26 मार्च, 2018 को Google द्वारा चिपको आंदोलन की 45वीं वर्षगाठ पर इसे अपने डूडल में स्थान दिया गया।
चिपको आंदोलन क्या है?
खेजड़ली (जोधपुर) राजस्थान में 1730 के आस-पास अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में लोगों ने राजा के आदेश के विपरीत पेड़ों से चिपककर उनको बचाने के लिये आंदोलन चलाया था। इसी आंदोलन ने आजादी के बाद हुए चिपको आंदोलन को प्रेरित किया, जिसमें चमोली, उत्तराखंड में गौरा देवी सहित कई महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाया था।
‘अप्पिको आंदोलन’ की तर्ज पर
दक्षिण भारत में भी चिपको आंदोलन की तर्ज पर 1983 में ‘अप्पिको आंदोलन’ शुरू हुआ। 38 दिनों तक चलने वाले इस आंदोलन में भी उत्तरी कर्नाटक के गाँवों में महिलाओं ने पेड़ों को गले लगाकर उनकी रक्षा की थी।
नर्मदा बचाओ आंदोलन और साइलेंट वैली आंदोलन में भी महिलाओं ने सराहनीय भूमिका निभाई है। महिलाओं पर पर्यावरणीय मुद्दों के प्रभावों को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
➽ जिन इलाकों में अंधाधुंध पेड़ काटे जा रहे हैं, उन इलाकों में जलावन लकड़ी के लिये महिलाओं को दूर तक भटकना पड़ता है।
➽ वहीं कई लघु व कुटीर उद्योगों को कच्चा माल भी इन्हीं वनों से प्राप्त होता है, जो महिलाओं के रोजगार को भी प्रभावित करता है।
➽ रेगिस्तानी, पठारी और पहाड़ी प्रदेशों में जहाँ जल की भीषण कमी है, वहाँ महिलाओं को जल की व्यवस्था करने के लिये कई किलोमीटर पैदल चलना होता है इत्यादि।