं।
➤ उष्णकटिबंधीय चक्रवात एक तूफान है जो विशाल निम्न दबाव केंद्र और भारी तड़ित-झंझावतों के साथ आता है और तीव्र हवाओं व घनघोर वर्षा की स्थिति उत्पन्न करता है।
➤ उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति तब होती है जब नम हवा के ऊपर उठने से गर्मी पैदा होती है, जिसके फलस्वरूप नम हवा में निहित जलवाष्प का संघनन होता है।
➤ ऐसे चक्रवात मुख्यतः 30° उत्तरी एवं 30° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य आते हैं क्योंकि इनकी उत्पत्ति हेतु उपरोक्त दशाएँ यहाँ मौजूद होती हैं।
➤ भूमध्य रेखा पर निम्न दाब के बावजूद नगण्य कोरिओलिस बल के कारण पवनें वृत्ताकार रूप में नहीं चलतीं, जिससे चक्रवात नहीं बनते।
➤ दोनों गोलार्द्धों में 30° अक्षांश के बाद ये पछुआ पवन के प्रभाव में स्थल पर पहुँचकर समाप्त हो जाती हैं।
➤ वृहद् समुद्री सतह जहाँ तापमान 27°C से अधिक हो, कोरिओलिस बल का होना, उर्ध्वाधर वायु कर्तन (Vertical Wind Shear) का क्षीण होना, समुद्री तल तंत्र का ऊपरी अपसरण आदि इनकी उत्पत्ति एवं विकास के लिये अनुकूल स्थितियाँ हैं।
चक्रवातों का नामकरण
➤ हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देश (बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्याँमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा थाइलैंड) एक साथ मिलकर आने वाले चक्रवातों के नाम तय करते हैं।
➤ जैसे ही चक्रवात इन आठों देशों के किसी भी हिस्से में पहुँचता है, सूची से अगला या दूसरा सुलभ नाम इस चक्रवात का रख दिया जाता है।
➤ इस प्रक्रिया के चलते तूफ़ान को आसानी से पहचाना जा सकता है और बचाव अभियानों में भी मदद मिलती है। किसी नाम का दोहराव नहीं किया जाता है।
➤ नामकरण करने वाला शासी निकाय क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र (Regional Specialised Meteorological Centre- RSMC), नई दिल्ली में स्थित है।
➤ प्रत्येक देश उन दस नामों की एक सूची तैयार करता है जो उन्हें चक्रवात के नामकरण के लिये उपयुक्त लगते हैं। शासी निकाय अर्थात् RSMC प्रत्येक देश द्वारा सुझाए गए नामों में आठ नामों को चुनता है और उसके अनुसार आठ सूचियाँ तैयार करता है जिनमें शासी निकाय द्वारा अनुमोदित नाम शामिल होते हैं।
➤ वर्ष 2004 से चक्रवातों को RSMC द्वारा अनुमोदित सूची के अनुसार नामित किया जाता है।
चक्रवातों के नामकरण का इतिहास
➤ 1900 के मध्य में समुद्री चक्रवाती तूफान का नामकरण करने की शुरुआत हुई ताकि इससे होने वाले खतरे के बारे में लोगों को समय रहते सतर्क किया जा सके, संदेश आसानी से लोगों तक पहुँचाया जा सके तथा सरकार और लोग इसे लेकर बेहतर प्रबंधन और तैयारियाँ कर सकें, लेकिन तब नामकरण की प्रक्रिया व्यवस्थित नही थी।
➤ विशेषज्ञों के अनुसार, नामकरण की विधिवत प्रक्रिया बन जाने के बाद से यह ध्यान रखा जाता है कि चक्रवाती तूफानों का नाम आसान और याद रखने लायक होना चाहिये इससे स्थानीय लोगों को सतर्क करने, जागरूकता फैलाने में मदद मिलती है।
➤ 1950 के मध्य में नामकरण के क्रम को और भी क्रमवार ढंग से सुनिश्चित करने के उद्देश्य से विशेषज्ञों ने इसकी बेहतर पहचान के लिये इनके नामों को पहले से क्रमबद्ध तरीके से रखने हेतु अंग्रेजी वर्णमाला के शब्दों के प्रयोग पर जोर दिया।
➤ 1953 से मायामी नेशनल हरीकेन सेंटर और वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (WMO) तूफानों और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम रखता आ रहा है। WMO जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ की एक संस्था है।
➤ पहले उत्तरी हिंद महासागर में उठने वाले चक्रवातों का कोई नाम नहीं रखा जाता था क्योंकि ऐसा करना विवादास्पद काम था। इसके पीछे कारण यह था कि जातीय विविधता वाले इस क्षेत्र में सावधान और निष्पक्ष रहने की जरूरत थी ताकि यह लोगों की भावनाओं को ठेस न पहुँचाए।