गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण किसी भी देश के विकास के मार्ग की बाधाएँ हैं।
प्रधानमंत्री ने अपने हालिया ‘मन की बात’ कार्यक्रम में 1942 से 1947 के बीच के पाँच वर्षों की चर्चा की अर्थात् भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर भारत के स्वतंत्र होने तक का समय।
इस कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी ने कहा कि आने वाले पाँच वर्ष देश की कई बड़ी समस्याओं को हल करने की दिशा में बेहद महत्त्वपूर्ण साबित होने वाले हैं, जिनमें देश से गरीबी हटाने का लक्ष्य भी शामिल है, जो बेहद महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने आने वाले 15 अगस्त को ‘संकल्प दिवस’ के रूप में मनाने की अपील करते हुए कहा कि 2017 से 2022 संकल्प सिद्धि के वर्ष हैं। 2017 को संकल्प वर्ष के रूप में मनाएं तो 2022 तक सफलता दिखेगी। पाँच साल में निर्णायक परिणाम दिख सकते हैं।
इसके लिये संकल्प करना होगा—गंदगी-भारत छोड़ो, गरीबी-भारत छोड़ो, आतंकवाद-भारत छोड़ो, जातिवाद-भारत छोड़ो, संप्रदायवाद-भारत छोड़ो।
ऑल इंडिया रेडियो (आकाशवाणी) पर प्रसारित होने वाला ‘मन की बात’ कार्यक्रम का यह 34वां संस्करण था।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो पर प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम की शुरुआत 3 अक्टूबर 2014 को हुई थी।
आज की इस परिचर्चा में यह जानने-समझने का प्रयास किया गया है कि एक ऐसे देश में जहाँ एक-चौथाई जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे रहती है और जिसका बहुत बड़ा हिस्सा ग्रामीण अंचल में रहता है, क्या वहाँ आगामी पाँच वर्षों में गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित करना उचित होगा?
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये कौन-कौन से उपाय करने होंगे?
प्रमुख बिंदु
➤ 1947 में जब देश आज़ाद हुआ था, उस समय गरीबी की स्थिति बेहद गंभीर थी। बीते 70 वर्षों में इस दिशा में काफी काम हुआ और देश में गरीबी कम भी हुई है, लेकिन यह पर्याप्त तथा संतोषजनक नहीं है।
➤ प्रश्न यह उठता है कि क्या ऐसा लक्ष्य निर्धारित करना ठीक है? इस पर जानकारों का कहना है कि इसमें गलत कुछ नहीं, बल्कि जब देश तेज़ी से विकास कर रहा है तो ऐसा लक्ष्य सामने रखने का यह सबसे उचित समय है और यह आवश्यक भी है।
➤ देश हर क्षेत्र में पहले से बेहतर कर रहा है और चीजें तेजी से बदल रही हैं। ऐसे में यदि नीतियों का क्रियान्वयन कुशलतापूर्वक किया जाए, व्यवस्था को और चाक-चौबंद बनाया जाए, रोज़गार के नए अवसर तलाशे जाएं, तो गरीबी को दूर करना अपेक्षाकृत अधिक सरल हो जाएगा।
➤ देशभर में हाल ही में लागू हुए जीएसटी का उदाहरण लीजिये—आज से 6 महीने पहले कोई यह मानने के लिये तैयार नहीं था कि इसे दिन का उजाला देखने को मिलेगा यानी इसके तय समय पर लागू होने में संदेह था, लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति ने इसे संभव कर दिखाया। ऐसा ही गरीबी उन्मूलन के साथ भी हो सकता है।
➤ आजादी के बाद से हर सरकार ने देश में व्याप्त गरीबी को एक चुनौती के रूप में लिया और समय-समय पर इसके निवारण के लिये योजनाओं और नीतियों का सूत्रपात होता रहा।
➤ एक समय में यह मुद्दा देश में इतना ज्वलंत रहा कि 1971 में हुआ आम चुनाव कांग्रेस पार्टी ने इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा देकर जीत लिया था।
➤ गरीबी उन्मूलन के लिये पहली बनी नीतियाँ प्रभावशाली थीं या नहीं, यह एक अलग प्रश्न है, लेकिन इतना निश्चित है कि उनको लागू करने के इच्छाशक्ति सरकारों के पास नहीं थी।
➤ अब इन्हीं नीतियों और योजनाओं को वर्तमान सन्दर्भों में पुनः व्यवस्थित कर उनका पुनरावलोकन किया गया है, ताकि इन्हें प्रभावी तरीके से लागू किया जा सके।
➤ आज परिस्थितियाँ पहले की अपेक्षा काफी भिन्न हैं और देश में ऐसा माहौल है कि गरीबी उन्मूलन की नीतियों को प्रभावी तरीके से लागू किया जा सकता है।
➤ उन्नत डिजिटल तकनीकों का प्रयोग करते हुए गरीबी उन्मूलन की नीतियों को वर्तमान समय के अनुकूल बनाकर लागू किया जाना चाहिये।
➤ ‘गरीबी हटाओ’ केवल नारा मात्र बनकर नहीं रह जाना चाहिये, बल्कि इसे धरातल पर क्रियान्वित करने के लिये प्रयास करने होंगे।
➤ चीन की तरह ‘एक संतान नीति’ लागू करना भारत में संभव नहीं है, फिर भी कुछ ऐसे प्रभावी कदम उठाने अनिवार्य हैं, जिनसे 20-22 मिलियन प्रतिवर्ष की रफ़्तार से बढ़ रही भारतीय जनसंख्या पर कुछ लगाम लगाई जा सके।
➤ इसके बिना गरीबी उन्मूलन सपना ही बनकर रह जाने वाला है।
➤ देश में गरीबी कम करने के प्रयासों में सर्वोपरि है कृषि क्षेत्र को उसका खोया हुआ गौरव लौटाना, क्योंकि देश में कृषि कार्यों से जुड़ी बहुत बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है।
➤ कृषि क्षेत्र से भारत की लगभग 60% आबादी जुड़ी हुई है और इस क्षेत्र की विकास दर निरंतर कम हुई है।
➤ कृषि क्षेत्र को प्रोत्साहन दिये बिना देश से गरीबी दूर करने की कल्पना करना ही बेमानी है।
➤ कृषि को पर्याप्त महत्त्व न दिये जाने का ही यह परिणाम है कि ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन शहरों की ओर हो रहा है, जो देश में गरीबी बढ़ाने का एक बड़ा कारण है।
➤ पिछले 5-7 वर्षों में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों की ज़मीन तक पहुँच 10% कम हुई है।
➤ किसान के पास पैसा नहीं होता, तो वह साहूकार के पास ज़मीन गिरवी रखकर पैसा लेता है—साहूकार के पास जमीन चले जाने का मतलब आज भी प्रेमचंद के किसी कथानक का दोहराव ही है।
➤ देश में गरीबी कम करने के लिये सरकार को ऐसा वातावरण बनाना होगा, जिसमें निर्माण और विनिर्माण क्षेत्र में लोगों को अधिकाधिक रोज़गार मिले।
➤ जब बेरोजगारी कम होगी तो गरीबी भी कम होगी।
➤ प्रत्यक्षतः ऐसा प्रतीत होता है कि रोज़गार के मोर्चे पर देश की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। प्रतिवर्ष 10-12 मिलियन लोग कामगारों की श्रेणी में जुड़ जाते हैं, लेकिन उनके लिये रोजगार की समुचित व्यवस्था नहीं हो पाती है।
➤ यदि हम विगत अनुभव को देखें तो आने वाले पाँच वर्षों में गरीबी दूर करने का प्रधानमंत्री का आह्वान अति आत्मविश्वास से भरा प्रतीत होता है, जिसकी प्राप्ति बेहद कठिन है।
➤ ऐसे में यदि लक्ष्य का 50% भी देश हासिल कर पता है तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।
➤ विगत कुछ वर्षों में देश में विकास दर काफी अच्छी रही है, लेकिन यह विकास असमान हुआ है तथा गरीब और अमीर के बीच की खाई और चौड़ी हुई है।
➤ देश की कुल गरीब आबादी की आय का एक बहुत बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर खर्च होता है।
➤ यह भी देश में गरीबी का स्तर बढ़ने का एक बहुत बड़ा कारण है, जिसे विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में तथा अजा/अजजा के बीच सामूहिक स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराकर कम किया जा सकता है।
➤ इसके लिये अलग से नीति बनाने की आवश्यकता है।
➤ देश में गरीबी रेखा के आसपास रहने वाले दो-तिहाई लोग किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या से निपटने में हुए खर्च के बाद गरीबी रेखा से नीचे आ जाते हैं। इसके लिये ऐसी नीति बनाने की आवश्यकता है कि एक बार गरीबी रेखा से ऊपर उठ चुका व्यक्ति पुनः गरीबी रेखा से नीचे न आने पाए।
➤ विकास और गरीबी का चोली-दामन का साथ है। जहाँ विकास होगा, वहाँ गरीबी कम होगी, लेकिन इसके लिये ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि समाज के प्रत्येक वर्ग को इसका लाभ मिले।
➤ एक अरब 30 करोड़ की विशाल जनसंख्या वाले देश में गरीबों के लिये बनाई गई नीतियों का निर्धारण/ क्रियान्वयन इस प्रकार होना चाहिये कि उनका लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे।
गरीबी और बेरोजगारी का संबंध
➤ भारत में 2011 में हुई जनगणना के अनुसार, काम खोज रहे लोगों (जिनके पास कोई काम नहीं था) की संख्या 6.07 करोड़ थी, जबकि 5.56 करोड़ लोगों के पास सुनिश्चित काम नहीं था।
➤ इस प्रकार कुल 11.61 करोड़ लोग सुरक्षित और स्थायी रोजगार की तलाश में थे।
➤ यह संख्या वर्ष 2021 में बढ़कर 13.89 करोड़ हो जाने की संभावना है।
➤ वर्ष 2001 से वर्ष 2015 के बीच भारत में 2,34,657 किसानों और खेतिहर श्रमिकों ने आत्महत्या की, क्योंकि न तो उन्हें उत्पाद का उचित मूल्य मिला, न बाजार में संरक्षण मिला और न ही आपदाओं की स्थिति में सम्मानजनक तरीके से राहत मिली।
➤ राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के अनुसार, भारत में वर्ष 2001 से 2015 के बीच 72,333 लोगों ने गरीबी और बेरोजगारी के कारण आत्महत्या की।
➤ देश में रोजगार की लोचशीलता में निरंतर कमी आ रही है, जिससे रोज़गार के अवसरों में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पा रही है।
➤ ऐसे में यह बहुत जरूरी हो जाता है कि भारतीय व्यवस्था के अनुरूप कृषि और औद्योगिकीकरण की नीति को प्रोत्साहित किया जाए, जो रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने में निश्चित ही सहायक होगा।
भारत-चीन गरीबी की तुलना
➤ अब चीन गरीबी पूरी तरह हटाने की योजना बना रहा है।
➤ चीन के शीर्ष नीति निर्धारकों में इस बात पर सहमति बनी है कि गरीबी को पूरी तरह तभी दूर किया जा सकता है, जब वर्तमान नीतियों और विकास की रफ्तार को बनाए रखा जाए।
➤ चीन यह मानता है कि गरीबी दूर करने के प्रयासों में बेहद निचले स्तर की गरीबी और लक्षित उपायों की कमी और पैसे की निगरानी में लापरवाही जैसी समस्याएं अब भी बनी हुई हैं।
➤ चीन की बड़ी आबादी गरीबी से जूझ रही है। चीन के महानगरों में करोड़पतियों की संख्या लाखों में है, लेकिन गरीबों की संख्या करोड़ों में है, लेकिन चीन उन देशों में शामिल हैं, जिसने विगत वर्षों में तेजी से अपनी गरीबी कम की है।
➤ आज से लगभग चार दशक पूर्व चीन की आर्थिक स्थिति भारत से कमतर थी।
➤ विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक तब चीन में भारत से 26% अधिक गरीब थे।
➤ 1978 के बाद चीन में तेजी से आर्थिक सुधार हुए और 2015 में भारतीयों के मुकाबले चीनी पांच गुना अधिक अमीर हो गए।
➤ चीन में भूमि सुधार, शिक्षा व्यवस्था में विस्तार और जनसंख्या नियंत्रण के लिये उठाए कदमों ने चीन को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया।
➤ 1978 में जब चीन में आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई थो उसकी प्रति व्यक्ति आय 155 डॉलर थी, जबकि भारत की प्रति व्यक्ति आय 210 डॉलर थी।
➤ भारत में आर्थिक सुधारों का सिलसिला 1991 में शुरू हुआ।
➤ उस समय चीन में प्रति व्यक्ति आय 331 डॉलर थी, जबकि भारत में प्रति व्यक्ति आय 309 डॉलर थी।
➤ 1991 के बाद से भारत में प्रति व्यक्ति आय केवल 5 गुना बढ़ी तो इस दौरान चीन में प्रति व्यक्ति आय में 24 गुना वृद्धि हुई।
➤ 2015 में चीन में प्रति व्यक्ति आय 7925 डॉलर और भारत में प्रति व्यक्ति आय 1582 डॉलर थी।
भारत में गरीबी के आर्थिक-सामाजिक-प्राकृतिक कारण
➤ आश्चर्य की बात है कि प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध माना जाने वाला हमारा देश वैश्विक मानदंडों पर गरीब देशों की श्रेणी में आता है।
➤ देश की विशाल जनसंख्या देश में गरीबी का संभवतः सबसे बड़ा कारण है, क्योंकि लगातार होने वाली जनसंख्या वृद्धि प्रति व्यक्ति आय को कम करती है।
➤ जितना बड़ा परिवार, उतनी ही कम प्रति व्यक्ति आय।
➤ भूमि और सम्पत्ति का असमान वितरण भी गरीबी का एक अन्य कारण है।
➤ इसके अलावा, देश में मौसम की दशाएँ अर्थात् प्रतिकूल जलवायु लोगों के कार्य करने की क्षमता कम करती है और बाढ़, अकाल, भूकंप तथा चक्रवात आदि उत्पादन को बाधित करते हैं।
➤ संयुक्त राष्ट्र की 2015 में जारी सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में सबसे अधिक भूख से पीड़ित लोग भारत में हैं।
➤ विगत 10 वर्षों में गरीबी आधी हो गई है, फिर भी 27 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा से नीचे निवास करते हैं, जिनकी आय 1.25 डॉलर प्रतिदिन से कम है। यहाँ की एक चौथाई जनसंख्या कुपोषण का शिकार है और लगभग एक तिहाई जनसंख्या भूख से पीड़ित है।
निष्कर्ष
➤ अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्री रैग्नर नर्कसे के अनुसार, “एक देश इसलिये गरीब है, क्योंकि वह गरीब है।
➤ ”यह कथन इस दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता की ओर संकेत करता है कि गरीबी एक दुश्चक्र है।
➤ इस चक्र में बचत का स्तर कम होता है, जो निवेश के अवसरों को कम करता है, जिसके कारण आय का कम होती है और यह चक्र इसी प्रकार चलता रहता है।
➤ यद्यपि पिछले कुछ वर्षों में अर्थव्यवस्था में प्रगति के कुछ स्पष्ट संकेत दिखाई दिये हैं, लेकिन इसमें काफी असमानता देखने को मिलती है।
➤ गरीबी का प्रकोप एक-आयामी नहीं होता, बल्कि उसका आक्रमण बहुआयामी होता है।
देश में गरीबी को क्या हमेशा के लिये खत्म किया जा सकेगा?
➤ इस सवाल का जवाब इस पर निर्भर करता है कि सरकार के पास इसके लिये क्या रणनीति है।
➤ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि गरीबों के कल्याण को केंद्र में रखकर सरकारी नीतियों का निर्धारण किया जाना चाहिये और देश में होने वाला विकास चौतरफा होना चाहिये।
➤ केवल ऊँची विकास दर और प्रति व्यक्ति आय के सहारे विकास नहीं हो सकता।
➤ भारत सरकार गरीबी कम करने के लिये समय-समय पर तरह-तरह की योजनाओं का क्रियान्वयन करती रही है।
➤ गरीबी की गणना के लिये सरकार तरह-तरह की समितियों का गठन करती रहती है, लेकिन इन सब के बीच सबसे बड़ा प्रश्न यही है की क्या सरकार वास्तव में गरीबी को कम करने के लिये प्रतिबद्ध है?