- गांधी जी की मृत्यु पर उन्हे कंधा देने वाले मुस्लिम का नाम- अबुल कलाम आजाद जो भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे।
- गांधी जी को महात्मा और बापू के नाम से भी जाना जाता है, महात्मा शब्द तो संस्कृत भाषा का है ओर बापू शब्द गुजराती भाषा का है।
- गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि रविन्द्रनाथ टैगोर ने दी तथा राष्ट्रपिता सुभाषचन्द्र बोस ने कहा।
- शहीद दिवस, 30 जनवरी को गांधी की पुण्यतिथि पर ही मनाया जाता है।
- गांधी दक्षिण अफ्रीका से कब वापस आये- 1915 में।
- इनका जन्मदिन 2 अक्टुबर को गाधी जयंती के रूप में मनाया जाता है, परन्तु पूरे विश्व मे किस नाम से मनाया जाता है- अंतराष्ट्रीय अंहिसा दिवस के नाम से।
- ये किस जाति से थे- पंसारी
- इनका भारत छोड़ो आंदोलन कब हुआ- 1942
- जब इनका विवाह 1883 में हुआ तो इनकी ओर इनकी पत्नि कसतूरबा की आयु क्या थी- गांधी 13 वर्ष तथा कसतूरबा 14 वर्ष की ओर पहली सन्तान 1885 मे हुई जो कुछ दिन ही जी पाई ओर उस समय गांधी 15 साल के थे।
- गाधी के चार बेटे थे,- 1. हरिलाल, 2.मणिलाल, 3.रामदास ओर 4.देवदास।
- 19वें जन्मदिन से एक महीने पहले ही 4 सितम्बर 1888 को गांधी, यूनिवर्सिटी कालेज - लंदन, में कानून की पढ़ाई करने ओर बैरिस्टर बनने इंग्लैण्ड चले गये।
- इनका असहयोग आंदोलन, 1920 से शुरू हुआ, जो शुरू में अंहिसात्मक मतलब बिना मार-काट का था, ओर फरवरी 1922 को चोरी-चोरा (उत्तर-प्रदेश के गोरखपुर जिले में) स्थान पर एक बेकाबू भीड़ ने ब्रिटिश पुलिस चौकी को आग लगा दी जिसमे 22 पुलिसकर्मी मरे ओर तभी से ये आंदोलन हिंसात्मक हो गया मतलब मार-काट का ओर तभी गांधी को ये 1922 मे समाप्त करना पड़ा।
- गांधी दक्षिण अफ्रीका सबसे पहले क्यों गये- 1883 में एक गुजराती Businessman दादा अब्दुल्लाह का केस लड़ने गये थे।
- इनका सविनय अविज्ञा आंदोलन कब शुरू हुआ- 1930 में।
- डांडी यात्रा में गांधी के साथ कितने चेले या अनुयायी थे- 78
- इन्होने डांडी यात्रा कहाँ से कहाँ तक और कब शुरू की- 12 मार्च 1930 को साबरमति आश्रम से डांडी नामक स्थान पर।
- डांडी यात्रा में ये कितने किलोमीटर पैदल चले- 385-390 किमी.
- गांधी ने कितने दिनो में डाडी यात्रा की- 24 दिन में।
- गांधी ने डाडी नामक स्थान पर पहुंचकर एक मुट्ठी नमक बनाया था जो ब्रिटिश सरकार की नजरो में अपराध था।
- वह नेता जिन्हे असहयोग आंदोलन में सबसे पहले गिरफ्तार किया गया- मौहम्मद अलि।
- किस किसकी सहायता से गांधी इरविन समझोता हो पाया- तेजबहादुर सपड़ू ओर एम. आर. जफर।
- गांधी किन दो लोगो से हमेशा परेशान रहते थे- मौं. अलि जिन्ना और अपने बेटे हरिलाल से।
- गांधी जब इंग्लैण्ड गये तो उस जहाज का नाम जिससे ये गये- एम. एस. राजपूताना।
- भारत छोड़ो आंदोलन के समय गांधी सहित अन्य नेताओ का गिरफ्तार करने की योजना को ब्रिटिश सरकार ने क्या नाम दिया था- Operation Zero Hours
- गांधी जी की आत्मकथा, My Experience With Truth किस भाषा में लिखी गई है- गुजराती भाषा में।
- गोलमेज सम्मेलनो की शुरूआत 12 Nov 1930 से हुई ओर तीन गोलमेज सम्मेलन हुए है।
- द्वितीय गोलमेज सम्मेलन कब और किसके बीच हुआ- 5 मार्च 1931 को गांधी ओर ईरविन के बीच हुआ तथा इसे दिल्ली समझोता भी कहते हैं।
- द्वितीय गोलमेज सम्मेलन कितने दिनो तक चला- 84 दिन।
- तृतीय गोलमेज सम्मेलन कितने दिनो तक चला- 37 दिन।
- भीमराव अम्बेडकर ही भारत के एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होने तीनो गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया।
- द्वीतीय गोलमेज सम्मेलन में ही जब गांधी ने भाग लिया तो वो ऐसे ही धोती में चले गये और वहां गांधी के पहुंचते ही चर्चिल ने गांधी को "अर्धनंगा फकीर" कहा था, कुछ समय बाद ही गांधी ने मुस्लीमो को संविधान में दिये जाने वाले कोटे का विरोध किया ओर तब फ्रंक ने गांधी को "देशद्रोही" कहा। ओर इतना सुनते ही गांधी जी गुस्से में वहां से भाग आये और इन्होने ब्रिटिश सरकार की सहमति से अपनी मांग पूरी करवाने के बाद बंद आंदोलन फिर से शुरू कर दिया और ब्रिटिश सरकार ने इन पर राजद्रोह का आरोप लगा कर जेल में डाल दिया।
- जनवरी 30 1948 को नाथूराम गोडसे ने दिल्ली में इनको गोली मारकर हत्या कर दी।
- इनका जन्म 2 अक्टुबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर, काठियाबाड़ में हुआ था।
- माता- पुतलीबाई।
- पिता- करमचंद गांधी।
- गांधी पहले राष्ट्रीय कांग्रेसी थे जिन्होने द्वीतीय गोलमेज सम्मेलन में 1931में भाग लिया, पर 1921 में कांग्रेस पार्टी अपनाई।
- गांधी के पिता क्रमचंद्र गांधी ने चार शादी की थी, पुतलीबाई गांधी के पिता करमचंद गाँधी की चौथी पत्नि थी।
- गांधी जी की समाधि निकट यमुना नदी के किनारे, नयी दिल्ली में राजघाट नामक स्थान पर स्थित है। जिसका चबूतरा काले संगमरमर से बना है।
- गांधी को शांति पुरस्कार देने के लिये 5 बार नाम सुर्खियों में आया था पर मिला एक बार भी नहीं।
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Sunday, 30 April 2017
महात्मा गांधी, (GK Q & A, भाग-54)
भारत में खनिज और उद्योग विशेष (GK, Q & A, भाग-53)
- देश का पहला लौह-इस्पात कारखाना कब और कहाँ लगा— 1875 ई., कुल्टी (प. बंगाल)
- भारत में पहला एल्युमीनियम कारखाना कहाँ लगा— 1937 ई., आसनलोन
- SAIL का पूरा नाम क्या है— स्टील अथॉरटी ऑफ इंडिया लि.
- सेल की स्थापना कब की गई— 1973 ई.
- ब्रिटेन के सहयोग से कौन-सा कारखाना निर्मित है— दुर्गापुर (प. बंगाल)
- रूस के सहयोग से कौन-सा कारखाना निर्मित है— बोकारो (झारखंड)
- राऊरकेला स्टली कारखाना किस देश के सहयोग से निर्मित है— जर्मनी
- रूस के सहयोग से दूसरा कौन-सा कारखाना निर्मित है— भिलाई (छत्तीसगढ़)
- निजी क्षेत्र में स्टील का कौन-सा कारखाना निर्मित है— TISCO (टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी)
- टिस्को की स्थापना कब हुई थी— 1907 ई.
- लौह अयस्क सबसे अधिक किस राज्य में पाया जाता है— झारखंड
- झारखंड व ओड़िशा राज्यों से देश का कितने % लोहा प्राप्त किया जाता है— 75%
- जवार खदान किस खनिज के लिए प्रसिद्ध है— जस्ता उत्पादन के लिए
- लिग्नाइट का सबसे अधिक भंडार किस राज्य में है— तमिलनाडु में
- भिलाई इस्पात संयंत्र किस पंचवर्षीय योजना में स्थापित किया गया— द्वितीय पंचवर्षीय योजना में
- हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड की स्थापना कब की गई— 1953 ई.
- बर्नपुर में इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी की स्थापना कब की गई— 1918 ई.
- कर्नाटक के भद्रावती में मैसूर (बाद में विश्वेश्वरैया) लौह एवं इस्पात कारखाने की स्थापना कब की गई—1923 ई.
- किस सन् में कुल्टी एवं हीरापुर (1908 में स्थापित) के कारखानों को भारतीय लौह एवं इस्पात कंपनी में मिला दिया गया— 1936 ई.
- 1937 ई. में किस स्थान पर स्टली कॉरपोरेशन ऑफ बंगाल की स्थापना की गई— बर्नपुर
- स्टील कॉरपोरेशन ऑफ बंगाल को किस वर्ष भारतीय लौह एवं इस्पात कंपनी में मिला दिया गया—1953 ई.
- 1953 ई. बर्नपुर, हीरापुर एवं कुल्टी के कारखानों को किस नाम से जाना जाता है— इस्को (IISCO)
- द्वितीय योजनाकाल में लगाए गए तीन नए कारखानें कौन-से थे— भिलाई, दुर्गापुर एवं राउरकेला
- भिलाई, दुर्गापुर एवं राउरकेला कारखानों को किस कंपनी के अंतर्गत रखा गया— हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड
- तीसरी पंचवर्षीय योजना में कौन-से कारखाने की स्थापना का निर्णय लिया गया— बोकारो
- बोकारो कारखाने में इस्पात का उत्पादन किस वर्ष प्रारंभ हुआ— 1974 ई.
- वर्तमान समय में दुर्गापुर, राउरकेला, बोकारो, भिलाई, सलेम के कारखाने किस कंपनी के अंतर्गत आते हैं— स्टील अथॉरटी ऑफ इंडिया लि.
- दुर्गापुर, राउरकेला, बोकारो, भिलाई, सलेम के अलावा और किस जगह लोहा एवं इस्पात के कारखाने स्थापित किये गए हैं— विशाखापट्टनम एवं विजयनगर
- किन देशों के बाद कच्चे इस्पात के सबसे बड़े उत्पादकों के रूप में भारत का दुनिया में चौथा स्थान है—चीन, जापान और अमेरिका
- भारत के पास कच्चे तेल का और प्राकृतिक गैस का कितना भंडार है— 757 मिलियन मीट्रिक टन और 1241 बिलियन क्यूबिक मीटर
- पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस क्षेत्र, जिसमें पेट्रोलियम उत्पादों व गैस का परिवहन, रिफाइनिंग और मार्केटिंग शामिल है, की देश के सकल घरेलू उत्पादन यानि जीडीपी में कितनी हिस्सेदारी रखता है— 15% से ज्यादा
- भारत विश्व का कौन-से नंबर का सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश है— चौथा
- भारत में कार्यरत तेल रिफाइनरियों में से निजी क्षेत्र की रिफाइनरियां हैं— दो
- विश्व के किन प्रमुख देशों के तेल क्षेत्रों में भारत की अधिकतर सरकारी तेल कंपनियों की हिस्सेदारी है—सूडान, मिस्त्र, लीबिया, आइवरी कोस्ट, वियतनाम, म्यांमार, रूस, इराक, कतर व ऑस्ट्रेलिया
- रूस के सखालिन-1 तेल क्षेत्र में भारत की कितने % हिस्सेदारी है— 20%
- खांडसारी उद्योग के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा लघु उद्योग कौन-सा है— हथकरघा
- रोजगार क्षमता में हथकरघा उद्योग का स्थान देश में कौन-सा है— दूसरा (कृषि के बाद)
- देश में सूती वस्त्र का पहला कारखाना फोर्ट ग्लोस्टर (कोलकाता) में कब लगाया गया— 1818 ई.
- मुंबई में कावसजी डाबर द्वारा सूती वस्त्र का कारखाना कब लगाया गया— 1854 ई.
- भारत में जूट का प्रथम कारखाना 1854 ई. में प. बंगाल में किस शहर में लगाया गया— रिशरा
- भारत में ऊन की पहली मिल 1870 ई. में कहाँ स्थापित की गई— कानपुर
- भारत में कागज उद्योग की पहली मिल पश्चिम बंगाल के सीरामपुर में किस वर्ष में लगाई गई— 1812 ई.
- भारत का प्रथम रेयॉन कारखाना किस सन् में रायपुरम (केरल) में ट्रावणकोर रेयॉन लि. के नाम से स्थापित हुआ— 1950 ई.
- सोने का रेशा किस उद्योग को कहा जाता है— जूट उद्योग को
- भारत में संपूर्ण विश्व का कितने % जूट के सामानों का निर्माण करता है— 35%
- भारत का सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक राज्य कौन-सा है— राजस्थान
- एसोसिएट सीमेंट कंपनी (A.C.C.) की स्थापना कब की गई— 1936
- सर्वप्रथम ऊर्वरक कारखाना कहाँ स्थापित किया गया— 1906 ई., रानीपेट नामक स्थान पर
- अमोनिया ऊर्वरक कारखाना कहाँ स्थापित किया गया— 1944 ई., में बैलेगुला नामक स्थान पर
- भारत में किस प्रकार के ऊर्वरक की खपत सबसे अधिक होती है— नाइट्रोजनी ऊर्वरक
- भारत किस उर्वरक के लिए आयात पर निर्भर है— पोटाश ऊर्वरक के लिए
- भारत में किस स्थान पर टेलीफोन उद्योग सर्वाधिक है— बैंगालुरु और रूपनारायणपुर
- भारत के किस राज्य से दो-तिहाई रेशम प्राप्त होता है— कर्नाटक से
- भारत के किस नगर में चर्म उद्योग सबसे अधिक है— कानपुर (उत्तर प्रदेश)
- भारत में वायुयान निर्माण का प्रथम कारखाना कब स्थापित किया गया— 1940 में
- देश का पहला निजी क्षेत्र में कारखाना कहाँ स्थापित किया गया— जमशेदपुर (झारखंड)
- भारत के किस राज्य में कोयले के विशालतम भंडार सुरक्षित हैं— झारखंड
- भारत के किस उद्योग पर पूंजी निवेश सबसे अधिक हुआ— लौह इस्पात उद्योग पर
- सबसे अधिक इस्पात कारखाने किस रेलमार्ग पर है— मुंबई-हावड़ा वाया रायपुर
- भारत विभाजन के कारण कौन-सा उद्योग सबसे अधिक प्रभावित हुआ— जूट व रूई उद्योग
- हौजरी उद्योग सर्वाधिक किस राज्य में है— पंजाब
- रेशम उद्योग सबसे अधिक किस राज्य में है— कर्नाटक
- कटनी किस उद्योग के लिए प्रसिद्ध है— सीमेंट उद्योग के लिए
- सीमेंट उत्पादन में भारत का दुनिया में कौन-सा स्थान है— द्वितीय
- सार्वजनिक क्षेत्र में कौन-सा उर्वरक कारखाना है— सिन्दरी (झारखंड)
- भारत में किस नगर को ‘इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की राजधानी’ कहा जाता है— बैंगालुरू
- भारत में किस उद्योग में सबसे अधिक महिला कार्य करती हैं— चाय उद्योग
- नेपानगर किस उद्योग के लिए प्रसिद्ध है— अखबारी कागज के लिए
- सर्वप्रथम जूट मिल किसने स्थापित की— जॉर्ज ऑकलैंड
- इलैक्ट्रिक लोकोमोटिव का निर्माण कहाँ किया जाता है— चितरंजन (वाराणसी)
- सर्वप्रथम चीनी मिल कहाँ स्थापित की गई— महरौरा (बिहार)
- प्रथम तेल परिष्करण संयंत्र कहाँ स्थापित किया गया था— डिग्बोई (असम)
- पिम्परी किस उद्योग से संबंधित है— पेंसिलीन उद्योग
- कौन-से राज्य में रेल के डिब्बों का बड़ी मात्रा में उत्पादन होता हैं— पंजाब व तमिलनाडु
- उत्तर प्रदेश में दियासलाई उद्योग कहाँ है— बरेली
- भारत में सूती कपड़ा उद्योग किस नगर में सर्वाधिक है— अहमदाबाद में
- भारत में पेराई मिल व ताले का उत्पादन कहाँ होता है— अलीगढ़
- चुर्क किस उद्योग के लिए प्रसिद्ध है— सीमंट उद्योग
- शीशा उद्योग व काँच उद्योग भारत के किस नगर में सबसे अधिक है— फिरोजाबाद
- भारत में मैसूर किसके लिए प्रसिद्ध है— रेशम उद्योग
- तार व केबिल भारत में सबसे अधिक कहाँ बनाए जाते हैं— रूपनारायणपुर (प. बंगाल)
- भारत में पीतल के बर्तन सबसे अधिक कहाँ बनाए जाते हैं— मुरादाबाद
- सिनेमा उद्योग भारत के किस नगर में है— मुंबई
- खजिन पदार्थों की दृष्टि से कौन-सा स्थान सर्वोत्तम हैं— छोटा नागपुर का पठार
- किस स्थान को भारतीय खनिज भंडार ग्रह कहा जाता है— छोटा नागपुर का पठार
- भारत में सर्वोत्तम लौह अयस्क कहाँ से प्राप्त होता है— बैलाडीला से
- कुद्रेमुख लौह खनिज परियोजना भारत के किस राज्य में है— कर्नाटक
- कर्नाटक राज्य में बाब बूदन की पहाड़ियाँ किस खनिज के लिए प्रसिद्ध है— लौह अयस्क
- भारत में पाया जाने वाला लौह अयस्क किस प्रकार का है— हेमेटाइट
- जावर और रामपुरा-अगुचा खान किस खनिज से संबंधित है— जस्ता-सीसा
- पलामू एवं लोहरदंगा किस खनिज के लिए प्रसिद्ध है— बॉक्साइड
- कोडरमा किस खनिज के लिए प्रसिद्ध है— अभ्रक
- अभ्रक उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है— प्रथम
- गुजरात में स्थित मोतीपुरा खान से किस प्रकार का पत्थर निकाला जाता है— सफेद संगमरमर
- झरिया किस खनिज उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है— कोयला
- भारत में मिलने वाला अधिकांश कोयला किस भू-भाग से प्राप्त होता है— गोंडवाना
- भारत में सर्वप्रथम कोयले का उत्पादन कब और कहाँ किया गया था— रानीगंज
- न्यूवेली खनन किस खनिज के लिए प्रसिद्ध है— लिग्नाइट
- भारत में सबसे अधिक कोयला किस राज्य में पाया जाता है— झारखंड
- भारत में खनिज तेल भंडार किस प्रकार की चट्टानों में पाये जाते हैं— अवसादी चट्टानों में
- भारत में सर्वप्रथम खनिज तेल का वास्तविक उत्पादन कहाँ हुआ था— डिग्बोई (असम)
- O.N.G.C. (तेल व प्राकृतिक गैस आयोग) की स्थापना कब की गई— 1956 ई.
- काइकालूर खनिज तेल किस नदी घाटी के क्षेत्र में है— कृष्णा-गोदावरी
- ‘मंगला’ नामक तेल कुँआ किस राज्य में है— राजस्थान
- भारत की सबसे महत्वपूर्ण यूरेनियम खान कहाँ है— जादूगोड़ा
सामाजिक सुधार आंदोलन ने 19 शताब्दी में स्त्रियों की किस सीमा तक योगदान दिया ?
भारतीय इतिहास में 11वी शताब्दी एक सक्रमणकालीन अवस्था को प्रदर्शित करती है यह वह समय था जब भारतीय बुद्धिजीवी वर्ग पाश्चात्य विचारो के संपर्क में आ रहा था। पाश्चात्य चिंतको द्वारा सामाजिक समस्याओ को उठाया जा रहा था| जेम्स मिल जैसे चिंतक स्त्रियों की समस्याओ पर अत्यधिक बल दे रहे थे। ऐसे में भारत भी अछूता ना रहा यहाँ भी सामाजिक सुधर आंदोलन प्रारम्भ हुआ और समाज की शल्य चिकित्सा आरम्भ हुई। भारतीय समाज की एक महत्वपूर्ण समस्या थी स्त्रियों की गिरती दशा जिसके परिरामस्वरोप्प भारतीय समाज का पतन हो रहा था। स्त्रियों प्रमुख समस्याएं थी - सती प्रथा , बाल विवाह, शिशु वध, अशिक्षा, विधवाओं के साथ सामजिक भेदभाव। सर्वप्रथम राजा राम मोहन राय द्वारा सती प्रथा का मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया यह उनके प्रयासों का परिराम था की १८२९ में सती प्रथा को गैर कानूनी घोसित कर दिया गया। स्त्रियों से सम्बंधित एक प्रमुख समस्या थी उनकी अशिक्षा इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम प्रयास इंग्लिश मिशनरियों द्वारा किआ गया तत्पश्चात ईश्वर चंद्र विद्यासागर और डी वि कर्वे जैसे समाज सुधारको ने इस दिशा में सराहनीय योगदान दिया| कर्वे द्वारा एक महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी। ईश्वर चंद्र विद्यासागर भारतीय समाज में विधवाओं की दशा देखकर चिंतित थे उन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए प्रयास किया, परिरामस्वरूप १८५६ में विधवा विवाह को मान्यता मिल गयी। समाज को प्रोत्साहित करने के लिए विद्यासागर ने अपने पुत्र का विवाह एक विधवा के साथ किआ वही कर्वे ने स्वयं के विधवा से विवाह किआ। विधवा विवाह सती प्रथा की एक तार्किक परिणीति थी क्योंकि जब तक विधवाओं की दशा में सुधार ना होता तब तक सती प्रथा को प्रोत्साहन मिलता रहता। स्त्रियों से सम्बंधित इन सभी समस्याओं की एक मूल जड़ थी बाल विवाह जिसके परिरामस्वरूप स्त्रियों का समुचित विकास ही नहीं हो पाता था। इस सम्बन्ध में केशव राय द्वारा प्रयास किये गए परिरामस्वरूप १८७२ में मैरिज नेटिव एक्ट आया जिससे विवाह के लिए स्त्रियों की एक न्यूनतम अवस्था १२ वर्ष तय की गयी।
इस प्रकार हम देखते हैं की सामाजिक सुधार आंदोलन ने स्त्री समस्या को गंभीरता से उठाया परन्तु इन प्रयासों की अभी अपनी एक सीमा थी| यह सभी प्रयास कुछ सामाजिक सुधारको द्वारा किये गए थे इन्हे अभी भी जनसमर्थन प्राप्त नहीं हुआ था पूरी १९वी शताब्दी में मात्रा ३५ विधवा विवाह हुए थे वही सती प्रथा तो आज भी समाज में कई स्थानों पर सम्मानीय मानी जाती है। एक सुधारो की एक बड़ी सीमा यह थी की यह सभी प्रयास पुरुषो द्वारा किये गए थे अतः उन्होंने समाज की चौहदी में रह कर ही प्रयास किये। हिन्दू सुधारको ने हिन्दू स्त्रियों की बात की परिरामस्वरूप समाज में महिलाये स्वयं में एक वर्ग ना बन पायी जिसका परिराम यह हुआ की हर धरम विशेष में महिलाओ की दशा अलग अलग रही। जिन सुधारो के लिए अंग्रेजो ने विधि बनायीं उन्हें समर्थन प्राप्त नहीं हुआ यही वजह थी की १८५७ के बाद अंग्रेजो ने सामाजिक सुधार में कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई। परन्तु इससे इन सुधारो की महत्ता कम नहीं होती इन्ही के कारण से आने वाले वर्षो में स्त्री समस्या एक प्रमुख विषय रहा तथा उनके सुधार के लिए प्रयास किये जाते रहे।
सोशल मीडिया का तेजी से बढ़ रहा है कारोबारी जगत पर प्रभाव
सोशल मीडिया ने राजनीतिक संवाद की दशा ही बदल दी है। नरेंद्र मोदी और डॉनल्ड ट्रंप इसकी बानगी हैं। परंतु कारोबारी जगत पर इसका प्रभाव उतना मुखर नहीं रहा है। अमेरिका के तीन बड़े कॉर्पोरेशन से जुड़ी हालिया घटनाएं बताती हैं कि वैश्विक स्तर पर उपभोक्ताओं द्वारा नए मीडिया को अपनाए जाने के बीच कंपनियों के सामने नीतिगत और जन संपर्क जैसी अहम चुनौतियां पैदा हो गई हैं।
यूनाइटेड एयरलाइंस का उदाहरण हमें बताता है कि जनसंपर्क के मुद्दों से निपटते समय क्या सावधानी बरतनी चाहिए? शिकागो एयरपोर्ट पर एक उम्रदराज और चोटिल हो गए एशियाई व्यक्ति को सुरक्षाकर्मियों द्वारा घसीटते हुए विमान से उतारे जाने का वीडियो वायरल होने के बाद कंपनी का बाजार पूंजीकरण एक सप्ताह में 57 करोड डॉलर तक कम हुआ। 69 वर्षीय पीडि़त का नाम डॉ. दाओ था। वह वियतनामी मूल के चिकित्सक थे। वह चार ऐसे यात्रियों में से एक थे जिन्हें विमान चालक दल के सदस्यों के लिए जगह बनाने और विमान से उतरने को कहा गया था।
पहले डॉ. दाओ 1,000 डॉलर लेकर विमान से उतरने को मान गए थे लेकिन जब उन्हें बताया गया कि अगला विमान अगले दिन ही जाएगा तो उन्होंने उतरने से इनकार कर दिया। उन्हें अगली सुबह मरीज देखने थे। उन्होंने यह कारण बताते हुए उतरने से इनकार कर दिया। इस पर उन्हें जबरन विमान से उतार दिया गया। जबरदस्ती करने से उनके नाक और दांत टूट गए, हालांकि उन्हें विमान में बैठने दिया गया।
सोशल मीडिया पर लोगों ने खूब नाराजगी दिखाई। खासतौर पर चीन और वियतनाम के लोगों ने। पूरी बहस विमान कंपनियों द्वारा जरूरत से ज्यादा यात्रियों को बिठाने पर केंद्रित थी। हालांकि इस मामले में ऐसा नहीं था। यूनाइटेड एयरलाइंस ने सीट के बराबर यात्री बिठाए थे लेकिन अतिरिक्त क्रू सदस्यों के कारण सीट खाली करानी पड़ी। नस्ली भेदभाव को लेकर भी बात होने लगी। कहा गया कि श्वेत यात्री के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जाता। आपको लग रहा होगा कि इसके बाद यूनाइटेड एयरलाइंस की जनसंपर्क एजेंसी हरकत में आ गई होगी। यह सच है लेकिन वैसे नहीं जैसे कि अधिकांश लोगों ने सोचा होगा। कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) ऑस्कर मुनोज जिन्हें कुछ ही दिन पहले पीआरवीक ने मलाला यूसुफजई के साथ संयुक्त रूप से कम्युनिकेटर ऑफ द इयर का खिताब दिया था, ने एक संक्षिप्त पत्र भेजा जिसमें यात्रियों को विमान में दोबारा समायोजित करने के लिए माफी मांगी गई लेकिन एक यात्री को उतारने के लिए सुरक्षा अधिकारियों के इस्तेमाल को लेकर कुछ नहीं कहा। शाम को उन्होंने कर्मचारियों को एक ई-मेल भेजकर कहा कि वह उनके साथ हैं। हालांकि उनके पत्र पर यूनाइटेड के कर्मचारियों ने कैसी प्रतिक्रिया दी यह सामने नहीं आया है लेकिन विमानन कंपनी के शेयर औंधे मुंह जा गिरे। इसमें दो राय नहीं कि शेयर कीमतों में यह गिरावट और मुकदमा चलाए जाने के डर ने कंपनी के सीईओ को अपना कदम वापस लेने पर मजबूर किया। उन्होंने तुरंत क्षमा मांगते हुए कहा कि वह हालात को समझ नहीं सके। अब उनको विमान कंपनी की छवि दोबारा सुधारने के लिए पीआरवीक की सराहना मिली है। लंबी अवधि में सस्ते किराये के चलते परिचालन पर असर हो सकता है लेकिन कंपनी की छवि को जो नुकसान पहुंचा है उसकी भरपाई में बहुत वक्त लगेगा। शायद सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि मैक्सिकन मूल के मुनोज इस घटना में अंतर्निहित पूर्वग्रह को भांप नहीं पाए। क्या कारोबारी जीवन इन अधिकारियों को इतना असंवेदनशील बना देता है? पेप्सी, जिसकी सीईओ भारतीय मूल की एक महिला हैं, उसने भी नस्ली संवेदनशीलता को लेकर ऐसी ही उपेक्षा एक विज्ञापन में बरती। विज्ञापन में रियलिटी टीवी स्टार केंडल जेनर जो एक सड़क पर मॉडलिंग कर रही हैं, एक विरोध प्रदर्शन में शामिल हो जाती हैं। प्रदर्शनकारियों के साथ वह पुलिस की घेरेबंदी तक पहुंचती हैं और एक अधिकारी को पेप्सी का केन पीने की पेशकश करती हैं। वह उसे पी लेता है और सब प्रसन्न हो जाते हैं। हाल ही में अमेरिका में पुलिस विरोधी प्रदर्शन खूब हुए थे। ऐसे में सोशल मीडिया उबल पड़ा। जेनर पेप्सी की पेशकश वाले दृश्य में एक अफ्रीकी अमेरिकी लड़की की नकल कर रही थीं जिसने पुलिसकर्मियों के समक्ष अपना हाथ बढ़ाया था ताकि उसे पकड़ा जा सके।
यूनाइटेड एयरलाइंस के उलट पेप्सी को गलती जल्दी समझ में आ गई। मानव अधिकार के नेता रहे मार्टिन लूथर किंग की बेटी कॉरेटा स्कॉट किंग ने उक्त विज्ञापन की आलोचना की और तमाम टॉक शो में पेप्सी को आड़े हाथों लिया जाने लगा। इतने में ही इस बहुराष्ट्रीय कंपनी ने अपना विज्ञापन वापस लेकर माफी मांग ली। जेनर इस मसले पर खामोश हैं लेकिन आश्चर्य है कि यह विज्ञापन बनाने की इजाजत किसने दी?
फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग की हालिया समस्या इस श्रेणी की तो नहीं थी लेकिन क्लीवलैंड में हुई हत्या के बाद हत्यारे द्वारा अपलोड किए गए वीडियो को लेकर जो आलोचना हुई वह अनुकरणीय थी। जुकरबर्ग को यह श्रेय दिया जाना चाहिए कि वह सामने आए और उन्होंने इस मसले पर अपने संस्थान की ढीली प्रतिक्रिया की जवाबदेही ली। वीडियो को फेसबुक से हटाने में दो घंटे लग गए। जुकरबर्ग ने एक वीडियो जारी कर माफी मांगी और कहा कि भविष्य में और तेजी से कदम उठाए जाएंगे। यूनाइटेड एयरलाइंस, पेप्सी और फेसबुक सभी जबरदस्त आलोचना के शिकार हुए। सबक यही है कि सोशल मीडिया अब इतना प्रभावी हो चुका है कि वह शेयर कीमतों तक में गिरावट की वजह बन सकता है।
Thursday, 27 April 2017
क्षय रोग उन्मूलन : ‘कार्यवाही आह्वान’ समझौता
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के देशों द्वारा वर्ष 2030 तक क्षय रोग के पूर्ण उन्मूलन हेतु वैश्विक प्रयासों को गति प्रदान करने तथा पर्याप्त रूप से वित्त पोषित, अभिनव, बहुक्षेत्रीय और व्यापक उपायों को लागू करने के लिए दिल्ली में 16 मार्च, 2017 को ‘कॉल टू इंड टी.बी. अभियान, 2030 (Call to End T.B. Campaign, 2030)’ के अंतर्गत विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ किया गया समझौता।
- क्षय रोग से पीड़ित दुनिया की लगभग आधी आबादी दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में स्थित है। वर्ष 2015 में लगभग 8 लाख लोगों की मृत्यु इस क्षेत्र में हुई तथा लगभग 4.74 मिलियन लोगों में क्षय रोग की पुष्टि हुई। इस क्षेत्र के 6 देशों-बांग्लादेश, लोकतांत्रिक जनवादी कोरिया गणराज्य (उ. कोरिया), भारत, इंडोनेशिया, म्यांमार और थाईलैंड वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक प्रभावित 30 देशों में शामिल हैं।
- वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक भारत में 2.8 मिलियन क्षय रोग के मामले प्रति वर्ष प्रकाश में आते हैं जबकि लगभग 5 लाख लोगों की प्रति वर्ष क्षय रोग से मृत्यु हो जाती है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वैश्विक स्तर पर क्षय रोग से मृत्यु में 90 प्रतिशत तथा क्षय रोग के मामलों में 80 प्रतिशत की कमी करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में क्षय रोग में वार्षिक कमी की दर को 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य है जो कि वर्तमान में 1.5 से 2 प्रतिशत तक है।
- i. टी.बी. उन्मूलन योजनाओं हेतु सरकारों तथा सहयोगियों द्वारा वित्त आवंटन में वृद्धि किया जाएगा।
- ii. ज्ञान-बौद्धिक संसाधनों और नवाचारों को त्वरित रूप से साझा करने हेतु ‘कार्यान्वयन हेतु क्षेत्रीय नवाचार कोष’ स्थापित किया जाएगा।
- यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ष 2030 तक दुनिया से क्षय रोग के उन्मूलन हेतु एक पहल है।
- इस अभियान में विभिन्न देशों के अतिरिक्त विश्व बैंक, द ग्लोबल फंड, स्टॉप टी.बी. भागीदारी, यूएसआईडी तथा डीएफएटी ऑस्ट्रेलिया मुख्य सहयोगी हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के अंतर्गत भूटान, बांग्लादेश, लोकतांत्रिक जनवादी कोरिया गणराज्य (उ. कोरिया), भारत, इंडोनेशिया, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड तथा तिमोर लेस्ते कुल 11 सदस्य देश हैं।
- क्षय रोग माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया से होने वाला एक वायुजनित, संक्रामक रोग है। यह मुख्यतः फेफड़ों को प्रभावित करता है। यह मुख्यतः वायु के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने वाला रोग है जो टी.बी. प्रभावित व्यक्ति के कफ, छींक, हंसने अथवा बोलने तथा थूकने आदि के द्वारा वातावरण में रोगाणुओं के प्रसार से फैलता है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के दो अभिसमय को भारत की मंजूरी
- 31 मार्च, 2017 को कैबिनेट द्वारा ‘अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन’ (ILO) के दो अभिसमय न्यूनतम आयु अभिसमय 1973 (Minimum Age Convention, 1973) और बाल श्रम का निकृष्टतम रूप अभिसमय, 1999 (Worst Form of Child Labour Convention, 1999) को मंजूरी प्रदान की गई।
- 10 अप्रैल, 2017 को श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने स्वीकृति हेतु इन अभिसमयों के अनुमोदन के प्रस्ताव को संसद के समक्ष रखा।
- भारत, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का संस्थापक सदस्य है और इसने अभी तक आईएलओ के 45 अभिसमयों को अनुमोदित किया है। आईएलओ के कुल 8 मूलभूत अभिसमय हैं। इनमें से जिन 4 का अनुमोदन भारत द्वारा किया जा चुका है वे निम्न हैं-
- (1) बलात् श्रम अभिसमय, 1930 (सं.-29)
- (2) बलात् श्रम उन्मूलन अभिसमय, 1957 (सं.-105)
- (3) समान पारिश्रमिक अभिसमय, 1951 (सं.-100)
- (4) भेदभाव (रोजगार व्यवसाय) अभिसमय, 1958 (सं.-111)
- जिन दो अभिसमयों का अनुमोदन प्रक्रिया में है वे हैं-
- (1) न्यूनतम आयु अभिसमय, 1973 (सं.-138)
- (2) बालश्रम का निष्कृष्टतम रूप अभिसमय, 1999 (सं.-182)
- जून, 1973 में आईएलओ द्वारा अपनाया गया वह अभिसमय रोजगार में प्रवेश के लिए आवश्यक न्यूनतम आयु से संबंधित है। यह अभिसमय 19 जून, 1976 से प्रभावी है। इसका अनुमोदन करने वाले प्रत्येक देश की निम्न बाध्यताएं होंगी-
- (1) बाल श्रम के प्रभावी उन्मूलन हेतु राष्ट्रीय नीति का निर्माण एवं क्रियान्वयन।
- (2) रोजगार में प्रवेश हेतु एक न्यूनतम आयु का निर्दिष्टीकरण, जो अनिवार्य स्कूली शिक्षा के पूरा होने की उम्र से कम नहीं होनी चाहिए।
- (3) इस बात की प्रत्याभूति देना कि युवाओं के स्वास्थ्य एवं उनकी नैतिकता की सुरक्षा से समझौता करने वाले किसी भी प्रकार के रोजगार में प्रवेश की आयु 18 वर्ष से कम नहीं होगी।
- भारत सरकार द्वारा बाल श्रम (निषेध एवं विनियम) अधिनियम, 1986 अधिनियमित किया गया है और इसका सफलतापूर्वक क्रियान्वयन भी किया जा रहा है। वर्ष 2011 में हाथियों की देखभाल एवं सर्कस में बाल श्रम को प्रतिबंधित किया गया। अभी भारत में कुल 18 व्यवसाय, 65 गतिविधियां बाल श्रम अधिनियम, 1986 के अंतर्गत प्रतिबंधित हैं। वर्ष 1987 में नेशनल चाइल्ड लेबर प्रोजेक्ट (NCLP) प्रारंभ किया गया। इसके अंतर्गत बाल श्रमिकों को रोजगार से हटाकर विशेष स्कूलों में नामांकित किया जा रहा है, जहां उन्हें औपचारिक शिक्षण तंत्र में आने से पूर्व प्रशिक्षित किया जाता है। इसके अतिरिक्त 1 अप्रैल, 2010 से 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया गया।
- 30 जुलाई, 2016 को बाल श्रम अधिनियम (1986) में संशोधन करके 14 वर्ष से कम आयु के बालकों को ऑटोमोबाइल वर्कशाप, बीड़ी-निर्माण, कॉरपेट, बुनाई, हैंडलूम एवं पॉवरलूम और खदानों में काम करने से प्रतिबंधित कर दिया गया। 14-18 वर्ष की आयु के बच्चों को एक अन्य नाम ‘किशोर’ (Adolescent) दिया गया।
- जून, 1999 में आईएलओ द्वारा अपनाया गया यह अभिसमय बाल श्रम के निकृष्टतम् रूपों के उन्मूलन हेतु आवश्यक निषेध एवं तत्काल कार्यवाही से संबंधित है। यह अभिसमय 19 नवंबर, 2000 को प्रभावी हुआ। इस अभिसमय में 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को बालक (Child) की श्रेणी में रखा गया है। इस अभिसमय के अनुसार, बाल श्रम के निकृष्टतम् रूप निम्न हैं-
- (1) दासता या इसके समकक्ष सभी गतिविधियां जैसे-बच्चों की खरीद-फरोख्त और तस्करी, ऋण बंधन एवं बलात् श्रम तथा सशस्त्र संघर्ष हेतु बच्चों की अनिवार्य भर्ती।
- (2) पोर्नोग्राफी या अश्लील कार्यक्रम या वेश्यावृत्ति के लिए बच्चों का उपयोग या खरीद या पेशकश।
- (3) अवैध गतिविधियों विशेषकर अंतरराष्ट्रीय संधियों द्वारा परिभाषित ड्रग्स के उत्पादन एवं तस्करी के लिए बच्चों का उपयोग या खरीद या पेशकश।
- (4) ऐसा कार्य जिसमें चाहे कार्य की प्रकृति या परिस्थितिवश बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं नैतिकता की क्षति होने की संभावना है।
- भारत में बंधुआ उन्मूलन अधि. 1976, अनैतिक तस्करी निवारण अधि. 1956, नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेज एक्ट, 1985 और बाल श्रम (निवारण एवं विनियम) अधि. 1986 के द्वारा उपर्युक्त दोनों अभिसमयों के तत्सम उपबंध बनाए गए थे। परंतु इन अधिनियमों में आवश्यक संशोधनों के उपरांत ही भारत इन दोनों अभिसमयों का अनुमोदन करने की स्थिति में आ पाया है।
- इन अभिसमयों के अनुमोदन से बाल श्रम उन्मूलन के भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्रावधानों में एकरूपता आएगी। स्थायी विकास लक्ष्य वर्ष 2030 के अनुसार, बाल श्रम उन्मूलन महत्वपूर्ण लक्ष्य है, और इन अभिसमयों का अनुमोदन करने के बाद इनके प्रावधानों का पालन करना भारत के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी होगा। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल आबादी की 29 प्रतिशत जनसंख्या 14 वर्ष से कम आयु वर्ग की है, जबकि 14-18 वर्ष की आयु वर्ग का कुल आबादी में 10 प्रतिशत योगदान है। इतनी बड़ी आबादी के हिस्से को जनांकिकीय लाभ में बदलने हेतु अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रावधानों का भारत में भी लागू होना एक महत्वपूर्ण कदम है।
वर्ष 2016-17 में पवन ऊर्जा में वृद्धि
भारत में पवन ऊर्जा का विकास 1990 के दशक में प्रारंभ हुआ। इस ऊर्जा के विकास हेतु नोडल मंत्रालय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय है। बहती वायु से उत्पन्न की गई ऊर्जा को ‘पवन ऊर्जा’ कहते हैं। वायु एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है। पवन ऊर्जा हेतु हवादार स्थलों पर पवन चक्कियों को स्थापित किया जाता है जिनके द्वारा वायु की गतिज ऊर्जा, यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। इस यांत्रिक ऊर्जा को जनित्र की मदद से विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। पवन ऊर्जा को एक अतिविकसित, कम लागत वाला और प्रमाणित अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकी के रूप में मान्यता प्राप्त है। तटवर्ती पवन ऊर्जा प्रौद्योगिकी व्यापक स्तर पर भारत में निरंतर वृद्धि के साथ क्रियान्वित हो रही है और इसके दोहन की अपार संभावनाएं हैं।
- नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2016-17 में पवन ऊर्जा में 5400 मेगावॉट की वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2016-17 के दौरान मंत्रालय ने 4000 मेगावॉट वृद्धि का लक्ष्य निर्धारित किया था।
- पिछले वर्ष 3423 मेगावॉट की वृद्धि हुई थी।
- वर्ष 2016-17 के दौरान आंध्र प्रदेश 2190 मेगावॉट पवन ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि के साथ पहले स्थान पर है।
- गुजरात (1275 मेगावॉट) और कर्नाटक (882 मेगावॉट) वृद्धि के संदर्भ में क्रमशः दूसरे व तीसरे स्थान पर हैं।
- चौथे स्थान पर मध्य प्रदेश (357 मेगावॉट) और पांचवें स्थान पर राजस्थान (288 मेगावॉट) है।
- अन्य राज्यों में वृद्धि-तमिलनाडु (262 मेगावॉट), महाराष्ट्र (118 मेगावॉट), तेलंगाना (23 मेगावॉट) और केरल (8 मेगावॉट)।
- वर्ष 2016-17 के दौरान नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा पवन ऊर्जा के क्षेत्र में निविदा प्रक्रिया शुरू की गई।
- इसके अलावा मंत्रालय द्वारा रिपॉवरिंग नीति, पवन-सौर संकर नीति का मसौदा बनाने और नई पवन ऊर्जा परियोजनाएं लगाने हेतु दिशा-निर्देश की नीतिगत पहल की गई।
- वर्तमान में भारत में पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन 9500 मेगावॉट है।
वैश्विक पवन रिपोर्ट, 2015
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Wednesday, 26 April 2017
चंपारण सत्याग्रह के 100 वर्ष
- वैश्विक स्तर पर नील (Indigo) की मांग को देखते हुए ब्रिटिश शासन द्वारा औपनिवेशिक भारत में भी नील की खेती को बढ़ावा दिया गया। इसी परिप्रेक्ष्य में 1850 ई. से लेकर 1870 ई. तक बिहार में नील की खेती द्रुतगति से बढ़ी। वर्ष 1893 ई. के आस-पास वैश्विक बाजार में कृत्रिम नील आने के बाद नील की खेती का मुनाफा तेजी से कम हुआ। एक ओर कृत्रिम नील तो दूसरी ओर किसानों के प्रतिरोध के कारण नीलहों का मुनाफा बाधित होने लगा। अपने मुनाफे को बनाए रखने के लिए निलहों ने लगभग 41 गैर-कानूनी कर लगाए थे, जिनके भुगतान न करने पर किसानों को शारीरिक दंड दिया जाता था। निलहे (ब्रिटिश बागान मालिक) न केवल वार्षिक उपज का 70 प्रतिशत भूमि कर वसूल कर रहे थे, बल्कि उन्होंने एक छोटे से मुआवजे के बदले किसानों को प्रत्येक 20 कट्टे जमीन के 3 कट्टे में नील की खेती करने के लिए मजबूर किया था। 20वीं सदी के आरंभ में किसान सीधे विद्रोह पर उतारू हो गए। वर्ष 1908 तक यह संघर्ष अपने चरम पर पहुंच गया और असंतोष की आग लगातार बढ़ती चली गई।
गांधीजी का आगमन
- 9 जनवरी, 1915 को मोहनदास करमचंद गांधी दक्षिण-अफ्रीका से भारत लौटे और देशव्यापी दौरे पर निकल पड़े ताकि उस भावी संघर्ष को समझ सकें, जिसका वे हिस्सा बनने वाले थे। इसी दौरान लखनऊ में राजकुमार शुक्ल ने गांधीजी से मुलाकात की तथा नील किसानों के संघर्ष से वाकिफ कराने के लिए उन्हें चंपारण पहुंचने को राजी किया। फलतः 10 अप्रैल, 1917 को गांधी जी पटना पहुंचे।
चंपारण सत्याग्रह
- चंपारण, बिहार में लागू तिनकठिया पद्धति, (जिसके तहत किसानों को अपने कृषि रकबे के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था) तथा नील किसानों के शोषण के खिलाफ गांधीजी द्वारा शुरू किया गया सत्याग्रह, चंपारण सत्याग्रह के नाम से प्रसिद्ध है। गांधीजी द्वारा भारत में शुरू किया गया यह पहला सत्याग्रह था।
नया राजनीतिक प्रयोग
- चंपारण सत्याग्रह के माध्यम से गांधीजी ने भारतीय राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए ‘नागरिक असहयोग’ की नीति का प्रादुर्भाव किया। इसका सफल प्रयोग वे दक्षिण अफ्रीका में पहले ही कर चुके थे। आगे तीस वर्षों में उन्होंने सत्याग्रह के जरिए लाखों लोगों को उस समय की संभवतः सर्वाधिक शक्तिशाली राजशाही के खिलाफ एकजुट कर दिया था। चंपारण, गांधीवादी राजनीतिक रणनीति की शुरुआती झलक का साक्षी बना।
प्रमुख घटनाक्रम
- 10 अप्रैल, 2017 को चंपारण सत्याग्रह के 100 वर्ष पूरे हुए। 10 अप्रैल, 1917 को गांधीजी सर्वप्रथम पटना, बिहार पहुंचे थे।
- उन दिनों कृषि से संबंधित मुद्दों को मुश्किल से ही राजनीतिक क्रिया-कलापों का हिस्सा बनाया जाता था। यहां तक कि गांधीजी भी प्रारंभ में इस कार्य के लिए स्वयं को प्रतिबद्ध करने के प्रति अनिच्छुक थे।
- मोतिहारी में गांधीजी के खिलाफ आपराधिक दंड संहिता की धारा 144 का उल्लंघन करने के आरोप में स्थानीय अदालत द्वारा सम्मन जारी किया गया।
- लेकिन गांधीजी ने चंपारण छोड़ने से मना कर दिया।
- 4 जून, 1917 को बिहार के लेफ्टिनेंट गवर्नर, सर एडवर्ड गाइट ने रांची में गांधीजी से मुलाकात करते हुए नील किसानों के शोषण के मामले में एक औपचारिक जांच समिति के गठन की घोषणा की। गांधीजी को भी इस समिति का सदस्य बनाया गया।
- चंपारण जांच समिति ने 11 जुलाई, 1917 को अपनी प्रारंभिक बैठक से शुरुआत की तथा कई बैठकों और स्थलों की यात्रा के बाद समिति ने 4 अक्टूबर, 1917 को अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंप दी।
- समिति की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए सरकार ने तिनकठिया व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त कर दिया।
- 10 अप्रैल, 2017 को चंपारण सत्याग्रह के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली में ‘स्वच्छाग्रह-बापू को कार्यांजलि-एक अभियान, एक प्रदर्शनी’ नामक एक प्रदर्शनी का शुभारंभ किया।
- प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छ भारत के निर्माण हेतु गंदगी के खिलाफ सत्याग्रह का आह्वान किया गया।
निष्कर्ष
एक सदी पूर्व मोहनदास करमचंद गांधी नील किसान राजकुमार शुक्ल के लगातार तकादे पर किसानों की दुर्दशा जानने बिहार के चंपारण गए थे। उस समय के लोगों और बाद में तो पूरे भारत के साथ-साथ समूची दुनिया ने भी देखा कि दक्षिण अफ्रीका में अपनाए गए हथियारों पर गांधीजी ने चंपारण में किस तरह शान चढ़ाया जिससे न केवल भारत बल्कि दुनिया में कहीं भी आजादी की लड़ाई में अहिंसा और सत्याग्रह को एक कारगर और कामयाब हथियार बना दिया। चंपारण, खुद गांधीजी के साथ-साथ समग्र भारत को उसकी नियति से पहला साक्षात्कार करा गया। लेकिन अफसोस इस बात का है कि सौ साल के अंतराल में किसानों की हालत में कोई सुधार नहीं आया। आजादी के बाद से ही गांधीवादी विचारों एवं आदर्शों की तिलांजलि दे दी गई। वर्ष 1991 में नई आर्थिक नीति की शुरुआत के बाद से किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति भी तीव्र हो गई है। पूंजीवाद ने ग्रामीण सामाजिक जीवन के पूरे ताने-बाने को हिला कर रख दिया है। कहा जा सकता है कि, भारत को आजादी मिली, लेकिन किसानों की दुर्दशा का अंत नहीं हुआ। चंपारण समेत पूरा देश एक बार फिर से गांधीजी के आगमन की उम्मीद संजोए प्रतीक्षारत है।
चेनानी-नाशरी : देश की सबसे लंबी सड़क सुरंग
सुरम्य घाटियों, बर्फ से ढके पहाड़ों, हरे-भरे मैदानों आदि के बीच बसा जम्मू एवं कश्मीर राज्य पर्यटकों के लिए सदा ही आकर्षण का केंद्र रहा है। जम्मू एवं श्रीनगर के मध्य सड़क यात्रा के दौरान पर्यटक यहां के प्राकृतिक सौंदर्य से सम्मोहित हो जाते हैं। हालांकि इस यात्रा का एक दूसरा पक्ष यह है कि जम्मू एवं श्रीनगर राजमार्ग बहुत लंबा एवं घुमावदार सड़कों से युक्त है जिसके कारण पर्यटकों को सड़क मार्ग से यात्रा के दौरान कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है, साथ ही सर्दियों में भारी बर्फबारी की वजह से यह मार्ग अवरुद्ध हो जाता है जिसके कारण श्रीनगर का संपर्क देश के बाकी हिस्सों से कट जाता है। बहरहाल, अब चेनानी-नाशरी सुरंग के उद्घाटन से इस मार्ग पर यात्रा न केवल आरामदायक हो जाएगी, बल्कि यात्रा में लगने वाले समय की भी बचत होगी।
2 अप्रैल, 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू एवं कश्मीर स्थित ‘चेनानी-नाशरी सुरंग’ (Chenani-Nashri Tunnel) को राष्ट्र को समर्पित किया। यह सुरंग 286 किमी. लंबे जम्मू एवं श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-44) के चौड़ीकरण की परियोजना का अंग है। इस सुरंग का निर्माण कार्य 23 मई, 2011 को प्रारंभ हुआ था। यह सुरंग 3720 करोड़ रु. की लागत से बनकर तैयार हुई है।
देश की सबसे लंबी सुरंग
9.2 किमी. लंबी चेनानी-नाशरी सुरंग ‘देश की सबसे लंबी सड़क सुरंग’ (India’s Longest Road Tunnel) है, साथ ही यह एशिया की सबसे लंबी ‘द्वि-दिशात्मक राजमार्ग सुरंग’ (Bi-directional Highways Tunnel) भी है। यह सुरंग जम्मू एवं कश्मीर के ऊधमपुर जिले में स्थित चेनानी को रामबन जिले स्थित नाशरी से जोड़ती है। इस सुरंग के निर्माण से जम्मू एवं श्रीनगर के बीच की दूरी 41 किमी. से घटकर 10.9 किमी. रह जाएगी। जिससे जम्मू एवं श्रीनगर के बीच की यात्रा में लगने वाला समय दो घंटे तक कम हो जाएगा। इसके परिणामस्वरूप प्रतिदिन 27 लाख रुपये मूल्य तक के ईंधन की बचत का भी अनुमान व्यक्त किया गया है।
सुरंग की संरचना
चेनानी-नाशरी सुरंग की संरचना कुछ इस प्रकार की है कि इसमें लगभग 9.2 किमी. लंबी एवं दो-लेन वाली मुख्य सुरंग तो शामिल है ही, साथ ही इस मुख्य सुरंग के समानांतर इतनी ही लंबाई की एक ‘निकास सुरंग’ (Escape Tunnel) का निर्माण भी किया गया है। दरअसल, जब 1200 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय की निचली पर्वत शृंखला में इस सुरंग की नींव पड़ी, तो इंजीनियरों के सामने बिना पहाड़ को नुकसान पहुंचाए एक ऐसा रास्ता निकालने की चुनौती थी जो न सिर्फ दूरी कम करे बल्कि इससे गुजरने वाले यात्रियों के सफर को भी यादगार बना दे, परिणामस्वरूप 9.2 किमी. लंबी सुरंग के साथ-साथ उसके समानांतर एक छोटी सुरंग भी बनाने का निर्णय हुआ ताकि दुर्घटना आदि की स्थिति में छोटी सुरंग के जरिए बीच में फंसे किसी यात्री/वाहन को बाहर निकाला जा सके। बड़ी (मुख्य) सुरंग का व्यास 13 मीटर जबकि छोटी सुरंग का व्यास 6 मीटर है। दोनों सुरंगों को जोड़ने के लिए प्रत्येक 300 मीटर के अंतराल पर 29 रास्ते (Cross-passages) बनाए गए हैं। निकास सुरंग का प्रयोग केवल पैदल यात्रियों द्वारा ही किया जा सकेगा।
अन्य विशेषताएं
- यह सुरंग एक कुशल वायु-संचार प्रणाली (Ventilation System) से युक्त है। सुरंग में प्रत्येक 8 मीटर की दूरी पर ताजी हवा अंदर आने के लिए इनलेट (Inlet) बनाए गए हैं। हवा बाहर जाने के लिए भी प्रति 100 मीटर पर आउटलेट बनाए गए हैं।
- यह सुरंग एक ‘कुशल परिवहन तंत्र’ (Intelligent Traffic Mechanism) से लैस है और यह पूर्णतः स्वचालित (Fully Automatic) है, जिसके कारण इसके संचालन में मानवीय हस्तक्षेप आवश्यक नहीं है।
- सुरंग में अत्याधुनिक स्कैनर लगे हैं, ताकि ये सुरक्षा संबंधी किसी खतरे को भांप सकें।
- सुरंग में प्रति 150 मीटर पर एसओएस कॉल बॉक्स (SOS Call Box) लगे हैं, आपातकालीन स्थिति में यात्री इनका प्रयोग हॉट-लाइन की तरह कर सकेंगे।
- यह एक पर्यावरण-अनुकूल (Environment-Friendly) सुरंग है, इसके निर्माण के लिए पेड़ों को नहीं काटा गया है।
निष्कर्ष
- यह सुरंग केंद्र सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ एवं ‘स्किल इंडिया’ पहलों का एक आदर्श उदाहरण है। स्किल इंडिया पहल के अनुसरण में जम्मू एवं कश्मीर के स्थानीय लोगों के कौशल विकास के पश्चात उन्हें इस सुरंग के निर्माण हेतु तैनात किया गया। इस परियोजना ने राज्य के 2000 से अधिक अकुशल एवं कुशल युवाओं को रोजगार प्रदान किया। इस परियोजना के निर्माण में संलग्न लगभग 94 प्रतिशत कार्यबल जम्मू एवं कश्मीर से ही था।
- जम्मू एवं ऊधमपुर से रामबन, बनिहाल एवं श्रीनगर तक जाने वाले यात्रियों को यह सुरंग सभी मौसम में एक सुरक्षित एवं आरामदायक मार्ग उपलब्ध कराएगी। अब वाहन चालकों को ट्रैफिक जाम से निजात के साथ घुमावदार पहाड़ी रास्ते से भी छुटकारा मिलेगा। उल्लेखनीय है कि अभी तक चेनानी से नाशरी तक का 41 किमी. लंबा रास्ता काफी टेढ़ा-मेढ़ा और जबर्दस्त चढ़ाई वाला था, जिस पर वाहन चलाने में काफी मुश्किल आती थी।
- इस सुरंग का संचालन प्रारंभ होने से कश्मीर घाटी में न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी उत्पन्न होंगे तथा राज्य के विकास की गति भी तीव्र होगी।
Tuesday, 25 April 2017
टाइम-100 सूची, 2017
टाइम-100 ‘विश्व के 100 सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों’ (100 Most Influential People in the World) की एक वार्षिक सूची है जो अमेरिकी पत्रिका ‘टाइम’ (TIME) द्वारा जारी की जाती है। अमेरिकी शिक्षाविदों, राजनीतिज्ञों एवं पत्रकारों के मध्य विचार-विमर्श के परिणामस्वरूप यह सूची सर्वप्रथम वर्ष 1999 में प्रकाशित की गई थी। टाइम पत्रिका के अंतरराष्ट्रीय लेखक मंडल तथा टाइम- 100 सूची में पूर्व में शामिल व्यक्तियों द्वारा नामित की गई शख्सियतों के आधार पर अंतिम सूची का चुनाव विशेष रूप से टाइम के संपादकों द्वारा किया जाता है। विश्व भर के राजनीति, मीडिया, खेल, संगीत सहित अन्य क्षेत्रों से जुड़े विशिष्ट लोगों को इस सूची में शामिल किया जाता रहा है। हालांकि आधिकारिक सूची जारी करने से कुछ दिन पूर्व आम जनता द्वारा मतदान के माध्यम से विश्व के सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में ‘रीडर्स पोल’ (Reader’s Poll) के विजेता की घोषणा टाइम पत्रिका द्वारा की जाती है।
- वर्ष 2017 की टाइम-100 सूची टाइम पत्रिका द्वारा 20 अप्रैल, 2017 को जारी की गई।
- इसमें विश्व के 100 प्रभावशाली व्यक्तियों को निम्नलिखित 5 श्रेणियों में सूचीबद्ध किया गया है –
(i) असाधारण व्यक्ति (Titans), (ii) नेतृत्वकर्ता (Leaders), (iii) कलाकार (Artists), (iv) मार्गदर्शक (Pioneers) तथा (v) आइकॉन (Icons)। - वर्ष 2017 की टाइम-100 सूची में दो भारतीयों यथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा पेटीएम (Paytm) के संस्थापक विजय शेखर शर्मा को स्थान प्राप्त हुआ है।
- उल्लेखनीय है कि पेटीएम नोएडा स्थित मोबाइल भुगतान एवं वाणिज्य क्षेत्र की कंपनी है।
- टाइम पत्रिका ने मोदी को नेतृत्वकर्ता की श्रेणी में शामिल करते हुए उन्हें एक ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ (Hindu Nationalist) की संज्ञा दी है।
- नेतृत्वकर्ता श्रेणी के अंतर्गत शामिल कुछ अन्य प्रमुख लोगों में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, विकीलीक्स के मुख्य संपादक जूलियन असांजे, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एवं पोप फ्रांसिस के नाम उल्लेखनीय हैं।
- विजय शेखर शर्मा को टाइम पत्रिका ने असाधारण व्यक्ति श्रेणी के अंतर्गत शामिल किया है।
- पत्रिका के अनुसार, नवंबर, 2016 में भारत में नोटबंदी के बाद शर्मा की कंपनी पेटीएम ने भारतीयों को रोजमर्रा की वस्तुओं एवं सेवाओं के भुगतान के लिए पेटीएम के डिजिटल वॉलेट के प्रयोग हेतु प्रोत्साहित किया।
- उनका यह कदम रंग लाया और वर्ष के अंत तक पेटीएम के प्रयोक्ताओं की संख्या बढ़कर 177 मिलियन तक पहुंच गई, जो वर्ष 2016 के प्रारंभ में 122 मिलियन थी।
- असाधारण व्यक्ति श्रेणी के अंतर्गत शामिल कुछ अन्य प्रमुख लोगों में अमेरिकी फेडरल रिजर्व के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की प्रमुख जेनेट येलेन, अमेरिकी पेशेवर बास्केटबॉल खिलाड़ी लेब्रॉन जेम्स तथा अमेजन डॉट कॉम के संस्थापक जेफ बेजोस के नाम उल्लेखनीय हैं।
- फरवरी, 2017 में 89वें ऑस्कर पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री घोषित एम्मा स्टोन (अमेरिका) एवं अमेरिकी गायिका एलिशिया कीज कलाकार श्रेणी के अंतर्गत प्रमुख व्यक्तियों में शामिल हैं।
- मार्गदर्शक श्रेणी में शामिल प्रमुख व्यक्ति हैं -इवांका ट्रम्प (अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की पुत्री) एवं उनके पति जेरेड कुशनर और टोक्यो की पहली महिला गवर्नर यूरिको कोइके।
- आइकॉन श्रेणी में शामिल प्रमुख व्यक्ति हैं-बुकर पुरस्कार विजेता एवं कनाडा की लेखिका मार्गरेट एटवुड, ब्राजीलियाई फुटबॉल खिलाड़ी नेमार तथा रियो ओलंपिक में स्वर्ण पदक विजेता अमेरिकी जिम्नास्ट सिमोन बाइल्स।
- उल्लेखनीय है कि 17 अप्रैल, 2017 को फिलीपींस के राष्ट्रपति रॉड्रिगो दुतेर्ते टाइम-100 रीडर्स पोल के विजेता घोषित किए गए थे।
भारत-मंगोलिया संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण अभ्यास
भारत और मंगोलिया के मध्य राजनयिक संबंध दिसंबर, 1955 में स्थापित किए गए थे। भारत समाजवादी गुट से बाहर मंगोलिया से राजनयिक संबंध स्थापित करने वाला पहला देश था। हाल के वर्षों में भारत-मंगोलिया संबंध तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2001 में मंगोलियाई राष्ट्रपति नात्सागीन बागाबंदी (Natsagiin Bagabandi) की भारत की राजकीय यात्रा के दौरान रक्षा सहयोग सहित छः समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे। मई, 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगोलिया यात्रा के दौरान मंगोलिया के लिए 1 अरब डॉलर की साख-सीमा में वृद्धि की थी। रक्षा सहयोग को मजबूत करने के लिए दोनों देशों द्वारा संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण अभ्यास ‘नोमैडिक एलीफैंट’ सहित विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं।
- 5-18 अप्रैल, 2017 के मध्य भारत-मंगोलिया संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण अभ्यास ‘नोमैडिक एलीफैंट, 2017’ का आयोजन भारत में किया गया।
- यह नोमैडिक एलीफैंट का 12वां संस्करण था।
- इस संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण अभ्यास का आयोजन वैरंग्ते, मिजोरम में किया गया।
- ध्यातव्य है कि वैरंग्ते में भारतीय सेना का काउंटर इंश्योरजेंसी एंड जंगल वारफेयर स्कूल अवस्थित है।
- सैन्य अभ्यास का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र शासनादेश के अधीन सैनिकों को बगावती (Insurgency) और आतंकवाद विरोधी कार्रवाई में प्रशिक्षण देना था।
- प्रशिक्षण अभ्यास में भारतीय सेना की ओर से जम्मू & कश्मीर राइफल्स के तीन अधिकारी, 4 जेसीओ और 39 सैनिकों ने भाग लिया।
- जबकि मंगोलियाई सेना की 084 स्पेशल फोर्सेस टॉस्क बटालियन के 9 अधिकारी और 36 सैनिकों ने भाग लिया।
- उल्लेखनीय है कि नोमैडिक एलीफैंट भारत-मंगोलिया के मध्य वार्षिक सैन्य प्रशिक्षण अभ्यास है।
- इस सैन्य अभ्यास का प्रथम आयोजन वर्ष 2004 में किया गया था।
- वर्ष 2016 में 11वें नोमैडिक एलीफैंट का आयोजन मंगोलिया में किया गया था।
Monday, 24 April 2017
भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति की सामाजिक विवेचना
संदर्भ ग्रंथ सूची-
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3. गुप्ता कमलेश कुमार, महिला सशक्तिकरण,बुक एनक्लेव, जयपुर
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5.सुरेश लाल श्रीवास्तव, राष्ट्रीय महिला आयोग, कुरूक्षेत्र, मार्च 2007
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12. जोशी, पुष्पा (1988) गांधी आन वोमन, सेन्टर फार वोमन'स डेवलपमेन्ट स्टडीज, दिल्ली
13. मिश्र, जयशंकर (2006) प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास, बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी, पटना
14. श्रीनिवास, एम0एन0 (1978) द चेन्जिग पोजीशन ऑफ इण्डिया वूमन, आक्सफोर्ड, यूनिवर्सिटी प्रेस, बाम्बे
15. राजनारायण डॉ0,स्त्री विमर्श और सामाजिक आन्दोलना
16. अखण्ड ज्योति
17. https://www.facebook.com/ekawaz18/
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