Thursday, 20 April 2017

कार्बन क्रेडिट क्या है? कार्बन क्रेडिट की प्रक्रिया क्या है? जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को यह कैसे हल कर सकता है।


जलवायु परिवर्तन पर काबू पाने के लिए दुनियाभर में तमाम नुस्खे ढूंढ़े जा रहे हैं। कार्बन क्रेडिट एक सफलतम और कारगर उपाय के रूप में सामने आया है। सबसे पहले यह जानना होगा कि कार्बन क्रेडिट आखिर क्या है और विकसित देश इसे क्यूँ अपनाना नहीं चाहते जबकि आज यह अपनी सफलता सिद्ध कर चुका है।
क्या है कार्बन क्रेडिट :-
  • कार्बन क्रेडिट के सिद्धांत के तहत जो कंपनियाँ अत्याधुनिक नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल कर कार्बन का कम उत्सर्जन करेंगी उन्हें इसके लिए विशेष क्रेडिट मिलेगा। जिसको कार्बन क्रेडिट कहा जाता है। 
  • इस क्रेडिट को हासिल करने वाली कंपनियाँ अपना सामान उन देशों में बेच सकेंगी जहाँ कार्बन का उत्सर्जन अत्यधिक होता है।
  • सीधे तौर पर यह रिफाईन तकनीक के इस्तेमाल से प्राप्त बोनस है जिसके तहत दूसरे देशों में व्यवसाय करने का रास्ता सरल हो जाता है। पर इसका सबसे बड़ा लाभ है कि स्वच्छ तकनीक के इस्तेमाल से देश के भीतर कार्बन उत्सर्जन की मात्रा स्वत: कम होने लगती है।
अब यहाँ हम आपको यह भी स्पष्ट कर दें कि कार्बन उत्सर्जन क्या है?
  • कार्बन उत्सर्जन मुख्यत: मानवीय गतिविधियों जैसे औद्योगिकीकरण, वाहनों से निकलने वाली गैसें, जैव ईंधन को जलाने और जंगलों के काटने के कारण होता है।
  • सीधे तौर पर वातावरण को दूषित करने वाले कारक जो अन्य गैसों के साथ कार्बन को उत्सर्जित करते हैं वे इस प्रक्रिया के भागीदार होते हैं। जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी का तापमान बढ़ता है।
क्योटो प्रोटोकॉल के अनुसार ज्यादातर विकसित और विकासशील देशों ने ग्रीन हाउस गैसों जैसे ओजोन, कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने की बात कही है। इसके लिए कुछ मापदंड और मानदंड का निर्धारण भी किया गया है। इस निर्धारण की देख-रेख के लिए यूनाईटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज(UNFCCC) को बनाया गया है। यह संयुक्त राष्ट्र संघ का अंग है।
दरअसल कार्बन की अधिकता पर नियंत्रण लगाना ही संस्था का मुख्य उद्देश्य है।

कार्बन क्रेडिट की प्रक्रिया :-
  • कार्बन क्रेडिट सही मायने में कार्बन के उत्सर्जन पर लगाम लगाने के लिए प्रोत्साहन पुरस्कार का दूसरा नाम है। भारत और चीन सहित अन्य एशियाई देश जो अभी क्रमिक विकास की दौड़ में हैं उन्हें UNFCCC संस्था से जरूर लाभ प्राप्त होता है, क्योंकि मानक मापदंडों के तहत काम करने से यह संस्था नाम और प्रोत्साहन स्वरूप अधिकतम मदद करती है।
  • इस संस्था ने कार्बन क्रेडिट को कुछ इस तरह से परिभाषित किया है कि यदि कोई देश निर्धारित स्तर से कम स्तर पर जाकर कार्बन का उत्सर्जन करता है तब दोनों अंकों (निर्धारित और किए गए) के बीच का उत्सर्जन क्रेडिट क्रमांक दिलाता है। 
  • इस क्रेडिट को कमाने के लिए आज इन एशियाई देशों के औद्योगिक घराने मुस्तैदी से जुट गए हैं ताकि संस्था उन्हे अधिकतम लाभ के तौर पर कार्बन उत्सर्जित करने वाले देशों में अपना व्यवसाय कराने का पुरस्कार दे सके।
  • यह प्रक्रिया यकीनन कार्बन के नियंत्रण के साथ-साथ व्यवसायिक रूप में लाभकारी साबित हो रही है। इस तरह से पैदा किया गया क्रेडिट आपस में दो कंपनियों के बीच अदला-बदली कर नया व्यवसायिक रिश्ता जोड़ने में मददगार होता है।
आज जैसे कि परिस्थितियाँ बन रही हैं उनके अनुसार ऐसा समझा जाता है कि आने वाले समय में भारत और चीन इस क्रेडिट परंपरा पर अपना कब्जा जमा लेंगे। वर्तमान परिणामों पर नजर डालें तो भारत ने निर्धारित मानदंड से 30 प्रतिशत नीचे जाकर क्रेडिट्स को जमा करने में सफलता पायी है।
                               भारत में अधिकतर धातु और ऊर्जा उत्पादन के औद्योगिक घराने क्रेडिट में मददगार साबित हो रहे है। लेकिन इसके लिए समुचित प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। जिससे निवेशक जानें कि कार्बन क्रेडिट और ट्रेडिंग कैसे व्यवसाय को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पदार्पण कराने का सफलतम माध्यम बन सकेगा। यह एक सुदृढ़ विचार आज पर्यावरण को बचाने, प्रकृति संरक्षण करने और पृथ्वी को गरम ताप में झुलसाने से बचाने का तारणहार बन गया है। वृक्षों और उनके संरक्षण को मदद मिलेगी और प्रकृति अपने सही मायने के साथ मुनष्य को सुरक्षित भविष्य का उपहार क्रेडिट में देगी।