Monday 12 March 2018

'Goal' ('लक्ष्य')

'Goal' (Author: Rajeev Ranjan)


Nobody can stop you from reaching your goal when the size of your desire is more than obstacles in the way. 

यह कहानी है 1938 की एक हंगरी सेना (Hungarian Army) के जवान की जिसका नाम था केरोली (Karoly Takacs)। वो एक पिस्तौल शूटिंग का बेहतरीन खिलाड़ी था और उसका सपना भी यह था की वो पिस्तौल शूटिंग (Pistol Shooting) में ओलंपिक (Olympics) में स्वर्ण पदक (Gold Medal) जीते। उसकी मेहनत, लगन और रिकॉर्ड को देखते सबको यह लग भी रहा था की इस बार के 1940 में होने वाले ओलंपिक (Olympics) में यही स्वर्ण पदक (Gold Medal) जीतेगा।

उसकी वजह यह थी की वो उस हंगरी देश (Hungary) का सबसे बेहतरीन पिस्तौल निशानेबाज (Pistol Shooter) था और उसने उस देश (Country) में जितनी भी राष्ट्रीय प्रतियोगिता (National Championship) हुई थी उसको वो जीत चुका था । सिर्फ उसका एक सपना था ओलंपिक (Olympics) में स्वर्ण पदक जितना और वो उस सपने से सिर्फ थोड़ा ही दूर था क्यों की दो साल बाद 1940 में ही ओलंपिक (Olympics) था।लेकिन उसके इस सपने पर अचानक से पानी फिर गया, वो एक आर्मी केम्प में अभ्यास कर रहा था उस वक्त एक हादसा हो गया। उसके दाहिने हाथ (Right Hand) में एक हथगोला (Hand Grenade) का विस्फोट हो गया और Karoly का हाथ इतनी बुरी तरह से जल गया की अब उस हाथ से वो कुछ नहीं कर सकता था, उसका वो हाथ एकदम बेकार हो गया, इस हादसे में Karoly का दाहिना हाथ (Right Hand) चला गया।मतलब सब खत्म। जो उसका सपना था वो रातों रात मिट्टी में मिल गया, अगर इस जगह पर हममें से कोई होता तो अपनी किस्मत पे रोता, और हार मान लेता लेकिन यह बहाने आम लोगों के लिए है Karoly के लिए नहीं। उसने इतने बड़े हादसे और कुदरत की इस मजाक के सामने हार नहीं मानी। उसे तो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जितना ही जितना था, उसका लक्ष्य (Goal) तो एकदम स्पष्ट था उसका मनोबल तो लोहे के तरह मजबूत फौलादी था। वो हार नहीं माना उठ खड़ा हुआ और उसने तय किया कोई बात नहीं इस हादसे में मेरा दाहिना हाथ (Right Hand) चला गया तो क्या हुआ मेरे पास बायाँ हाथ (Left Hand) तो है, उसने तय किया की वो अब अपने बाएँ हाथ (Left Hand) को दुनिया का सबसे बेहतरीन हाथ बनाएगा (Pistol Shooting Hand)।

अस्पताल में एक महिना बिताने के बाद जैसे ही उसे अस्पताल से छुट्टी मिली तो वो फिर से अपने मकसद में लग गया, हाँ उसने फिर से अपने दाएँ हाथ (Left Hand) से पिस्तौल शूटिंग का अभ्यास शुरू कर दिया। उसे शुरुआत में बहुत दर्द हुआ बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ा लेकिन फिर भी Karoly ने हार नहीं मानी।Karoly ने एक साल बहुत जमकर अभ्यास किया और एक साल बाद 1939 में वो वापस आया जहाँ हंगरी (Hungary) में नेशनल चैंपियनशिप हो रही थी उसमे हिस्सा लेने, तब तक किसी को पता नहीं था की Karoly अपने बाएँ हाथ (Left Hand) से अभ्यास कर रहा था। तो जैसे दूसरे प्रतियोगियों (Competitors) ने Karoly को देखा तो सब चौक गए और फिर उन्हें लगा की Karoly यहाँ हमारा हौसला बढ़ाने आया है, तो सब उसका धन्यवाद करने लगे लेकिन सबको तब झटका लगा जब Karoly ने कहा में यहाँ आप लोगों का हौसला बढ़ाने नहीं आपसे मुकाबला करने आया हूँ। आप लोगों से लड़ने आया हूँ।

वहाँ Karoly का मुकाबला था उन लोगों से जो अपने सबसे अच्छे हाथ से निशाना लगा रहे थे और Karoly अपने बाएँ हाथ (Left hand) से निशान लगा रहा था, बावजूद उसके यह हंगरी के नेशनल चैंपियनशिप Karoly जीत गया और उसकी बहुत तारीफ हुई सब हैरान थे की ये कैसे हो सकता है चारों तरफ बस यही चर्चा थी और Karoly रातों रात हीरो बन चुका था।

लेकिन Karoly वहाँ तक नहीं रुका, उसका तो बचपन से एक ही सपना (Dream) था एक ही लक्ष्य (Goal) था उसे तो दुनिया का सबसे बेहतरीन निशानेबाज (World Best Pistol Shooter) बनना था। इसलिए उसने अब 1940 में होने वाले ओलंपिक का अभ्यास शुरू कर दिया और फिर से सबको लगने लगा था की हाँ इस बार यही ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतेगा और वो बहुत ही सही तरीके से आगे बढ़ रहा था। लेकिन शायद किस्मत को यह मंज़ूर नहीं था किस्मत ने फिर से अपना पलड़ा बदला और 1940 के ओलंपिक विश्व युद्ध (World War) की वजह से रद्द हो गए।

उसका सपना अब फिर से धुँधला होता दिख रहा था सबको लगने लगा की अब तो सब ख़तम हो गया लेकिन हार माने ऐसा Karoly था नहीं। उसने कहा कोई बात नहीं यह नहीं तो आने वाले ओलंपिक 1944 में स्वर्ण पदक जीतूँगा और उसने अपनी मेहनत अभ्यास जारी रखा।

लेकिन किस्मत भी उसका बार बार इम्तिहान ले रहा था, 1944 में विश्व युद्ध (World War) की वजह से फिर से ओलंपिक रद्द हो गए। अब सबने सोच लिया था की Karoly का सपना सपना ही रह जाएगा और वो कभी हकीकत नहीं बन पाएगा ।

लेकिन किसी को यह नहीं पता था की Karoly ऐसे हार मानने वालो में से नहीं था, वो तो बना ही था जीत हासिल करने के लिए वो था एक सच्चा योद्धा (Real Fighter), सच्चा विजेता (Winner) उसने फिर से 1948 में होने वाले ओलंपिक की तैयारियाँ करने लगा और इस बार ओलंपिक में भाग लिया। उस समय Karoly की उम्र 38 साल हो गई थी और उसके प्रतिस्पर्धी (Competitors) बहुत ही जवान जोशीले थे। सब अपने बेहतरीन हाथ (Best Hand) से मुकाबला कर रहे थे और Karoly अपने बाएँ हाथ (Left Hand) से, फिर भी Karoly ने उनका मुकाबला किया। और उसने पिस्तौल निशानेबाजी में स्वर्ण पदक जीता। हाँ उसने कर दिखाया, हाँ नामुमकिन को भी मुमकिन कर दिखाया और आज उसका सपना सिर्फ सपना नहीं हकीकत बन गया।

पूरी दुनिया हिल गई की यह कैसे हो सकता है लेकिन सिर्फ एक व्यक्ति के अपने हार ना मानने वाले नजरिये से यह संभव हुआ और Karoly सिर्फ वहाँ तक नहीं रुका उसने 1952 फिर से उसने ओलंपिक में हिस्सा लिया और दोबारा स्वर्ण पदक जीता ।

हममें से कई ऐसे लोग होंगे जिन्हें अपने जीवन में शोले वाले ठाकुर की तरह फीलिंग आ रही होगी। जिस प्रकार शोले में ठाकुर के हाथ कटे पड़े थे और वह कुछ कर नहीं पाता था उसी प्रकार हममें से कई ऐसे लोग हैं जिनके हाथ रहेते हुए भी कटा हुआ महशुस (बेरोजगारी/हालात/कुछ परस्थितियों के कारन) करते होंगे, शोले में तो ठाकुर के पास रामलाल भी था जो ठाकुर के कांधे पर से अगर चादर गिर जाती थी तो रामलाल उस चादर को बापस कांधे पर रख देता था ताकि ठाकुर की इज्जत ....... लेकिन समम्स्या यह है की हममें से कईयों के पास रामलाल नहीं है जो ..........। वहरहाल समस्या अगर हमारी है तो हमें ही झुजना पड़ेगा इसलिए बैठना नहीं है, हारना नहीं, थकना नहीं, लड़ना है, लड़ना है जबतक ,तबतक चीजें ठीक न हो जाये और जिन्दगी को इतना जीना है की मरने वक्त हम कह सके की - "वाह क्या जिन्दगी जी, मजा आ गया जी कर।"

कुछ लोग हैं जो वक्त के साँचे में ढल गए,
कुछ लोग हैं जो वक्त के साँचे बदल गए।

जिसने भी जिन्दगी के मौको का फायदा उठा लिया वह जिन्दगी कि जंग जीत जाता हैं, नहीं तो हर साल इस जिन्दगीं के रेगिस्तान में लाखों लोग आते हैं कोई ........ तो कोई .......... बनने का सपना देखते हैं लेकिन सफल वही होते हैं जो आखरी साँस तक मेहनत करते हैं नहीं तो उनके शरीर के कंकाल को कोई नहीं पहचानता है और वह इस जिन्दगी के रेगिस्तान में खो जाते हैं