Saturday 22 April 2017

पृथ्वी दिवस


पृथ्वी दिवस (22अप्रैल ) पर विशेष
======================

                              मानव तथा प्रकृति का संबंध अनादिकाल से रहा है। यह अत्यंत संवेदनशील है। जब तक यह संबंध मित्रतापूर्ण रहा, प्रकृति ने एक ममतामयी माँ की भांति हमें पुत्रवत स्नेह प्रदान किया। हमारे लिए खाने की व्यवस्था की,पीने के लिए जल का प्रबंध किया।
                           समय बीता, दोनों के संबंधों का स्वरुप बदला। जहा आदिकाल में ये सम्बन्ध एक माँ -बेटे के स्नेह के रूप में था वही आधुनिक काल में इसका स्वरुप तेजी से परिवर्तित हुआ आदिकाल में मानव को "प्रकृति का दास" माना गया क्योंकि उसके क्रिया कलाप प्रकृति द्वारा निर्धारित होते थे। वही दूसरी तरफ आधुनिक काल में मानव प्रकृति के नियंत्रक की भूमिका में है।यही नहीं, उसने प्रकृति विजय का दिवास्वप्न भी देखना आरंभ कर दिया है। इसमें कोई शक नहीं कि मानव ने पिछले कुछ वर्षों में अभूतपूर्व उन्नति की है चाहे वह संचार क्रांति हो, खेल जगत हो या परिवहन जगत। हमने एयर कंडीशनर का आविष्कार किया जो तापमान को नियंत्रित करने में सहायक है। लेकिन बहुत कम लोगो को मालूम होगा कि निकलने वाली सी.एफ.सी गैस ओजोन परत में छिद्र होने के लिए उत्तरदायी है। हमने तेज गति से चलने वाले वाहनों का आविष्कार किया निश्चित रूप से दो स्थानों के बीच की दूरी कम हुई लेकिन इन वाहनों से निकलने वाला धुँआ मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालता है। हमारे जीवन में मोबाइल फोन आने से सहूलियते बढ़ी है, दिनचर्या आसान हुई है लेकिन अधिक मोबाइल के प्रयोग से मानव स्वास्थ्य पर अवसाद, ब्रेन हेमरेज तथा सर्वाइकल पेन जैसे साइड इफेक्ट भी सामने आये है। अत्यधिक मोबाईल के प्रयोग से मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव तो पड़ता ही है इसका सामजिक दुष्प्रभाव भी सामने आया है। ये तो हमारे उन्नयन के (या यूँ कहें अवनयन के) कुछ चंद उदहारण है बाकी फेहरिस्त काफी लंबी है।
                           निष्कर्षतः ये कहा जा सकता है कि मानव का अर्थपूर्ण विकास तभी संभव है जब तक ये सम्बन्ध मित्रता पूर्ण रहे इसके अभाव में निश्चय ही उसे भूकंप, भूस्खलन, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से दो चार होना होगा। कितनी बड़ी विडंबना है कि आधुनिक मानव चाँद पर जाने के लिए चाँद की ओर टक टकी लगाए है लेकिन उसे यह नहीं मालूम कि उसके पैरों तले धरती खिसकती जा रही है। याद रहे पृथ्वी हमारी नहीं हम पृथ्वी के हैं!