क्या है क्योटो प्रोटोकॉल?
- क्योटो प्रोटोकॉल जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन से संबंधित एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसमें शामिल भागीदार देश उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों के प्रति अंतरराष्ट्रीय रूप से बाध्य होते हैं।
- 11 दिसंबर, 1997 को क्योटो, जापान में ‘क्योटो प्रोटोकॉल’ को स्वीकार किया गया और यह 16 फरवरी, 2005 को प्रभावी हुआ।
- क्योटो प्रोटोकॉल के विस्तृत नियम को वर्ष 2001 में माराकेश (Marrakesh), मोरक्को में आयोजित कोप-7 (COP-7) में स्वीकार किया गया और इसे ‘मारकेश समझौता’ कहा जाता है।
- क्योटो प्रोटोकॉल की पहली प्रतिबद्धता अवधि वर्ष 2008 में प्रारंभ हुई थी और वर्ष 2012 में समाप्त हुई थी।
- 8 दिसंबर, 2016 को दोहा, कतर में ‘क्योटो प्रोटोकॉल के दोहा संशोधन’ को अपनाया गया था।
- संशोधन के तहत क्योटो प्रोटोकॉल के एनेक्स-1 (विकसित देशों) में शामिल देशों के लिए नई प्रतिबद्धताओं को शामिल किया गया।
- ये देश ‘क्योटो प्रोटोकॉल की द्वितीय प्रतिबद्धता अवधि 1 जनवरी, 2013 से 31 दिसंबर, 2020’ में शामिल प्रतिबद्धताओं को पूरा करने पर सहमत हुए हैं।
- क्योटो प्रोटोकॉल की प्रथम प्रतिबद्धता अवधि बनाम द्वितीय प्रतिबद्धता अवधि
- क्योटो प्रोटोकॉल की प्रथम प्रतिबद्धता अवधि का कार्यकाल वर्ष 2008 से 2012 था जबकि द्वितीय प्रतिबद्धता अवधि का कार्यकाल 2013 से 2020 तक है।
- क्योटो प्रोटोकॉल की प्रथम प्रतिबद्धता के तहत 37 औद्योगिकीकृत देशों और यूरोपीय समुदाय ने ‘हरित गृह गैसों’ (GHG) के उत्सर्जन में वर्ष 1990 के स्तर से 5 प्रतिशत की कटौती की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी जबकि द्वितीय प्रतिबद्धता के तहत पक्षकारों ने हरित गृह गैस उत्सर्जन में वर्ष 1990 के स्तर से 18 प्रतिशत की कटौती की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- भारत द्वारा क्योटो प्रोटोकॉल की द्वितीय प्रतिबद्धता अवधि के अनुसमर्थन को मंजूरी
- 24 जनवरी, 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा क्योटो प्रोटोकॉल की द्वितीय प्रतिबद्धता अवधि के अनुसमर्थन को स्वीकृति प्रदान की गई।
- 29 दिसंबर, 2016 तक 75 देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल की द्वितीय प्रतिबद्धता का अनुमोदन किया है।
- इस प्रतिबद्धता अवधि के भीतर सतत विकास प्राथमिकताओं के अनुरूप ‘स्वच्छ विकास प्रक्रिया’ (CDM) परियोजनाओं के क्रियान्वयन से भारत में निवेश आकर्षित करने में मदद मिलेगी।
- भारत द्वारा द्वितीय प्रतिबद्धता की पुष्टि अन्य देशों को भी यह कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करेगी।