Sunday, 9 September 2018

केरल की बाढ़ में सबसे बड़ी झील का योगदान

  केंद्रीय जल आयोग (CWC) ने पाया है कि केरल की सबसे बड़ी झील, वेम्बनाड झील की वहनीय क्षमता में जमाव, जो अति प्रवाह वाली नदियों से उत्पन्न जल के एक अंश को अवशोषित कर सकती है, ने केरल की बाढ़ को बदतर बना दिया।     प्रमुख बिंदु  वेम्बनाड झील अत्यधिक वर्षा और 480 वर्ग किमी. से अधिक जलप्लावित क्षेत्र के कारण 1.63 BCM के केवल 0.6 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) को अवशोषित करने में सक्षम था। CWC ने अब अपवाह मार्ग की क्षमता में वृद्धि का सुझाव दिया है जिसके माध्यम से पंबा, मणिमाला, एथेनकोविल और मीनाचिल जैसी नदियाँ झील तथा बैराज में बहती हैं जिनके माध्यम से झील सागर में मिलती है। CWC सूत्रों के अनुसार, झील की क्षमता अधिक होने पर स्थिति बेहतर हो सकती थी।  CWC ने केरल की बाढ़ जिसमें कम-से-कम 480 लोगों की मौत हुई और व्यापक क्षति हुई, के बाद अपने पहले विश्लेषण में अगस्त महीने के दौरान तीव्र बारिश के दो सत्रों को इसका कारण माना जिसमें 8-9 अगस्त को दो दिनों की बारिश और बाद में 15 से 17 अगस्त तक हुई तीन दिनों की बारिश शामिल है।  केरल में पिछले महीने की बाढ़ के कारण अपनी स्पष्ट भूमिका पर बहस के मुख्य बिंदु में बांधों के प्रबंधन के साथ CWC ने राज्य में सभी बड़े जलाशयों के नियमों को कम करने की समीक्षा किये जाने का सुझाव दिया है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि जलाशयों के निश्चित स्तर तक पहुँचने पर कितना पानी छोड़ा जाना चाहिये। CWC के अनुसार 200 मिलियन क्यूबिक मीटर की वर्तमान क्षमता वाले बांधों के लिये यह और भी ज़रूरी है।  CWC ने इडुक्की बांध के विशिष्ट संदर्भ में  कहा कि इडुक्की बांध ने अधिकांश अपवाह को अवशोषित कर लिया और बारिश की तीव्रता के दौरान बांध से बहिर्वाह अंतर्वाह की तुलना में कम था। इस तरह इसने बाढ़ के लिये एक अवशोषक के रूप में कार्य किया। अगस्त माह में बड़े पैमाने पर अंतर्वाह से निपटने के लिये केरल में 35 बांधों के गेट खोले गए थे।  केरल में इन तीव्र अवधि के दौरान उत्पन्न बारिश का अपवाह इतना अधिक था कि बांधों के बाढ़ नियंत्रण प्रभाव को रोक दिया गया था। अपवाह क्षेत्र से बारिश के जल का जलाशयों तक पहुँचने में अत्यंत कम समय लगने में केरल की स्थलाकृति ने भी योगदान दिया।  जलाशयों के लिये ऐतिहासिक डेटा के आधार पर नियमों को कम करने की समीक्षा की जानी आवश्यक थी, जिससे यह निर्धारित होता कि मानसून अवधि में हर महीने कितना पानी छोड़ा जाना चाहिये क्योंकि कुछ एक को छोड़कर केरल के अधिकांश जलाशय छोटे हैं।

केंद्रीय जल आयोग (CWC) ने पाया है कि केरल की सबसे बड़ी झील, वेम्बनाड झील की वहनीय क्षमता में जमाव, जो अति प्रवाह वाली नदियों से उत्पन्न जल के एक अंश को अवशोषित कर सकती है, ने केरल की बाढ़ को बदतर बना दिया। 

प्रमुख बिंदु
  • वेम्बनाड झील अत्यधिक वर्षा और 480 वर्ग किमी. से अधिक जलप्लावित क्षेत्र के कारण 1.63 BCM के केवल 0.6 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) को अवशोषित करने में सक्षम था।
  • CWC ने अब अपवाह मार्ग की क्षमता में वृद्धि का सुझाव दिया है जिसके माध्यम से पंबा, मणिमाला, एथेनकोविल और मीनाचिल जैसी नदियाँ झील तथा बैराज में बहती हैं जिनके माध्यम से झील सागर में मिलती है। CWC सूत्रों के अनुसार, झील की क्षमता अधिक होने पर स्थिति बेहतर हो सकती थी। 
  • CWC ने केरल की बाढ़ जिसमें कम-से-कम 480 लोगों की मौत हुई और व्यापक क्षति हुई, के बाद अपने पहले विश्लेषण में अगस्त महीने के दौरान तीव्र बारिश के दो सत्रों को इसका कारण माना जिसमें 8-9 अगस्त को दो दिनों की बारिश और बाद में 15 से 17 अगस्त तक हुई तीन दिनों की बारिश शामिल है। 
  • केरल में पिछले महीने की बाढ़ के कारण अपनी स्पष्ट भूमिका पर बहस के मुख्य बिंदु में बांधों के प्रबंधन के साथ CWC ने राज्य में सभी बड़े जलाशयों के नियमों को कम करने की समीक्षा किये जाने का सुझाव दिया है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि जलाशयों के निश्चित स्तर तक पहुँचने पर कितना पानी छोड़ा जाना चाहिये। CWC के अनुसार 200 मिलियन क्यूबिक मीटर की वर्तमान क्षमता वाले बांधों के लिये यह और भी ज़रूरी है। 
  • CWC ने इडुक्की बांध के विशिष्ट संदर्भ में  कहा कि इडुक्की बांध ने अधिकांश अपवाह को अवशोषित कर लिया और बारिश की तीव्रता के दौरान बांध से बहिर्वाह अंतर्वाह की तुलना में कम था। इस तरह इसने बाढ़ के लिये एक अवशोषक के रूप में कार्य किया। अगस्त माह में बड़े पैमाने पर अंतर्वाह से निपटने के लिये केरल में 35 बांधों के गेट खोले गए थे। 
  • केरल में इन तीव्र अवधि के दौरान उत्पन्न बारिश का अपवाह इतना अधिक था कि बांधों के बाढ़ नियंत्रण प्रभाव को रोक दिया गया था। अपवाह क्षेत्र से बारिश के जल का जलाशयों तक पहुँचने में अत्यंत कम समय लगने में केरल की स्थलाकृति ने भी योगदान दिया। 
  • जलाशयों के लिये ऐतिहासिक डेटा के आधार पर नियमों को कम करने की समीक्षा की जानी आवश्यक थी, जिससे यह निर्धारित होता कि मानसून अवधि में हर महीने कितना पानी छोड़ा जाना चाहिये क्योंकि कुछ एक को छोड़कर केरल के अधिकांश जलाशय छोटे हैं।