Monday, 24 April 2017

खाद के क्षेत्र में डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर की नीति


अपने देश की खेती-बाड़ी में जो बढ़ोत्तरी हुई है, जो हरित क्रांति हुई है उसमें बड़ा योगदान रासायनिक उर्वरकों का है। हम लाख कहें कि हमें अपने खेतों में रासायनिक खाद कम डालने चाहिए-क्योंकि इसके दुष्परिणाम हमें मिलने लगे हैं—फिर भी, पिछले पचास साल में हमारी उत्पादकता को बढ़ाने में इनका योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा है लेकिन, अभी भी प्रमुख फसलों के प्रति हेक्टेयर उपज में हम अपने पड़ोसियों से काफी पीछे हैं। मसलन, भारत में चीन के मुकाबले तकरीबन दोगुना खेती लायक जमीन है, लेकिन चीन के कुल अनाज उत्पादन का हम महज 55 फीसद ही उगा पाते हैं। इसका मतलब है उत्पादन के मामले में हम अभी अपने शिखर पर नहीं पहुंच पाए हैं।
इसी के साथ एक और मसला है जिसपर ध्यान दिया जाना जरूरी है, वह है कि क्या हम रासायनिक खादों का समुचित इस्तेमाल करते हैं? आज की तारीख में भारत रासायनिक खादों की खपत करने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है लेकिन देश के उत्पादन में मदद करने वाला यह उद्योग आज कराह रहा है।
बहरहाल, हाल ही में खाद में ‘डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर‘ की योजना लागू करने की बात की जा रही है। फिलहाल इसे 17 जिलों में चलाए जाने की योजना है। खाद उद्योग में ‘डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर‘ के पीछे की सच्चाई बहुत कुछ ऐसा बयाँ करती है, जो किसानों के हित में नहीं होगा।
  • इस योजना के अंतिम रूप में सामने आने के बाद इस क्षेत्र के उद्योगों को खाद के मनमाने दाम निर्धारित करने का अधिकार मिल जाएगा। इसके बाद सब्सिडी लेने का भार किसान पर आ जाएगा। इस योजना के भविष्य के लाभों को देखते हुए एक अंतरराष्ट्रीय खाद कंपनी ने भारतीय यूरिया खाद की फैक्टरी खरीदनी शुरू कर दी है।
  • फिलहाल बाजार में खाद के दामों से जुड़े दो मुख्य तत्व काम करते हैं। एक तो खुदरा मूल्य; जो निश्चित होता है और दूसरा सब्सिडी वाला मूल्य, जिसमें घट-बढ़ होती रहती है। वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय कीमतों से परे किसान को यूरिया खाद का एक थैला 284रु. के निश्चित मूल्य पर मिलता है। परंतु डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर के बाद यूरिया बैग पर सब्सिडी निश्चित मूल्य पर मिलेगी। इससे अंतरराष्ट्रीय कीमतों की उतार-चढ़ाव का प्रभाव सीधे किसानों पर पड़ेगा।
  • अगर सन् 2008 में यूरिया के दामों पर नजर डालें, तो वर्तमान समय में यूरिया की कीमत इससे आधी है, लेकिन यह लगातार बढ़ रही है। अगर यही स्थिति रही तो किसान को एकमुश्त महंगे दामों पर यूरिया खरीदना पड़ेगा।
  • प्रस्तावित योजना में किसान को अपने भूमि दस्तावेजों को पंजीकृत कराना होगा। इसके बाद वे पूरा भुगतान करके यूरिया खरीद सकेंगे। सब्सिडी वाली राशि बाद में उन्हें मिला करेगी। इसका सीधा अर्थ यह होगा कि लगभग 1200रु. के एक यूरिया बैग को खरीदने के लिए किसान को उधार के चक्र में अधिक फंसना पड़ेगा। आज किसानों की आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण ऊधार ही है।
  • इस योजना से प्रत्येक किसान को एक निश्चित सीमा में ही खाद खरीदने की छूट होगी। जबकि गेंहू, चावल, आलू, दालों आदि के लिए अलग-अलग मात्रा में खाद की आवश्यकता होती है। योजना में इस तथ्य को नजरदांज किया गया है। यह नीति भारतीय कृषि को सभी फसलों के लिए समान योजना लागू किए जाने वाले उस दौर में ले जाएगी, जो सदा असफल रही है।
  • देश में लगभग 10 करोड़ किसान काश्तकार हैं, जो सब्सिडी वाली खाद खरीदते हैं। इनके पास भूमि दस्तावेज न होने से ये सब्सिडी का लाभ नहीं ले पाएंगे। खाद खरीदना इनके बूते के बाहर हो जाएगा।
इस योजना से खाद माफियाओं के अंतरराष्ट्रीय गिरोह पर कसा गया शिकंजा ढीला पड़ जाएगा। एक ओर तो सरकार किसानों की आय को दुगुना करने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर खाद उद्योग के शोरगुल में उनकी आवाज के प्रति बहरी हुई सी लग रही है। इस योजना को एक प्रकार से किसानों के साथ धोखा माना जा रहा है।