The water of this river is destroyed only by touching all the virtues - why is the river Karmanasa desecration. (Author: Rajeev Ranjan)
वैसे तो भारत में कई नदियाँ हैं इनमें से कई नदियाँ बहुत पवित्र है और लोगों द्वारा उन नदियों की पूजा भी की जाती है तो एक ऐसी नदी भी है जो इसके विपरीत समझी जाती है और वो है कर्मनाशा नदी। कर्मनाशा जिसका शाब्दिक अर्थ है धार्मिक गुणों का विनाशक। ऐसा माना जाता है की इस नदी को शाप लगा हुआ है और इसे अपवित्र माना जाता है।
कर्मनाशा नदी पवित्र गंगा नदी की सहायक नदी है। ये बिहार के कैमूर जिले अधौरा व भगवानपुर स्थित कैमूर की पहाड़ी से हुआ है। यह बिहार और उत्तर प्रदेश से होकर के बहती है। ये नदी इन चार जिलो में बहती है - सोनभद्र जिला, चंदौली जिला, वाराणसी जिला, गाजीपुर जिला। यह नदी बक्सर के समीप गंगा नदी से मिलती है। यह माना जाता है की जो भी इसका पानी छु ले उसकी योजनायें बाधित हो जाती है।
कर्मनाशा नदी पवित्र गंगा नदी की सहायक नदी है। ये बिहार के कैमूर जिले अधौरा व भगवानपुर स्थित कैमूर की पहाड़ी से हुआ है। यह बिहार और उत्तर प्रदेश से होकर के बहती है। ये नदी इन चार जिलो में बहती है - सोनभद्र जिला, चंदौली जिला, वाराणसी जिला, गाजीपुर जिला। यह नदी बक्सर के समीप गंगा नदी से मिलती है। यह माना जाता है की जो भी इसका पानी छु ले उसकी योजनायें बाधित हो जाती है।
कर्मनाशा नदी के बारे में प्रचलित कल्पित कहानी
इस नदी के बारे में जानकारी हमें पौराणिक कथाओं में भी मिलती है, इस कथा के अनुसार त्रिशंकु की लार से इस नदी का जन्म हुआ। यह कहा जाता है की राजा त्रिशंकु गुरु वशिष्ठ जो की उनके कुल गुरु थे के पास गए और उनसे कहा की उन्हें सशरीर स्वर्ग लोक भेजे। पर वसिष्ठ ने यह कहकर उन्हें ठुकरा दिया की यह सनातनी नियमों के विरुद्ध है। बाद में वे गुरु वसिष्ठ के पुत्रो के पास गए और उनके सामने भी यही इच्छा प्रकट की।लेकिन गुरु वचन की अवज्ञा की बात कहते हुए उन्होंने त्रिशंकु को चंडाल होने का शाप दे दिया। इसके बाद वह विश्वामित्र नामक संत के पास गए जो की वसिष्ठ के द्रोही थे और त्रिशंकु ने उन्हें उकसाया यह कहकर की वह अपमानित हुए है। तब अपने तबोबल से महर्षि विश्वामित्र ने त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग में भेज दिया। देवताओं को इस पर आश्चर्य हुआ और उन्होंने गुरु शाप से भ्रष्ट त्रिशंकु को निचे मुहँ करके वापिस धरती पर भेजने लगे।त्रिशंकु त्राहिमाम करते हुए वापिस धरती पर जाने लगे। महर्षि विश्वामित्र ने यह जानकारी पा उन्हें दोबारा स्वर्ग भेजने का प्रयत्न किया। महर्षि विश्वामित्र और देवताओ के बीच इस युद्ध में त्रिशंकु सर निचे किये आसमान में लटके रह गए। उनके मुँह से तेज लार टपकने लगी, जिससे इस नदी का जन्म हुआ।
कौन थे त्रिशंकु
त्रिशंकु सूर्य वंश के राजा थे, उनका नाम सत्यव्रत था वे महादानी राजा हरिश्चंद्र के पिता थे और सूर्यवंशी राजा त्रिवर्धन के पुत्र थे। ये ही त्रिशंकु के नाम से विख्यात हुए।
कर्मनाशा को माना जाता है एक अपवित्र नदी
कर्मनाशा नदी को अपवित्र नदी माना जाता है क्योंकि इसे छुने मात्र से ही व्यक्ति के सारे पूण्य और कर्म खत्म हो जाते है और व्यक्ति पूण्यहीन हो जाता है। इस नदी में एक बार जो बाढ़ आ गयी तो वो किसी ना किसी व्यक्ति की जान लेकर ही जाती है। यदि पेड़ इस नदी का पानी छु ले तो वो फिर हरा नहीं हो सकता। यह भी माना जाता है की प्राचीन काल में जब बौद्ध धर्म के उत्कर्ष काल में इस क्षेत्र में बौद्धों की संख्या तेजी से बढ़ रही थी उन्हे मगध जैसे राज्यों का राजाश्रय भी प्राप्त हुआ साथ ही कर्मनाशा नदी को पार करने के साथ ही बौद्धों का क्षेत्र प्रारंभ हो जाता था, जिसके कारण ये क्षेत्र प्राचीन धर्मावलंबियों के लिए अपवित्र हो गए और इस नदी को पार करना या छुना भी अपवित्र समझा जाने लगा।