Sunday, 18 March 2018

”कोल गैसीफिकेशन की तकनीक क्या है और कैसे बनेगा कोयले से स्वच्छ ईधन”


नीति आयोग के रोडमैप के अनुसार देश की अगली अर्थव्यवस्था मेथनॉल आधारित होगी। पेट्रोलियम आयात पर बढ़ती निर्भरता को कम करने के लिए के रूप में देश में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कोयला से मेथनॉल बनाने की योजना बनी है। निकट भविष्य में न केवल मेथनॉल से गाड़ियां दौड़ती नजर आएंगी, बल्कि घरों के चूल्हे भी इससे जलेंगे। इस दिशा में आवश्यक शोध एवं तकनीक विकसित करने की जिम्मेदारी देश के चार शीर्ष संस्थानों को दी गई है।

ये बनाएंगे राह

धनबाद, झारखंड स्थित केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान (सिंफर), भारत हेवी इलेक्टिकल लि. (भेल), इंजीनियर्स इंडिया लि. (इआइएल) एवं आइआइटी दिल्ली व निजी कंपनी थर्मेक्स को सरकार ने तकनीक विकसित करने का दायित्व सौंपा है। जिसकी तकनीक सर्वश्रेष्ठ होगी उसे ही प्लांट बैठाने के लिए चुना जाएगा।

क्या है योजना

➤ इस योजना के तहत 2022 तक आयातित पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस पर निर्भरता में दस फीसद की कमी लाना है। अभी देश की जरूरत का 80 फीसद से अधिक कच्चा तेल आयात होता है। ऐसे में कोयले को मेथनॉल में तब्दील कर ऊर्जा विशेष तौर पर ऑटो ईंधन के रूप में इस्तेमाल की योजना तैयार की गई है। 

➤ प्रथम चरण में कोयला से मेथनॉल गैसीफिकेशन प्लांट बैठाने की योजना है जो आयात में दस फीसद कटौती के लिए पर्याप्त होगा। ये प्लांट झारखंड, बंगाल व ओडिशा में लगाए जाने की संभावना है। मोदी सरकार ने इसे बढ़ावा देने के लिए 5000 करोड़ रुपये का मेथनॉल फंड भी बना दिया है।

मेथनॉल ही क्यों

भारत में विश्व का पांचवां सबसे बड़ा कोल भंडार है, दूसरा यह पेट्रोल व डीजल की तुलना में अधिक पर्यावरण हितैषी है। मेथनॉल से नाइट्रोजन ऑक्साइड व पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) कम मात्रा में निकलता है। सल्फर ऑक्साइड तो जरा सा भी नहीं। इसे पेट्रोल-डीजल में मिला कर या पूर्ण रूप से एक रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

चीन है आगे

पड़ोसी मुल्क चीन कोयला से मेथनॉल उत्पादन में सबसे आगे है। वहां बड़े पैमाने पर ऑटो ईंधन के रूप में इसका इस्तेमाल हो रहा है। पूरी दुनिया में जितना मेथनॉल उत्पादित होता है उसमें 55 फीसद से अधिक हिस्सा चीन का है।

भारत की स्थिति

भारत में पांच सरकारी-निजी कंपनियां कम मात्रा में मेथनॉल बनाती हैं मगर कोयले से नहीं, बल्कि प्राकृतिक गैस से। अपने देश में मेथनॉल की मांग कम है मगर इसे भी पूरा करने के लिए 90 फीसद से अधिक आयात करना पड़ता है।

सिंफर के पास है कोल गैसीफिकेशन की तकनीक

➤ कोल टु मेथनॉल तकनीक में सबसे पहले कोयले से गैस बनाई जाती है और फिर मेथनॉल। कोल गैसीफिकेशन की तकनीक संस्थान पहले ही विकसित कर चुका है। अब इस गैस से मेथनॉल बनाने की तकनीक पर शोध जारी है। हमें पूरी सफलता मिलने की उम्मीद है।

➤ नीति आयोग से हमें कोयला से मेथनॉल की तकनीक विकसित करने का महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट मिला है। हमें पूरी उम्मीद है तय सीमा के अंदर यह तकनीक विकसित कर सौंप देंगे। हमारे वैज्ञानिक इसमें युद्धस्तर पर लगे हैं।