वर्ष 1975 में उस समय की इंदिरा गांधी सरकार ने मार्च, 1977 तक अर्थात् 21 माह के लिये पूरे भारत में राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर दी।
चूँकि अनुच्छेद 352 आरोपित किया गया था अतः इसने सरकार को असाधारण शक्तियाँ प्रदान कर दीं जिसके परिणामस्वरूप सरकार ने विपक्षी नेताओं तथा आंदोलित नागरिकों का दमन आरंभ कर दिया। सरकार ने कई विवादित कदम उठाए जिससे आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का अंधयुग की संज्ञा दी जाती है।
➤ सरकार ने पुलिस बलों का इस्तेमाल किया और इसके विरोध में आंदोलन कर रहे अनेक प्रसिद्ध विपक्षी नेताओं को बंदी बना लिया। नागरिकों के मौलिक अधिकारों में कटौती की गई तथा बिना किसी सुनवाई के एक लाख से भी अधिक लोगों को बंदी बना लिया गया।
➤ नियमित चुनाव लोकतंत्र की आधारभूत विशेषता होती हैं लेकिन उस दौरान संसद और राज्य विधानसभाओं दोनों के निर्वाचन को स्थगित कर दिया गया और 8 से भी अधिक राज्य सरकारों को आपातकाल का विरोध करने के प्रत्युत्तर में अपदस्थ कर दिया।
➤ मीडिया जिसे लोकतंत्र का चतुर्थ स्तंभ कहा जाता है, आपातकाल के दौरान व्यथित रहा। समाचार-पत्र, टेलीविजन, रेडियो इत्यादि जैसे मास मीडिया के माध्यमों पर कई सेंसरशिप आरोपित किये गए। देश की जनता को वास्तविक समाचार के स्थान पर केवल सेंसरयुक्त समाचार से अवगत कराया जाता था।
➤ संसद में दो-तिहाई बहुमत की सरकार ने अनेक अध्यादेश और कानून पारित किये, साथ ही अपनी राजनीतिक इच्छाओं के अनुकूल संवैधानिक संशोधन भी किये; इन परिवर्तनों ने प्रधानमंत्री को अपने निर्णय से शासन करने की स्वकृति दे दी।
➤ सरकार ने विरोधी आवाज को नियंत्रित करने के लिये सभी प्रकार की शक्तियों का प्रयोग किया और इन 21 महीनों में नागरिकों के महत्त्वपूर्ण अधिकार को छीन लिया गया। अतः जून 1975 से मार्च 1977 की अवधि भारतीय लोकतंत्र में सबसे विवादित समझी जाती है।