Monday, 5 March 2018

पद्मावत के सांस्कृतिक महत्त्व पर टिप्पणी करें।



मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा 16वीं सदी में रचित पद्मावत सिंहलद्वीप की राजकुमारी पद्मावती और चित्तौड़ के राजा रत्नसेन के प्रणयगाथा है। कथा का द्वितीय भाग ऐतिहासिक है, जिसमें चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण और 'पद्मावती के जौहर' का सजीव वर्णन है। 'पद्मावत' मसनवी शैली में रचित एक प्रबंध काव्य है।

पद्मावत के सांस्कृतिक महत्त्व को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
  • जायसी ने ‘पद्मावत’ में विभिन्न जातियों का यथास्थान उल्लेख किया है। मध्ययुग में समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और अन्य वर्णों में बँटा हुआ था और ब्रह्मणों की श्रेष्ठता तत्कालीन समाज में भी पाई जाती थी।
  • जायसी का पद्मावत तत्कालीन राजपूत समाज की शासन पद्धति, प्रथाओं, रीति-रिवाजों, विवाह-पद्धतियों, नारी की स्थिति आदि की जानकारी देने वाला महत्त्वपूर्ण काव्य है।
  • जायसी ने मध्ययुगीन भारतीय समाज में प्रचलित गौना प्रथा, खान-पान में बावन प्रकार के भोजन, वस्त्राभूषण, रस्म-रिवाज, गायन-वादन, क्रीड़ा-विनोद आदि की चर्चा ‘पद्मावत’ में की है।
  • पद्मावत भारत में सूफी परंपरा से जुड़ा महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है।
  • यह काव्य मध्य युग में राजपूत महिलाओं में प्रचलित ‘जौहर’ की परंपरा की जानकारी देता है।
  • यह काव्य तत्कालीन नारी की सुंदरता के विलक्षण वर्णन के साथ-साथ उसमें आत्म-सम्मान की रक्षा के भाव तथा उसके साहस को भी प्रदर्शित करता है। 
  • यह तत्कालीन भारत के साहित्य में भाषाई विविधता को दर्शाने वाला काव्य है। 
  • एक मुस्लिम होते हुए भी जायसी ने पद्मावत में तमाम हिंदू परंपराओं और त्यौहारों का उल्लेख किया है। यह तत्कालीन समाज में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द्र का भी परिचायक है।