Friday, 7 April 2017

जल-समस्या के हल के रूप में समुद्री जल

हमारा देश जल समस्या से लगातार घिरता चला जा रहा है। बहुत से राज्यों में जल का स्तर बहुत नीचे जा चुका है। लोग जल के लिए त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। भूजल के लगातार दोहन से उसकी गुणवात्ता पर भी बहुत प्रभाव पड़ा है। कई क्षेत्रों में तो भूजल पीने योग्य भी नहीं बचा है। मानसून की विफलता ने भी जल समस्या को बढ़ा दिया है।इस समस्या की भयावहता को देखते हुए सरकार ने राष्टीय जल नीति 2016 की घोषणा की है। इस नीति में जल स्रोतों के नवीनीकरण एवं जल संरक्षण पर अनेक तरह के कार्यक्रम तैयार किए गए हैं। हैरानी की बात यह है कि इस नीति में कहीं भी जल के सबसे बड़े स्रोत समुद्र का उल्लेख नहीं किया गया है।
कुछ तथ्य
  • समुद्री जल के अलवणीकरण के बाद उसे घरेलू, औद्योगिक एवं कृषि-कार्यों हेतु उपयोग में लाया जा सकता है। यही कारण है कि विश्व में बढ़ती जल समस्या को देखते हुए समुद्री जल को एक बड़े विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है।
  • इस्रायल में 55% घरेलू जलापूर्ति समुद्री जल से होती है। इसी प्रकार उत्तर अफ्रीका, पश्चिम एशिया, अमेरिका, आस्ट्रेलिया एवं दक्षिण अफ्रीका के कई देशों में भी समुद्री जल का उपयोग किया जा रहा है।
  • संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट 2014 के अनुसार 150 देशों में लगभग 17,000 अलवणीकरण उद्योग कार्यरत हैं, जिनकी संख्या 2020 तक दुगुनी होने की संभावना है। अलवणीकरण से अभी 21 अरब गैलन पानी प्रतिदिन बंजर क्षेत्रों को उपजाऊ बना रहा है।
  • भारत में तमिलनाडु, पुड्डुच्चेरी, आंध्रप्रदेश एवं गुजरात में अलवणीकरण प्लांट लगाए जा चुके हैं। रिवर्स ओस्मॉसिस (RO) पर काम करने वाला समुद्री जल का सबसे बड़ा प्लांट चेन्नई में लगाया गया है। यह प्रतिदिन 100 करोड़ लीटर समुद्री जल को अलवणीकृत कर देता है।
  • आर ओ आधारित तकनीक भारतीय परमाणु ऊर्जा विभाग के पास भी है। परंतु विभाग के पास अभी सीमित आर ओ प्लांट हैं, जो हमारी औद्योगिक एवं पीने के पानी की आवश्यकता के अनुरूप बहुत कम है।
  • इस क्षेत्र में नैनो तकनीक आधारित उद्योग भी लगाए जा रहे हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता को सुधारा जा सके। इस्रायल और अमेरिका में कई प्लांट इस तकनीक पर तैयार किए जा रहे हैं। इस्रायल के ज़करबर्ग संस्थान में भी मेम्ब्रेन तकनीक से जल अलवणीकरण पर काम किया जा रहा है।
  • अभी तक हमारे जल नीति निर्धारकों का यही मानना रहा है कि अलवणीकृत समुद्री जल बहुत महंगा पड़ता है। परंतु वास्तव में यह 10 पैसे प्रति लीटर बैठता है। इस क्षेत्र में सौर, पवन या समुद्रीय ज्वार ऊर्जा का प्रयोग होने के बाद कीमत में और भी कमी आ जाएगी।
राष्ट्रीय जल नीति में समुद्री जल को अवश्य शामिल किया जाना चाहिए। समुद्री जल के रूपांतरण का खर्च केन्द्र, राज्य, स्थानीय सरकारों एवं निजी कंपनियों को मिलकर वहन करना चाहिए। इसकी शुरूआत सागरमाला परियोजना से की जा सकती है।