Wednesday 19 September 2018

इसरो की चुनौतियाँ एवं उपलब्धियाँ


हाल ही में डॉ के. सिवान को इसरो का चेयरमैन नियुक्त किया गया है। अंतरिक्ष में भारत के सपनों को पंख लगाने वाली इसरो की चुनौतियों एवं उपलब्धियों की समीक्षा का यह उपयुक्त अवसर है। प्रायः ऐसा देखने को मिलता है कि कुछ लोग अंतरिक्ष अभियानों में होने वाले खर्च को संसाधनों का दुरुपयोग बताते हैं। जबकि किसी देश ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवता का कल्याण बहुत हद तक अंतरिक्ष अभियानों पर निर्भर है।

पृष्ठभूमि

कब हुई स्थापना?

➤ वर्ष 1969 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) की स्थापना हुई। यह भारत सरकार की अंतरिक्ष एजेंसी है।

किसकी है प्रबंधन की जिम्मेदारी?

➤ इसे भारत सरकार के ‘स्पेस डिपार्टमेंट’ द्वारा प्रबंधित किया जाता है, जो सीधे भारत के प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है।

इसरो की वर्षवार प्रमुख उपलब्धियाँ?

वर्ष 1975 की उपलब्धियाँ

 भारत के प्रथम उपग्रह जिसका नाम आर्यभट्ट था इसरो द्वारा छोड़ा गया। 

 आर्यभट्ट भारत के प्रसिद्ध खगोलविद आर्यभट्ट थे।

 पर्णतः स्वदेश निर्मित यह स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में भारत की मजबूत उपस्थिति का परिचायक बना।

वर्ष 1993 की उपलब्धियाँ

 पीएसएलवी यानी कि भारतीय अंतरिक्ष संगठन का ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान अस्तित्व में आया।

 परक्षेपण यान ऐसे रॉकेट्स को कहते हैं, जो उपग्रहों, मानव रहित और मानव सहित यानों को अंतरिक्ष में ले जाने का काम करते हैं।

वर्ष 2014 की उपलब्धियाँ

 इसरो की मदद से भारत पहले ही प्रयास में मंगल तक सफलतापूर्वक पहुँचने वाला पहला देश बना।

 नासा, सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम और यूरोपीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के अलावा, रेड प्लैनेट यानी मंगल पर पहुँचने वाला इसरो चौथा अंतरिक्ष संगठन बना।

वर्ष 2017 की उपलब्धियाँ

 15 फरवरी, 2017 को इसरो ने अंतरिक्ष में 104  सैटेलाइट्स लॉन्च किये। 

 इन सैटेलाइट्स को पीएसएलवी-सी 37 द्वारा एक ही लॉन्च कार्यक्रम के जरिये छोड़ा गया।

 29 जुलाई, 2017 को इसरो ने Gsat-17 नामक संचार उपग्रह छोड़ा। 

 Gsat-17 को लगभग 15 वर्षों के लिये डिजाइन किया गया है।

इसरो के वर्ष 2018 में कार्यान्वित होने वाले अभियान

गौरतलब है कि तीन साल के शॉर्ट-टर्म एक्शन प्लान के तहत, वर्ष 2018 के लिये इसरो ने अपनी योजना का स्वरुप तैयार किया है।

GSAT-6A

 यह एक संचार उपग्रह (communication satellite) होगा। जिसे GSLV-F08 द्वारा लॉन्च किया जाएगा।

IRNSS-1I

 यह एक नेविगेशन सैटेलाईट (navigation satellite) होगा और  इसे भी पीएसएलवी के ज़रिये ही लॉन्च करने की योजना बनाई जा रही है।

GSAT-29

 GSLV-MkIII के दूसरे चरण का विकास यानी D-2 का आरंभ किया जाएगा।

 GSLV-MkIII के ज़रिये उच्च माध्यमिक उपग्रह (high throughput satellite) GSAT-29 को लॉन्च किया जाएगा।

GSAT-11

 GSAT-11, जो कि अब तक का सबसे बड़ा उपग्रह होगा को भी लॉन्च किया जाएगा।

चंद्रयान-2

 चद्रयान -2 मिशन इस साल एक और जीएसएलवी के जरिये लॉन्च किया जाएगा।

सेमी-क्रायोजेनिक लॉन्च व्हीकल

 समी-क्रायोजेनिक लॉन्च व्हीकल  इंजन के विकास का कार्य प्रगति पर है। जिसके परीक्षण का लक्ष्य वर्ष 2019 रखा गया है।

ह्यूमन स्पेस फ्लाइट

 यह अभियान अभी तक अनुमोदित कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है क्योंकि इससे ह्यूमन स्पेस फ्लाइट मिशन के लिये कई तकनीकों की आवश्यकता है।

 हालाँकि भविष्य में इस संबंध में कार्यक्रम शुरू किया जा सकता है।

क्या हैं इसरो की चुनौतियाँ

सीमित संसाधन

 इसरो की सबसे बड़ी चुनौतियाँ लॉन्च व्हीकल से संबंधित है। 

 विदित हो कि इसरो के पास दो लॉन्च पैड और केवल एक व्हीकल असेंबली ही है।

लॉन्च की तैयारी के लिये कम समय

 इसरो की एक बड़ी समस्या यह भी है कि इसे लॉन्च की तैयारियों के लिये कम समय मिल पा रहा है।

 दरअसल, इसरो इतने बड़े पैमाने पर गतिविधियाँ चला रहा है कि उसे दो लगातार लॉन्च के बीच तैयारियों के लिये कम ही वक्त मिल पा रहा है।

चीन और रूस से प्रतिद्वंद्विता

 इसरो अपनी पूरी कार्यक्षमता के उपयोग द्वारा सैटेलाईट लॉन्चिंग का एक सस्ता विकल्प बन सकता है।

 लकिन परियोजनाओं के धीमे क्रियान्वयन और सरकार द्वारा पर्याप्त समर्थन न मिल पाने के कारण भारत इस क्षेत्र में रूस और चीन से पिछड़ सकता है।

आगे की राह

लागत में कमी

 इसरो का लक्ष्य कुल मिशन लागत को कम करना होना चाहिये। 

 उपग्रह लागत के साथ-साथ लॉन्च व्हीकल की लागत भी कम होनी चाहिये।

कार्यक्षेत्र में विस्तार

 इसरो ने हाल ही में एक ऐसा एप डिजाइन किया है जो मछुआरों को मछलियों की अधिक संख्या वाले स्थानों के बारे में बातएगा।

 इसरो को इस तरह के तकनीकी नवाचारों को आगे बढ़ाते हुए अपने कार्यक्षेत्र में विस्तार करना होगा।

अन्य सुधार

 इसरो के अभियानों को सरकार द्वारा पर्याप्त समर्थन के अलावा निजी भागीदारियों से भी जोड़ना होगा।

 विदित हो कि पीएसएलवी रॉकेट के निर्माण हेतु पब्लिक-प्राइवेट कंसोर्टियम की शुरुआत होना एक स्वागत योग्य कदम है।

 अधिक-से-अधिक उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करना आवश्यक है और इसके लिये अधिक लॉन्च व्हीकल की आवश्यकता है।

 अतः बेहतर अंतरिक्ष बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु अधिक से अधिक बजट की जरूरत की पूर्ति भी होनी चाहिये।