Tuesday, 4 April 2017

आर्टिफिशियल इंटेलीजेन्स (Artificial Intelligence)

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस कम्प्यूटर विज्ञान की एक ऐसी शाखा है, जिसका काम इंटेलीजेंट मशीन बनाना है। इसके अंतर्गत मशीनों को इस तरह से बनाया जाता है कि वे इंसानों जैसा ही काम कर सकें। और तो और उनकी तरह प्रतिक्रिया भी कर सकें। इस पद्धति का सीधा या मतलब कृत्रिम तरीके से विकसित की गई बुध्दिमत्ता से है। रोबोट सहित इंसान की तरह काम करने वाली सभी मशीनें इस श्रेणी में आती हैं। लेकिन ये अब तक पूरी तरह बुद्धिमान नही हो पाई हैं। वास्तव में यह पद्धति कम्प्यूटर के प्रोग्रामों को उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास करती हैं, जिसके आधार पर इंसान का दिमाग चलता है। इसका उदेश्य कम्प्यूटर को इतना स्मार्ट बनाना है कि वह अपनी अगली गतिविधि खुद तय कर सके।
  • आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के तीन प्रकार देखे जा सकते हैं।
  • वीक  आई – कमजोर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को हम आर्टिफिशियल नैरो इंटेलीजेंस कह सकते हैं। यह कुछ विशेष प्रकार से काम करती है। जैसे अगर आपका कम्प्यूटर शतरंज खेल सकता है, तो वह बस उसी में माहिर होगा।
  • स्ट्रांग  आई – इस तरह की इंटेलीजेंस में मानव और मशीन लगभग समान स्तर की बुद्धि रखते हैं। वह हर काम जो इंसान कर सकता है, अगर रोबोट करने लगे, तो उसे स्ट्रांग इंटेलीजेंस माना जाएगा। फिलहाल इसे बाजार में नहीं लाया गया है।
  • सिंगुलैरिटी – इसे विलक्षण श्रेणी में रखा जा सकता है। यह आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस की पराकाष्ठा होगी, जब मशीन ही मशीन का निर्माण करने लगेगी। इस स्तर को मानव जाति के अंत के तौर पर देखा जा सकता है
  • आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के सफल उपयोग –  गूगल पिक्सल ऐसा स्मार्टफोन है, जिसमें इन बिल्ट आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस बेस्ड गूगल असिस्टेंट दिया गया है।इसी तरह एंटी वायरस भी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का अद्वितीय नमूना है। यह वायरस या वाम्र्स जैसी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को तलाशने का काम करता है।विडियो गेम्स में आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस के जरिए कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग इस प्रकार से की जाती है कि वह खेल में अपने विरोधी इंसान का मुकाबला स्वयं कर सके। इसका अच्छा उदाहरण कम्प्यूटर पर शतरंज का खेल है।आवाज की पहचान या वॉयस डिटेक्शन भी इसी प्रणाली का सफल प्रयोग है। स्मार्टफोन में यह आम हो चुका है। इसे और विकसित किया जा रहा है, ताकि अनुवाद में मदद मिल सके। दुनिया भर में इंडस्ट्रियल रोबोट की मांग बढ़ रही है। इन्हें एक निश्चित कार्य के लिए प्रोग्राम किया जाता है। कई परिस्थितियों में ये तात्कालिक निर्णय भी कर लेते हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से ऐसे बायोनिक कृत्रिम अंग बनाए जा रहे हैं, जो मस्तिष्क में लगे सेंसर से संचालित होते हैं। ये अंग विकलांगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के इन सफल प्रयोगों के बाद वैज्ञानिक भविष्य में इसके विकास के लिए निरंतर प्रयत्न कर रहे हैं। ऐसी उम्म़ीद है कि आने वाले समय में यह अन्य क्षेत्रों में भी अपनी पैठ बना लेगा।
  • कुछ ऐसे सूक्ष्म नैनोबोट या रोबोट बनाए जाएंगे, जो नसों के जरिए हमारे मस्तिष्क में पहुंचकर न्यूरॉन के संपर्क में आ सकें। ये नैनोबोट हमारी याददाश्त को बेहतर बना सकेंगे।
  • मशीन पर हानिकारक रसायनों और विपरीत परिस्थितियों का उतना प्रभाव नहीं होता, जितना इंसानों पर होता है। अब माइनिंग, युद्ध या आपदा के समय रोबोट मददगार होंगे।
  • कई देश ऑटोनॉमस वेपन सिस्टम (स्वचालित हथियार तंत्र) विकसित करने में लगे हुए हैं। इनकी मदद से लक्ष्य की निगरानी करना और भेदना बहुत आसान हो जाएगा।
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का वैश्विक बाजार 62.9 फीसदी की दर से बढ़ रहा है, जिसके अगले पाँच वर्षो में 1100 अरब रुपये होने की पूरी संभावना है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का कहना है कि आज कम्प्यूटर और इंसानी दिमाग में ज्यादा फर्क नहीं रह गया है। ऐसे में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का निरंतर विकास हमारी बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। लेकिन अगर इसे नियंत्रण में नहीं रखा गया, तो यह मानव जाति के जैविक विकास की तुलना में आगे निकल जाएगा और मानव जाति पिछड़ जाएगी।