एचआईवी एड्स से संक्रमित व्यक्तियों की संख्या के मामले में भारत लगभग 21 लाख रोगियों के साथ विश्व में दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया के बाद तीसरे स्थान पर है। वर्ष 2001 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा एचआईवी एड्स की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय समन्वय में वृद्धि करने की वैश्विक प्रतिबद्धता की घोषणा की गई थी। भारत इस घोषणा का हस्ताक्षरकर्ता है और इस घोषणा के उत्तरदायित्व के निर्वहन के रूप में एवं एचआईवी एड्स से संक्रमित व्यक्तियों के मानवाधिकारों की संरक्षा, सुरक्षा, प्रभावी देखभाल एवं उचित उपचार हेतु फरवरी, 2014 में एचआईवी एड्स (नियंत्रण एवं रोकथाम), विधेयक राज्य सभा में पेश किया गया था।
- 11 अप्रैल को लोक सभा एवं 21 मार्च, 2017 को लोक सभा द्वारा एचआईवी एड्स (नियंत्रण एवं रोकथाम) विधेयक, 2017 पारित कर दिया गया।
- इस विधेयक का उद्देश्य एचआईवी एड्स से संक्रमित व्यक्तियों को सामाजिक भेदभाव से बचाना है।
- इस विधेयक के प्रमुख प्रावधान निम्न हैं-
- संक्रमित व्यक्तियों और उनके साथ रहने वाले लोगों को रोजगार, शैक्षिक प्रतिष्ठान एवं सार्वजनिक या निजी कार्यालय में प्रवेश, स्वास्थ्य सेवाएं, संपत्ति लेने या किराए पर रहने और बीमा प्रदान करने जैसी सुविधाओं से इनकार करना या इनको समाप्त करना निषिद्ध है।
- रोजगार या स्वास्थ्य सेवा या शिक्षा प्राप्ति के लिए पूर्व-आवश्यकता के रूप में किसी व्यक्ति का एचआईवी- परीक्षण निषिद्ध किया गया है।
- 18 वर्ष से कम आयु के प्रत्येक संक्रमित व्यक्तियों को साझा घर में रहने एवं घरेलू सुविधाओं का आनंद उठाने का अधिकार होगा।
- किसी व्यक्ति द्वारा संक्रमित व्यक्ति की सूचना प्रकाशित करना या ऐसे लोगों के प्रति घृणा की भावनाओं की वकालत करना प्रतिबंधित किया गया है।
- किसी संक्रमित व्यक्ति का, उसकी सूचित सहमति के बिना एचआईवी परीक्षण, चिकित्सा-उपचार या उस पर अनुसंधान का आयोजन नहीं किया जाएगा।
- यदि न्यायालय द्वारा आदेश नहीं दिया गया हो, तो किसी संक्रमित व्यक्ति को उसकी एचआईवी स्थिति का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।
- एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों की जानकारी रखने वाले प्रतिष्ठानों को तथ्य-संरक्षण उपायों (Data Protection Measures) को अपनाना होगा।
- केंद्र एवं राज्य सरकारें निम्न कार्य करेंगी-(i) एड्स को फैलने से रोकना, (ii) एंटी-रिट्रोवायरल थेरेपी (Anti-Retroviral Therapy) की उपलब्धता सुनिश्चित करना, (iii) कल्याणकारी योजनाओं तक संक्रमित व्यक्तियों की पहुंच सुनिश्चित करना (विशेषकर महिलाओं एवं बच्चों को) (iv) गैर-मलिन, लैंगिक संवेदना से युक्त और उम्र के अनुकूल एड्स शिक्षा कार्यक्रमों का नियोजन।
- प्रत्येक राज्य में एक ओम्बुड्समैन की नियुक्ति।
- 12-18 वर्ष की उम्र का संक्रमित बच्चा जो अपनी बीमारी के बारे में पर्याप्त परिपक्वता एवं समझ रखता है, किसी भी 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति का अभिभावक बनने योग्य है।
- ऐसे वाद/मुकदमे में जिस एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति एक पक्ष के रूप में है, अदालत यह आदेश दे सकती है कि कार्यवाही-(i) व्यक्ति की पहचान छुपाकर या (ii) कैमरे में या (iii) ऐसी सूचना को रोककर की जाएगी, जो व्यक्ति की पहचान को उजागर करती हो।
- 31 मार्च, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को शिक्षा अधिकार कानून के तहत, एचआईवी से संक्रमित बच्चों को वंचित समूह की श्रेणी में रखने का निर्देश दिया है।