Saturday 31 March 2018

फ्रांस की क्रांति


फ्रांस की क्रांति 18 वीं शताब्दी में हुई, जिसका पूरे विश्व में व्यापक प्रभाव पड़ा। फ्रांसीसी क्रांति में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की जिस भावना का विकास हुआ उसने विश्व के अन्य राष्ट्रों को भी प्रभावित किया।

फ्रांसीसी क्रांति के कारण


1789 की फ्रांस की क्रांति की पृष्ठभूमि बहुत पहले ही तैयार हो चुकी थी। तत्कालीन राजनितिक, सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक कारणों से फ़्रांस का वातावरण उद्वेलित था। अमरीकी स्वतंत्रता संग्राम ने इस क्रांति को निकट ला दिया। इस क्रांति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे —

राजनीतिक कारण

1.निरंकुश राजशाही — यूरोप के अन्य देशों के समान फ्रांस में भी निरंकुश राजतंत्र था। राजा के हाथों में सारी शक्ति केंद्रित थी। राजा अपने आप को ईश्वर का प्रतिनिधित्व मानता था। उसकी इच्छा ही कानून थी। फ्रांस के बूर्बों वंश का सम्राट लुई चौदहवाँ दंभपूर्वक कहता था – “मैं ही राज्य हूँ”। लुई 16 वां का कहना था कि “मेरी इच्छा ही कानून है”। इस व्यवस्था में राजा की आज्ञा का उल्लंघन करना अपराध था।

2.राजदरबार की विलासिता – फ्रांस का राजदरबार विलासिता का केंद्र था। जनता से वसूला गया धन निर्ममतापूर्वक राजा अपने भोग – विलास और अमोद – प्रमोद पर खर्च करता था।

3.प्रशासनिक भ्रष्टाचार – राजा के सलाहकार, सेवक और अधिकारी भ्रष्ट थे। उनका एकमात्र उद्देश्य राजा की चाटुकारिता कर अपना उल्लू सीधा करना था। राजा के प्रमुख पदों पर योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि पैरवी पर नियुक्ति की जाती थी। पदाधिकारी एवं दरबारी एक दूसरे को निचा दिखाने के लिए षड़यंत्र में लगे रहते थे। इससे प्रशासन पर बुरा प्रभाव पड़ा।

4.अतिकेन्द्रीकृत प्रशासन – फ्रांस की प्रशासनिक व्यवस्था की एक बड़ी दुर्बलता यह थी कि प्रशासन कि सारी शक्ति राजा के हाथों में केंद्रित थी। उसकी इच्छा और सहमति के बिना कोई कार्य नहीं हो सकता था। स्वायत्त प्रशासनिक संस्थाओं का प्रचलन नहीं था। इस परिस्थिति में प्रशासनिक व्यवस्था शिथिल पड़ गई, क्योंकि राजा को भोग विलास से निकल कर प्रशासन की और ध्यान देने की फुर्सत ही नहीं थी।

5.प्रशासनिक अव्यवस्था – फ्रांस में प्रशासनिक एकरूपता का सर्वथा अभाव था वहां का प्रशासन अव्यविस्थित और बेढंगा था। विभिन्न प्रांतों, जिलों और अन्य प्रशासनिक इकाइयों में अलग अलग कानून प्रचलित थे। माप – तौल की प्रणाली, न्याय व्यवस्था एवं कानून तथा मुद्रा के प्रचलन में भी एकरूपता का अभाव था।

6.न्याय व्यवस्था की दुर्बलता – फ्रांस की न्याय व्यवस्था में भी अनेक दुर्गुण विद्यमान थे। न्याय व्यवस्था अत्यंत महँगी थी। छोटे – छोटे मुक़दमे में भी अत्यधिक धन खर्च होता था। सुयोग्य जज भी नहीं थे। इसीलिए, न्याय पाना अत्यंत कठिन था। फ्रांस की न्यायिक प्रक्रिया की सबसे विचित्र व्यवस्था थी राजाज्ञा या लेटर दी कैचे इसके द्वारा कोई भी कुलीन, दरबारी या सम्राट या प्रियपात्र अपने विरोधोयों को दंडित करवा सकता था। इसके आधार पर किसी भी व्यक्ति पर बिना मुकदमा चलाए उसे गिरफ्तार किआ जा सकता था। इसके अतिरिक्त दंड सम्बन्धी कानून में वर्ग विभेद था। समान अपराध के लिए उच्च वर्ग को कम सजा, परन्तु जनसाधारण को कड़ी सजा दी जाती थी।

7.व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभाव – फ्रांस की राजनीतिक – प्रशासनिक व्यवस्था में व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए कोई स्थान नहीं था। राजा के विरुद्ध भाषणों अथवा लेखों के माध्यम से आवाज नहीं उठाई जा सकती थी। भाषण,लेखन एवं प्रकाशन पर कठोर नियंत्रण था। राजा मुकदमा चलाए बिना भी किसी की गिरफ्तार कर दंडित कर सकता था। धार्मिक स्वतंत्रता भी नहीं थी। फ्रांस का राजधर्म कैथोलिक धर्म था। इसलिए प्रोटेस्टेंट धर्मावलंबियों के लिए कड़े दंड की व्यवस्था की गई थी।

सामाजिक कारण

फ्रांस का समाज वर्ग विभाजित था। प्रत्येक वर्ग की स्थिति दूसरे वर्ग से भिन्न थी। समाज तीन वर्गों अथवा इस्टेट्स में विभक्त था। प्रत्येक वर्ग के उपवर्ग भी थे। पहला वर्ग पादरियों का तथा दूसरा वर्ग कुलीनों का था। तीसरे वर्ग में समाज के अन्य सभी लोग आते थे। पादरियों की संख्या सबसे कम थी। लेकिन उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा सर्वाधिक थी। उन्हें किसी प्रकार का कर नहीं देना पड़ता था। इसके विपरीत किसानों की सामाजिक स्थिति दयनीय थी और करों का बोझ सर्वाधिक उन्हें ही झेलना पड़ता था। इन्हीं सब कारणों से समाज में एक विरोध की भावना पनप रही थी।

आर्थिक कारण

1789 की फ्रांस की क्रांति के लिए अनेक आर्थिक कारण भी उत्तरदायी थे। इनमे निम्नलिखित कारण महत्वपूर्ण है –

1.अव्यवस्थित अर्थव्यवस्था – फ्रांस की अर्थव्यवस्था अव्यवस्थित थी। राजकीय आय और राजा की व्यक्तिगत आय में अंतर नहीं था। किस स्रोत से कितना धन आना है और किन किन मदों में उन्हें खर्च करना है, निश्चित नहीं था। निश्चित योजना के अभाव में फ्रांस में आर्थिक तंगी थी।

2.दोषपूर्ण कर व्यवस्था – फ्रांस  की करप्रणाली दोषपूर्ण थी। समाज के प्रथम दो वर्ग करमुक्त थे। कर का सारा बोझ तृतीय वर्ग, विशेषतः किसानों पर था। इसीलिए कहा जाता था कि फ्रांस में पादरी पूजा करते हैं, कुलीन युद्ध करते हैं और जनता कर देती हैं। ऐसी व्यवस्था में असंतोष होना स्वाभाविक था।

3.कर – वसूली के प्रणाली – फ्रांस में कर निश्चित नहीं थे। इन्हे इच्छानुसार बढ़ाया जा सकता था। कर वसूली का कार्य ठिका पर दिया जाता था। ये ठीकेदार अधिक से अधिक कर वसूलते थे और इसके लिए वे किसानों पर अत्याचार भी करते थे।

4.व्यापारिक एवं व्यावसायिक अवरोध – अव्यवस्थित अर्थव्यवस्था में व्यवसाय एवं वाणिज्य का विकास भी ठप पड़ गया। व्यवसायियों और व्यापारियों पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध लगे हुए थे.उन्हें प्रत्येक प्रान्त, जिला, शहर और स्थान से विभिन्न प्रकार के कर देने पड़ते थे। इसका बुरा प्रभाव फ्रांस की अर्थव्यवस्था पर पड़ा।

5.बेकारी की समस्या – बेकारी की समस्या ने भी आर्थिक स्थिति को दयनीय बना दिया। औद्योगीकरण के कारण घरेलू उद्योग धंधे बंद हो गए। इनमे कार्यरत कारीगर और मजदूर बेकार हो गए, अतः वे क्रांति के समर्थक बन गए।

6.सैनिक का असंतोष – फ्रांस का सैनिक वर्ग, जिसमे अधिकांशतः किसान थे भी तत्कालीन व्यवस्था से असंतुष्ट था। उन्हें नियमित वेतन नहीं मिलता था। क्रांति के समय सैनिकों का बहुत दिनों से वेतन बकाया था। सैनिकों के भोजन वस्त्र का भी समुचित प्रबंध नहीं था। सेना में पदोन्नति योग्यता के आधार पर नहीं दी जाती थी। उच्च पदों पर सिर्फ कुलीन वर्ग के लोग ही नियुक्त होते थे। इससे सेना संतुष्ट थी।

बौद्धिक कारण

फ्रांस की क्रांति में फ्रांस के बौद्धिक वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका थी। फ्रांस में अनेक दार्शनिक, विचारक और लेखक हुए। इन लोगों ने तत्कालीन व्यवस्था पर करारा प्रहार किया। जनता उनके विचारों से गहरे रूप से प्रभावित हुई एवं क्रांति के लिए तैयार हो गई। जिन दार्शनिकों ने फ्रांस के जनमानस को झकझोर दिया उनमें मांटेस्क्यू , वाल्तेयर और रूसो का नाम उल्लेखनीय हैं।

विदेशी घटनाओं का प्रभाव

फ्रांस की क्रांति पर विदेशी घटनाओं का भी प्रभाव पड़ा। फ्रांस की क्रांति के पूर्व ही 1688 में इंग्लैंड में गौरव पूर्ण क्रांति हो चुकी थी। इसके परिणामस्वरूप इंग्लैंड में निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी शासन समाप्त हुआ तथा जनता के नागरिक अधिकारों की सुरक्षा हुई। फ्रांस में भी लोग इंग्लैंड जैसी संविधानिक शासन- व्यवस्था की कामना करने लगे।

फ्रांस पर अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम का व्यापक प्रभाव पड़ा। इस युद्ध में फ़्रांस ने अमेरिका को आर्थिक और सैनिक सहायता दी थी। फ्रांसीसी सैनिकों ने इस युद्ध में अमेरिका की तरफ से इस संघर्ष में भाग लिया। युद्ध के बाद जब वे सैनिक और स्वयंसेवक स्वदेश लौटे तो उन्हें इस बात की अनुभूति हुई कि जिस स्वतंत्रता तथा समानता के सिद्धांतों के लिए वे संघर्ष कर रहे थे, अपने देश में उन्ही का अभाव था। अतः वे भी राजतंत्रविरोधी हो गए। इसके अतिरिक्त अमेरिका कि सहायता करने से फ्रांस  की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई। सर कार दिवालियापन के कगार पर पहुंच गई। इन घटनाओं ने 1789 की फ्रांस  की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

तात्कालिक कारण

लुई सोलहवाँ की अयोग्यता – फ्रांस में विषम परिस्थिति होते हुए भी संभवतः क्रांति नहीं होती अगर शासन का बागडोर एक योग्य राजा के हाथों में होती। लुई सोलहवाँ मात्र 20 वर्ष की आयु में 1774 में गद्दी पर बैठा। उसमें प्रशासनिक अनुभव नहीं था। वह प्रशासन चलने में असमर्थ था उसका सारा समय भोग विलास में व्यतीत होता था। उस समय फ्रांस में आर्थिक संकट छाया हुआ था और राज्य तेजी से दियालीयपन की ओर बढ़ रहा था। जो फ्रांस की क्रांति का एक महवपूर्ण कारण था।