Wednesday, 12 September 2018

ये हैं बोधिवृक्ष को काटने के तीन असफल प्रयास


1. इस वृक्ष को काटने का पहला प्रयास तब किया गया जब सम्राट अशोक दूसरे प्रदेशों की यात्रा पर गए हुए थे। ये पेड़ सम्राट अशोक की एक वैश्य रानी तिष्यरक्षिता ने चोरी-छुपे कटवाया था। लेकिन मान्यताओं के अनुसार रानी का यह प्रयास विफल साबित हुआ और पेड़ पूरी तरह से नष्ट नहीं हुआ। वहीं, एक बार फिर से ये पेड़ पनपने लगा और देखते ही देखते इसमें नया पेड़ उगकर आ गया जो लगभग 800 साल तक सही सलामत रहा। गौरतलब है कि सम्राट अशोक ने अपने बेटे महेन्द्र और बेटी संघमित्रा को सबसे पहले बोधिवृक्ष की टहनियों को देकर श्रीलंका में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करने भेजा था और श्रीलंका के अनुराधापुरम में लगाया ये पेड़ आज भी मौजूद है।

2. इस पेड़ पर तब बुरा वक्त आया जब बंगाल के राजा शशांक ने बोधिवृक्ष को इसे नष्ट करने की पूरी योजना बना डाली और योजना के तहत राजा शशांक ने इस बोधि वृक्ष में आग लगवा दी जिससे पेड़ की जड़े बर्बाद हो जाए और पेड़ दोबारा ना उगे। लेकिन वे इसमें असफल रहे क्योंकि जड़ें पूरी तरह नष्ट नहीं हो पाईं। कुछ सालों बाद इसी जड़ से तीसरी पीढ़ी का बोधिवृक्ष निकला, जो तकरीबन 1250 साल तक मौजूद रहा।

3. आखिर में वर्ष 1876 में भारी प्राकृतिक तबाही हूई जिसके चलते बोधिवृक्ष नष्ट हो गया। माना जाता है कि अग्रेंजों के शासन के दौरान लार्ड कानिंघम ने 1880 में श्रीलंका के अनुराधापुरम से बोधिवृक्ष की शाखा मांगवाकर इसे बोधगया में फिर से स्थापित कराया और यही इस बोधिवृक्ष की कहानी एक बार फिर से शुरू होती है और आज तक भी ये पीढ़ी का चौथा बोधिवृक्ष मौजूद है।