Wednesday, 21 March 2018

जानें कौन हैं लिंगायत और कर्नाटक की राजनीति में क्या है लिंगायत समुदाय का महत्व


कर्नाटक सरकार ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने का अहम फैसला किया है।

अब बात करते हैं उस समुदाय की जिसको सिद्घारमैया सरकार ने अलग धर्म का दर्जा देने का फैसला किया है। सवाल लाजिमी है कि आखिर क्यों राज्य सरकार ने लिंगायत को अलग धर्म देने का फैसला किया और आने वाले विधानसभा चुनाव में लिंगायत कितनी अहम भूमिका निभा सकते हैं।


लिंगायत समुदाय क्या है और कर्नाटक के लिए यह क्यों महत्वपूर्ण है? 

➤ दरअसल लिंगायत को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है। यहाँ के 18 फीसदी लोग लिंगायत समाज से आते हैं।  

➤ बात 12वीं सदी की है जब समाज सुधारक बासवन्ना ने हिंदुओं में जाति व्यवस्था में दमन के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। बासवन्ना मूर्ति पूजा नहीं मानते थे और वेदों में लिखी बातों को भी खारिज करते थे। 

➤ लिंगायत समुदाय के लोग भी शिव की पूजा भी नहीं करते बल्कि अपने शरीर पर ही इष्टलिंग धारण करते हैं जोकि एक गेंद की आकृति के समान होती है। 

एक दशक से हो रही मांग

समुदाय के भीतर लिंगायत को हिंदू धर्म से अलग मान्यता दिलाने की मांग समय-समय पर होती रही है। लेकिन पिछले दशक से यह मांग जोरदार तरीके से की जा रही है. 2011 की जनगणना के वक्त लिंगायत समुदाय के संगठनों ने अपने लोगों के बीच यह अभियान चलाया कि वे जनगणना फर्म में अपना जेंडर न लिखें।

केंद्र के पास अंतिम अधिकार

➤ अलग धर्म का दर्जा देने का अंतिम अधिकार केंद्र सरकार के पास है। राज्य सरकारें इसको लेकर सिर्फ अनुशंसा कर सकती हैं। लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा मिलने पर समुदाय को मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 25-28) के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा भी मिल सकता है। 

➤ इसके बाद लिंगायत समुदाय अपना शिक्षण संस्थान भी खोल सकता है। फिलहाल मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन को अल्पसंख्यक का दर्जा हासिल है।